के के शर्मा : सबरीमाला मंदिर पर घमासान थमने का नाम नहीं ले रहा है. बुधवार को 10-50 साल की महिलाओं के लिए मंदिर के कपाट खोल दिए गए, लेकिन अब तक कोई भी महिला मंदिर में प्रवेश नहीं कर पाई है. शुक्रवार को दो तीन महिलाओं रेहाना फातिमा, मैरी स्वीटी और हैदराबाद के मोजो टीवी की पत्रकार कविता जक्कल ने मंदिर में प्रवेश करने की कोशिश की, लेकिन किसी को कामयाबी हासिल नहीं हुई.
लेकिन मंदिर में घुसने को लेकर अब तक कोई हिंदू महिला आगे नहीं आई. शुक्रवार को जिन महिलाओं ने एंट्री करने की कोशिश की, उनमें से रेहाना मुस्लिम और स्वीटी ईसाई हैं. एेसे में इन महिलाओं के मंदिर में प्रवेश की कोशिश पर सवाल उठते हैं कि इन महिलाओं का हिंदू धर्म से कोई नाता नहीं है और न ही उस पर विश्वास है. एेसे में वे मंदिर में एंट्री क्यों करना चाहती हैं ???
सैकड़ों की तादाद में महिलाएं भी महिलाओं के मंदिर में प्रवेश का विरोध कर रही हैं. उनका कहना है कि वे भगवान अयप्पा के दर्शन करने के लिए 50 वर्ष की आयु तक इंतजार करने को तैयार हैं.
वैसे भारत में ऐसे कई मंदिर-मस्जिद और अन्य धार्मिक स्थल हैं जिनमें कपड़ों को लेकर, धार्मिक मान्यता आदि के चलते लोगों के प्रवेश पर प्रतिबंध है. ऐसे ही धार्मिक स्थलों में से एक है केरल का सबरीमाला मंदिर.
बात सामने आ रही है कि मंदिर में 10 से 50 साल तक की महिलाओं के प्रवेश न होने के पीछे कारण उनके पीरियड्स हैं. जबकि यह पूरी सच्चाई नहीं है. मंदिर के आख्यान में इसके पीछे कोई दूसरी ही कहानी है.मंदिर के देवता ने ले रखी है शादी न करने की शपथ।आख्यानों (पुरानी कथाओं) के अनुसार, अयप्पा अविवाहित हैं. और वे अपने भक्तों की प्रार्थनाओं पर पूरा ध्यान देना चाहते हैं. साथ ही उन्होंने तब तक अविवाहित रहने का फैसला किया है जब तक उनके पास कन्नी स्वामी (यानी वे भक्त जो पहली बार सबरीमाला आते हैं) आना बंद नहीं कर देते.”माना जाता है कि अयप्पा किसी कहानी का हिस्सा न होकर एक ऐतिहासिक किरदार हैं. वे पंथालम के राजकुमार थे. यह केरल के पथानामथिट्टा जिले में स्थित एक छोटा सा राज्य था. वह महल जहां अयप्पा बड़े हुए वह आज भी है और वहां भी लोग जा सकते हैं. अयप्पा के सबसे वफादार लोगों में से एक थे वावर (मलयालम में बाबर को कहते हैं). यह एक अरब कमांडर थे. जिन्हें अयप्पा ने युद्ध में हराया था.वावर की मान्यता आज भी है. माना जाता है कि इरूमेली मस्जिद में आज भी उसकी रूह बसती है. वह 40 किमी के कठिन रास्ते को पार करके सबरीमाला आने वाले तीर्थयात्रियों की रक्षा करती है. सबरीमाला जाने वाला रास्ता बहुत कठिन है. जिसे जंगल पार करके जाना पड़ता है. साथ ही पहाड़ों की चढ़ाई भी है क्योंकि यह मंदिर पहाड़ी के ऊपर बना है. मुस्लिम भी इरूमेली की मस्जिद और वावर की मजार पर आते हैं. यह मंदिर के सामने ही पहाड़ी पर स्थित है.
सबरीमाला भारत के ऐसे कुछ मंदिरों में से है जिसमें सभी जातियों के स्त्री (10-50 उम्र से अलग) और पुरुष दर्शन कर सकते हैं. यहां आने वाले सभी लोग काले कपड़े पहनते हैं. यह रंग दुनिया की सारी खुशियों के त्याग को दिखाता है. इसके अलावा इसका मतलब यह भी होता है कि किसी भी जाति के होने के बाद भी अयप्पा के सामने सभी बराबर हैं. साथ ही यहां पर उन भक्तों को ज्यादा तवज्जो दी जाती है, जो मंदिर में ज्यादा बार आए होते हैं न कि उनको जिनकी जाति को समाज तथाकथित रूप से ऊंचा मानता हो.इसके अलावा सबरीमाला आने वाले भक्तों को यहां आने से 40 दिन पहले से बिल्कुल आस्तिक और पवित्र जीवन जीना होता है. देवैया लिखते हैं कि इस मंदिर के जैसे रिवाज आपको देश में कहीं और देखने को नहीं मिलेंगे. क्योंकि यहां दर्शन के दौरान भक्त ग्रुप बनाकर प्रार्थना करते हैं. एक ‘दलित’ भी इस प्रार्थना को करवा सकता है और अगर उस ग्रुप में कोई ‘ब्राह्मण’ है तो वह भी उसके पैर छूता है.
भगवान अय्यपा के दर्शन के लिए सबरीमाला मंदिर आने वाले भक्तों के लिए कुछ नियम तय हैं। उन्हें सिर पर इरुमुडी (एक खास पोटली) रखकर मुख्य द्वार की अठारह सीढ़ियां चढ़ना पड़ती हैं।
सबरीमाला मंदिर के मुख्य द्वार की 18 सीढ़ियों से जुड़ी कई मान्यताएं हैं। सबसे प्रचलित मान्यता के अनुसार पहली पांच सीढ़ियां पांच इंद्रियों का प्रतीक हैं। अगली आठ मनुष्य के आठ भावों के प्रतीक हैं। इसके बाद तीन सीढ़ियां तीन गुणों को दर्शाती हैं और आखिरी दो सीढ़ियां विद्या और अविद्या की प्रतीक हैं। इन सीढ़ियों को 18 पुराणों, सबरीमाला के आसपास के 18 पहाड़ों, अयप्पा के 18 शस्त्रों, 18 सिद्ध पुरुषों, 18 देवताओं और 18 गुणों से भी जोड़ा जाता है। इन पर चढ़ने के नियम भी कठिन हैं।
18 सीढ़ियों को पतिनेत्तामपदी कहा जाता है। ये ग्रेनाइट से बनी हैं। 1985 में इन्हें सोना, चांदी, तांबा, लोहा और टिन के मिश्रण से ढंक दिया गया। ये सीढ़ियां सबरीमाला मंदिर को बाकी के स्वामी अयप्पा मंदिरों से अलग बनाती हैं।
इरुमुडी दो हिस्सों में बांधी जाती है। एक तरफ पूजा की सामग्री होती है और दूसरी तरफ भक्तों के निजी इस्तेमाल का सामान। यहां ज्यादातर भक्त नीले, काले, भगवा या सफेद कपड़ों में ही आते हैं। नीला भगवान का वर्ण है। काले कपड़े शनि दोष दूर करने के लिए पहने जाते हैं। वहीं, भगवा और सफेद रंग धार्मिक माने जाते हैं।