“शिक्षा सूचना नहीं जीवन का साध्य एवं यथार्थ बोध ”
पंजाब विश्वविद्यालय में रसायन विभाग के भटनागर सभागार में 53 वें अकादमिक सम्मेलन का आयोजन किया गया। इस अकादमी कॉन्फ्रेंस में भारतीय शिक्षण मंडल के अखिल भारतीय संगठन मंत्री माननीय मुकुल जी कानितकर ने विश्वविद्यालय के युवाओं को संबोधित करते हुए कहा शिक्षा सूचना का संकलन और संसाधनों के निर्माण का नाम नहीं बल्कि जीवन का साध्य है । देश समाज एवं व्यक्ति की यथार्थ चेतना का बोध है। आज के युवाओं को वीरब्रती बनना होगा ,दृढ़ प्रतिज्ञ होना होगा, मनकी असीमित शक्तियों को जगाना होगा। हमारे देश का युवा आज विश्व में भारतीय संस्कृति परंपरा और मूल्य का प्रसार कर रहा है लेकिन हमारे सामने चुनौतियां भी है हमें और हमारे संस्थानों को पाश्चात्य की अंधी नकल से बचना होगा।
शिक्षा के साथ युवाओं में सामाजिक दायित्व बोध नैतिकता सामाजिक चिंतन एवं चेतना का भी विकास करना होगा आज की शिक्षा सूचना तकनीकी विज्ञान मनुष्यता के निर्माण में सहायक बने मानवता के विकास में यदि आज आज की शिक्षा सहयोगी नहीं है मनुष्य मात्र के जीवन के उत्कर्ष में अपना योगदान नहीं दे रही है उसके सद्गुणों के आचरण के विकास में सहायक नहीं हो रही है तो ऐसी शिक्षा और शोध हमारी सभ्यता को अग्रगामी नहीं बना पाएंगे विश्वविद्यालयों में शोध की प्रक्रिया दिन प्रतिदिन गंभीर समस्याओं से ग्रसित होती जा रही है आज अनुसंधान केवल जीवन व्रृत्ति की खोज का साधन बनता जा रहा है।
अनुसंधान एवं शोध समाज के उत्थान और संस्कृति के पुनरुत्थान के लिए होना चाहिए ।जब प्रतिभा एवं संस्कार परिष्कृत हो करके हमारे जीवन और चरित्र में उतरते हैं तब आदर्श की स्थापना होती है। इसी आदर्श और मानवता के लिए हमारे ऋषि-मुनियों और तपस्वियों ने युगो युगों की साधना से वेदों उपनिषदों और दर्शन ग्रंथों की रचना की उनका जीवन तपस्या एंव साधना का जीवन था ।उनके जीवन का उद्देश मानवता के उत्थान की तपस्या में निहित था। आज आवश्यकता है शिक्षा के पुनर्मूल्यांकन की, अंतश्चेतना जगाने वाली शिक्षा देने की। छुपी हुई शिक्षा जीवन का सर्वांगीण विकास और समाज के समक्ष आदर्श नहीं प्रस्तुत कर सकते हैं।
परीक्षा प्रणाली में रटंत विद्या जोर दिया जाता है ,अंकों के आधार पर उत्कृष्टता का निर्धारण किया जाता है जो सही नहीं है। एक बच्चा जन्म के साथ प्रकृति के बीच समझ विकसित करता है, अनुभव प्राप्त करता है ,उसी प्रकार हमें समाज के यथार्थ अनुभव शिक्षा के द्वारा प्राप्त होने चाहिए। शोध का तात्पर्य स्वयं और समाज से साक्षात्कार करने की प्रक्रिया है। माननीय मुकुल कानितकर जी ने अपने अमूल्य विचारों से विश्वविद्यालय के अकादमिक सम्मेलन में विद्यार्थियों में प्रेरणा एवं मूल्य वर्ती शिक्षा के प्रति जागृति का संदेश दिया। कुलपति श्री राजकुमार जी ने मुकुल जी के प्रति धन्यवाद ज्ञापित किया। इस अकादमिक सम्मेलन की मुख्य समन्वयक प्रोफेसर श्रीमती प्रोमिला पाठक ने सभी आए हुए गणमान्य अतिथियों एवं सभागार में उपस्थित श्रोताओं का अभिनंदन एवं आभार प्रकट किया।