चिड़ियों से मैं बाज लडाऊं , गीदड़ों को मैं शेर बनाऊ।”
“सवा लाख से एक लडाऊं तभी गोबिंद सिंह नाम कहाउँ !!”
आज सभी स्कूल गुरु परिवार की शहीदी को छोड़ क्रिसमस के जश्न में डूबे हुए हैं इससे बड़ी शर्म की बात क्या हो सकती है सिख माइनॉरिटी का लाभ लेने वाले स्कूल भी क्रिसमस डे मनाते हैं ना की बलिदानी दिवस
आज जब पंजाब में धर्मान्तरण की आंधी आई हुई है , गांव – गांव में पैसों का लालच देकर लोगो को ईसाई बनाया जा रहा।
आज पूरे देश मे युवाओं में क्रिसमस ओर नया साल मनाने की योजनाएं बन रही लेकिन उन्हें यह नहीं पता कि 3 सदी पहले 22 दिसंबर को एक ऐसायुद्ध हुआ था जिसने मुगल शासन की नींव हिला दी थी और सिख गुरु श्री गोविंद सिंह ने अपने पुत्रों की शहादत दी थी धर्म की रक्षा के लिए। यह युद्ध कहलाता है चमकौर का युद्ध जहां 10 लाख मुग़ल सैनिकों पर भारी पड़े थे 40 सिक्ख।दुनिया के इतिहास में ऐसा युद्ध ना कभी किसी ने पढ़ा होगा ना ही सोचा होगा, जिसमे 10 लाख की फ़ौज का सामना महज 42 लोगों के साथ हुआ था और जीत किसकी होती है? लेकिन अफसोस आज की पीढ़ी को इसके बारे में पता भी नहीं है क्योंकि इस युद्ध के बारे में शिक्षा की किताबों में शामिल नहीं किया गया नीति निर्धारकों द्वारा। गुरू साहिब ने दोनों साहिबजादों को शहीद होते देखकर अकालपुरूख (ईश्वर) के समक्ष धन्यवाद, शुकराने की प्रार्थना की और कहा:‘तेरा तुझ को सौंपते, क्या लागे मेरा’।
जो बोले सो निहाल सत श्री अकाल ,
वाहे गुरू दा खालसा वाहे गुरू दी फतह…..
आज के युगपक्ष में मेरा आलेख गुरु गोविंद सिंह को समर्पित