दोस्तों आजकल हमारी सभ्यता, समाज और राष्ट्र के बहुत ही महत्वपूर्ण पर्व नवरात्र, दशहरा और दीपावली आने वाले हैं, तो मैं इस विषय में एक बहुत ही महत्वपूर्ण बिंदु जो कि हमारी सामाजिक और आर्थिक समृद्धि, न्याय और समरसता से जुड़ा हुआ है, आपको सामने रखना चाहता हूं यह बिंदु है कि अगर हम थोड़ा सा पीछे मुड़कर हमारे सांस्कृतिक और सामाजिक पृष्ठों के इतिहास पर नजर डालें तो हमें यह देखने को मिलेगा कि यह त्यौहार हमारे समाज के तमाम वर्गों को एकजुट करके भाईचारे की भावना को प्रबल करने और समरसता स्थापित करने में अहम भूमिका निभाते थे,
इन त्योहारों की शुरू से ही यह विशेषता रही है की इनमें कारीगर वर्ग, आदिवासी और गांव के छोटे मजदूर अपना हाथों का बना सामान जैसे कि मिट्टी के बने दीपक, देवताओं की मूर्तियां, फूलों की मालाएं आदि को बेचकर अच्छी खासी आजीविका कमा लेते थे और इस तरह यह त्यौहार जीवन में हर्षोल्लास एवं रोशनी भर के उनको आर्थिक बल देते थे परंतु कितने दुर्भाग्य की बात है कि आज की वैश्विक मंडी रूपी अर्थव्यवस्था ने हमारे समाज के कारीगर, मजदूर गरीब और आदिवासी वर्ग को बहुत ज्यादा नुकसान पहुंचाया है क्योंकि आज देखने में आ रहा है कि चाहे नवरात्रि में, चाहे दशहरा हो चाहे दिवाली हो इन पर्वों पर बिकने वाला सामान या तो दूसरे देशों से निर्यात किया जा रहा है या फिर हमारे ही देशों की कुछ बड़ी कंपनियां इस पर एक तरफा मुनाफा कमा रही हैं और हमारे समाज के कारीगर और मजदूर वर्ग जिन्हें इन त्योहारों का साल भर बेसब्री से इंतजार रहता था उनकी लघु अर्थव्यवस्था को बहुत ही गंभीर चोट पहुंची है
दोस्तों मैं आपका आवाहन करना चाहता हूं कि हम सब का फर्ज है कि इन दिनों में हम केवल और केवल स्वदेशी वस्तुएं ही खरीदें और स्वदेशी से मेरा अभिप्राय है कि देश के कारीगरों मजदूरों, गांव वालों और आदिवासियों के हाथों द्वारा बड़े प्यार और उत्साह से बना हुआ सामान जैसे कि मिट्टी के बने दीपक, मूर्तियां आदि.
हो सकता है कि इनकी कीमत फैक्ट्री के बल्क में तैयार होने वाले कमर्शियल माल से थोड़ी ज्यादा हो परंतु हमारे देश समाज के के मजदूर और गरीब भाई बहनों को इससे बहुत ज्यादा फायदा होगा इनसे यह त्यौहार उनके भी जीवन में पहले की तरह उमंग और खुशी लेकर आएंगे और जैसा कि हमारी परंपरा और इतिहास रहा है कि हमारा समाज सारे त्यौहारों, मेलों की खुशियां समाज के सभी वर्गों से मिलकर बनाता रहा है तो उस परंपरा को हम दोबारा जागृत करेंगे और हमारे समाज के गरीब और कारीगर वर्ग के साथ हम समाजिक भाईचारे का संदेश देने वाले त्योहारों की खुशियां बांट सकेंगे
सोचिए की इन धार्मिक और सामाजिक पर्व में अगर हमारे द्वारा किया गया खर्चा हमारे ही समाज के उन वर्गों को जो कि आज की वैश्विक आर्थिक व्यवस्था में अपनी पटरी से उतर ते जा रहे हैं उनको आर्थिक फायदा पहुंचाए और उनके घरों में भी इन त्योहारों की खुशियां लेकर के आए तो हमारे त्योहारों की खुशियां कितनी बढ़ जाएंगी और इन पर्वों का जो उद्देश्य सदियों से रहा है वह कितना सार्थक होगा एक छोटा सा एफर्ट हमारे अर्थव्यवस्था और समाज के खुशहाली के लिए एक बहुत बड़ा कदम साबित हो सकता है
(वरुण , शोधकर्ता पंजाब विश्वविद्यालय, चंडीगढ)