Atrocities Act कहो या SC-ST एक्ट या फिर हरिजन एक्ट… यह पेश किया गया था 11 सितंबर 1989 को….. लागू करनेवाली पार्टी थी काँग्रेस ….. जिन्हें हमनें 414 सीटें सौंपी थी…. इसकी नियमावली बनी 1990 से लेकर 1994 के बीच तक … जब वी.पी.सिंह जी प्रधानमंत्री थे…. जनता दल वाले…… लेकिन नियमावली बनकर लागू हुई 31 मार्च, 1995 को…. लागू करने वाली पार्टी बनी फिर से आपकी चहेती काँग्रेस जिसे आपने दी 244 सीटें….
इस दौरान आपने इस कानुन के लिये कोई आंदोलन नहीं किया…. कोई विरोध नहीं किया…. आप सोये रहे…. तब आपको पता नहीं चला कि यह कानुन एक अभिशाप साबित हो सकता है…… सब मस्त चल रहा था….. बल्कि जिस पार्टी ने लागू किया उसे हम लगातार सत्ता सौंप रहे थे…. खूब प्यार लुटा रहे थे….. मैंने इस कानून को डिटेल में पढा है…. सब कुछ IPC की धाराओं वाले ही अपराध इसमें है…. लेकिन यहाँ अग्रिम जमानत नहीं है…. फास्ट ट्रैक कोर्ट्स की बात है… कड़ाई ज्यादा है….. FIR दर्ज होते ही जेल है।
इस कानून के पिछे के कारण क्या बताये गये थे?…. क्या आधार रखे गये थे?.. आजादी के बाद कई जगहों पर दलितों के साथ हुये नरसंहार….. उनके साथ छुआछुत और भेदभाव का रवैया….. उनका शारीरिक, मानसिक तथा आर्थिक उत्पीड़न… जिसे रोकने में हमारी आम न्याय व्यवस्था असफल साबित हुई… ध्यान रहे कि यह मैं अपने विचार नहीं बता रहा इस कानून के अस्तित्व में लाने के पिछे जो तर्क दिये गये थे बस वह रख रहा हूँ जिससे न तो मैं पुरी तरह सहमत हूँ न असहमत…. अगर कानुन व्यवस्था असफल हुई थी तो इसमें हमारा क्या दोष भाई?… आपकी गलती की सजा हम क्यूँ भुगते? …. लेकिन अगर तब ही कड़ा विरोध कर दिया होता तो आज यह नौबत न आती….. और अगर एक असल बात कहूँ बुरा न लगे तो यह कानून और इसकी धाराएँ बहुत बुरी भी नहीं हैं….
लेकिन इसका दुरूपयोग करना देश के किसी भी कानून से ज्यादा आसान है…. और इसका सदुपयोग से ज्यादा दुरूपयोग ही हुआ है…. बेकसूर ही सबसे ज्यादा फँसे है इस कानून के चपेट में….. लेकिन उतनी ही बड़ी सच्चाई यह भी है कि शहरी दलितों के अलावा अधिकतर तौर पर इस कानून का दुरूपयोग करने वाले भी हम सवर्ण और पिछड़ी जाति वाले ही हैं….. केस दर्ज करवाने में चेहरा भले दलित का आगे किया जाता हो लेकिन पिठ पिछे कोई सवर्ण या पिछड़ा ही खड़ा मिलेगा।… लेकिन आप अब तक खामोश थे।
काँग्रेस सरकार ने जाते जाते इस कानून को और कड़े करने का इंतजाम करके गयी थी….. 8 नवंबर 2013 को काँग्रेस ने इसे और कड़े करने वाले नियम इसमें जोड़े….. जो पास होते होते 2014 आ गया….. जिसका बिल मोदी सरकार पर फटा…… लेकिन हम अब भी सोये हुये थे….. इसपर अगर कोई असली पुरजोर आंदोलन हुआ तो वह किया 2016 में मराठा समाज ने…. जब कुछ दलितों ने मराठा बच्ची का बलात्कार किया था और उल्टा इस काले कानून का प्रयोग कर मराठाओं को ही फँसा दिया था….. तब जाकर पूरे राज्य में आंदोलन हुआ था…. लेकिन अब यह आंदोलन भी राजनीति की भेंट चढ चुका है…… पर तब भी मराठाओं के अलावा समस्त सवर्ण समाज … OBC वर्ग सोया रहा।….. वह तो धन्यवाद दो सरकारी कर्मचारी डॉ महाजन का जो इस केस के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट चले गये।
डॉ महाजन पर हरिजन एक्ट की धाराओं के तहत FIR दर्ज की गयी… दरअसल हुआ यह था किसी दलित ने उनके दो जुनियरों के खिलाफ जातिसुचक शब्द कहने की वजह से sc-st act के तहत FIR दर्ज कराई जिसे डॉ महाजन झुठा कहते हुये रद्द करवा दिया… दलित जी ने उनपर ही केस ठोक दिया…. डॉ महाजन बॉम्बे हायकोर्ट गये कोई सुनवाई नहीं हुई ….. फिर तब जाकर अंत में डॉ महाजन बॉम्बे हायकोर्ट के फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट चले गये….. अब मामला State Vs Dr.Mahajan हो गया….. जिसमें सुप्रीम कोर्ट के जज जस्टिस गोयल और जस्टिस युयु ललित ने SC-ST एक्ट के दुरूपयोग की बात मानी… और नयी गाइडलाइन्स जारी की….
अब जाकर हम हल्का फुल्का जागे….. और सुप्रीम कोर्ट के जयकारे लगाने लगे….. लेकिन भाई यह तो जान लो की सुप्रिम कोर्ट ने क्या किया है?… उसने मुर्दे का एक बाल उखाड़ दिया और आपको लगा मुर्दा हल्का हो गया…. कानून आज भी जस का तस ही है…. बस उनसे यह कहा है मामले की जाँच हफ्ते दस दिन में करो उसके बाद गिरफ्तारी हो….. किसी सरकारी कर्मचारी पर उससे वरिष्ठ अधिकारी की मर्जी के बिना FIR दर्ज न हो…. अग्रिम जमानत मिले…… यह अग्रिम जमानत ही एकलौती बड़ी बात है…. लेकिन यह सब तो राज्य स्तर पर पहले भी हो ही रहा था…. मायावती तक ने बिना पुरी जाँच के बिना गिरफ्तारी पर रोक लगा दी थी….. ताकी इसका दुरूपयोग न हो…. DSP लेवल के अधिकारी जाँच करते हैं तब ही कुछ होता है।….
और सबसे जरूरी बात यह छुट भी केवल तब मिलेगी जब FIR किसी दलित को जाति सुचक अपशब्द कहने पर दर्ज किया जा रहा हो… अन्य मामलों में तो कोई छुट नहीं है ना..?…..अब इस हल्के फुल्के बदलाव से क्या बदलने वाला था? ….यह कानून तो रद्द होगा नहीं कारण सुप्रीम कोर्ट का कहना है कि आंकड़े साबित करते हैं कि दलितों पर अत्याचार और बढे हैं… और किसी कानून का दुरूपयोग हो रहा है महज इस कारण से अगर किसी कानून को रद्द किया जाने लगा तो फिर इस देश में कोई कानून बचेगा ही नहीं… कारण दुरूपयोग कौन से कानून का नहीं है?…
अब बताओ इसमें मोदी की क्या गलती है?…. इस कानून को आये लगभग 30 वर्ष हो गये…..जिसने इसे लाया उस पार्टी को आप अब इस 30 में से 20 वर्ष सत्ता सौंप चुके हो…. 30 वर्ष में इसके खिलाफ कोई आंदोलन नहीं किया…… सोये रहे…. और अपने इस निकम्मेपन का बिल मोदी पर फाड़ रहे हो?….. क्या मोदी जी ने कहा था मैं सत्ता में आऊँगा तो इस कानून को रद्द कर दूँगा? …. आप लोग तो आजकल ऐसे व्यवहार कर रहे हो जैसे सब मोदी जी का किया धरा हो…. आप लोग सोये थे दुसरी पार्टी उग्र थी….. शांतीदुतों,वामीयों,ईसाइयों और समस्त देश तोड़ने वाली शक्तियों का सबसे मजबूत कंधा आज के दौर में दलित है…. प्रपोगेंडा से उन्हें ऐसे भड़काया गया जैसे सरकार न्यायालय के साथ मिलकर इस कानून को ही खतम कर दिया गया हो….. लेकिन सरकार ने इस प्रपोगेंडा की हवा निकाल कर रख दी…. वरना देश भर में दलितों के आड़ में छिपकर भयंकर तांडव मचाने की साजिश थी।
अब आप सरकार की इस मजबूरी को न समझते हुये अगर इसके खिलाफ माहौल बनाना चाहते हो तो क्या कर सकते हैं। जिस पार्टी ने इस कानून को लाया उसको ही आप जाने अनजाने मजबूत कर रहे है न? जिस पार्टी ने वोट बैंक के लिये इस कानून को लाया वह ज्यादा बड़ी अपराधी है या जिसने अराजकता से देश को बचाने के लिये इस सुक्ष्म बदलाव को वापस पहले की तरह बहाल किया वह दोषी है? अपने विवेक का इस्तेमाल करें। प्रपोगेंडा में न बहें। बाकी अगर इस कानून को लाने वाली पार्टी को इनाम देने की ठान ही ली है, तो ऑल द बेस्ट। ऐसे ही और भी नये नये कानून देखने के लिये NOTA ही दबायें।