आज ‘हलाल’ केवल मांस काटने की एक पद्धति नहीं रह गई है बल्कि इसका एक मजहबी आक्रमण होने लगा है…जब माँस या किसी अन्य वस्तु को हलाल का प्रमाणपत्र दिया जाता हैं तो उसकी वैधता किसी अंतर्राष्ट्रीय मंच की न होकर इस्लाम के अनुसार क्यों ? आखिर गैर-मुस्लिमों पर जबरन क्यों थोपा जा रहा है ‘हलाल’ ? क्या हलाल के माध्यम से दूसरे धर्मों की आस्थाओं का हनन और हर वस्तु का इस्लामीकरण ठीक है ? आखिर अन्य धर्मावलम्बियों के लिए इस्लाम द्वारा प्रदत्त वैधता अनिवार्य क्यों हो? जो हलाल प्रमाणपत्र है, वह इस्लाम के अनुसार अनुमत है, फिर अन्य धर्मों के लिए क्या वैध है और क्या नहीं, इसका निर्धारण इस्लाम क्यों करेगा? क्या ‘हलाल सर्टिफिकेट’ और हलाल इकोनमी के जरिए हिन्दुस्तान को डिविजन करके शारियत कानून लाने का षड्यन्त्र रचा जा रहा है ?