मनोज सिंह : चीन के शासक से मिलने के लिए ,महाबलिपुरम ही क्यों ?यह चुनाव सामान्य नहीं था,इसके संकेत दूर के और अर्थ गहरे हैं। महाबलिपुरम में कौन है ? श्रीकृष्ण हैं पांडव हैं।
महाबलिपुरम में क्या है ? पूरा महाभारत है। पाँचों पांडवों के रथ हैं, गीता का उपदेश है। इसका चित्रण चट्टानों पर उकेर कर किया गया है। रथों का निर्माण पत्थरों से हुआ है। अद्भुत स्थापत्य अपने चरम पर है।
महाभारत का युद्ध कुरुक्षेत्र में हुआ था मगर उसका चित्रण महाबलिपुरम मे हो रहा है। भगवान कृष्ण ने गोवर्धन पर्वत को उत्तर भारत में उठाया लेकिन वे महाबलिपुरम के एक चित्र में गोवर्धन पर्वत को उंगली पर उठाए दिखाए गए हैं। अर्थात दक्षिण में भी श्रीकृष्ण पूज्य थे तो पांडव आदर्श। कोई भी सभ्यता संस्कृति किसी बाहरी को पूज्य और आदर्श कभी नहीं मानती। अर्थात दक्षिण से लेकर उत्तर भारत, सांस्कृतिक वैचारिक धार्मिक स्तर पर एक ही था।
आदिकाल से हम एक ही राष्ट्र थे। लेकिन धर्म परिवर्तन गिरोह को यह पसंद नहीं आया था । बिना बांटे हुए , बिना सनातन को कमजोर किये अपने धर्मपरिवर्तन का एजेंडा चलाना आसान नहीं था। अतः आर्य -द्रविड़ का भेद रच गया , और उस भेद मे भाषा भिन्नता पैदा की गई। वो खाई इतनी गहरी कर दी गई कि आज महाबलिपुरम से मात्र पचास किलोमीटर दूर चेन्नई धर्म परिवर्तन का केंद्र है। और यह केंद्र इतना मजबूत बना लिया गया कि वो उत्तर भारत से कुछ भी स्वीकार करने को तैयार नहीं। वो तो श्रीकृष्ण वहां पत्थरों पर अंकित हैं जिन्हे मिटाना आसान नहीं अन्यथा अन्य सभी प्रतीक चिन्ह धीरे धीरे मिटा दिए गए।
समृद्ध इतिहास के माध्यम से अपनों को अपने से पुनः जोड़ने के लिए महाबलिपुरम चुना गया। यह याद दिलाने के लिए महाबलिपुरम चुना गया कि हमारे पुरखें एक ही थे। धर्म परिवर्तन गिरोह और उनकी पोषित सनातन विरोधी राजनीति के द्वारा खड़े किये गए कांच के महल को चकनाचूर करने के लिए पत्थरों की नगरी महाबलिपुरम को चुना गया। एक बार फिर यह श्रीकृष्ण की माया है कि महाबलिपुरम का हर पत्थर इस काम को करने के लिए पुनः जीवंत हो उठा है। जय