आज के हीरो का जीवन परिचय !!आम बेचकर पढ़ाई की, नंगे पांव कॉलेज गए और भारत को चांद के इतना करीब लेकर आ गए साइंटिस्ट के. #सिवन
आप भारत के मिशन चंद्रयान 2 की पूरी कहानी जानते हैं. नहीं जानते हैं, तो यहां क्लिक करके पढ़ सकते हैं. ये भी जानते हैं कि चंद्रयान 2 का ऑर्बिटर तो चंद्रमा के चक्कर लगा रहा है, लेकिन चंद्रयान 2 के लैंडर विक्रम से वैज्ञानिकों का संपर्क टूट गया है. इस पूरी प्रक्रिया में एक आदमी प्रधानमंत्री मोदी के गले लगकर रोते हुए दिखा, जिनका नाम है के सिवन. ISRO यानी कि इंडियन स्पेस रिसर्च ऑर्गनाइजेशन के मुखिया. ये वो आदमी है, जिसने उस कारनामे को करने का हौसला दिखाया, जिसे करने की कोशिश दुनिया में अब तक कोई भी देश नहीं कर पाया है. ये दीगर बात है कि वो आदमी अपनी कोशिशों में पूरी तरह से कामयाब नहीं हो पाया, लेकिन उसने और उसकी टीम ने जो किया है, अब पूरी दुनिया उसकी मिसाल दे रही है. लेकिन के सिवन का सफर इतना आसान नहीं रहा है. उनके संघर्ष की दास्तां बेहद लंबी है.
के सिवन का पूरा नाम है कैलाशावादिवो सिवन. कन्याकुमारी में पैदा हुए. गांव का नाम सरक्कालविलाई. परिवार गरीब था. इतना कि के सिवन की पढ़ाई के लिए भी पैसे नहीं थे. गांव के ही सरकारी स्कूल में पढ़ते थे. 8वीं तक वहीं पढ़े. आगे की पढ़ाई के लिए गांव से बाहर निकलना था. लेकिन घर में पैसे नहीं थे. के सिवन को पढ़ने के लिए फीस जुटानी थी. और इसके लिए उन्होंने पास के बाजार में आम बेचना शुरू किया. जो पैसे मिलते, उससे अपनी फीस चुकाते. इसरो चेयरमैन बनने के बाद के सिवन ने अंग्रेजी अखबार डेक्कन क्रॉनिकल से बातचीत के दौरान बताया था-
‘मैं एक गरीब परिवार में पैदा हुआ था. मेरे बड़े भाई ने पैसे न होने की वजह से मेरी पढ़ाई रुकवा दी. मेरे पिता कैलाशा वादिवू एक किसान थे, जो पास के बाजार में आम बेचते थे. मैं साइकल पर आम लेकर जाता था और उसे बाजार में बेचकर अपनी पढ़ाई की फीस चुकाता था.’
आम बेचकर पढ़ाई करते-करते के सिवन ने इंटरमीडिएट तो कर लिया, लेकिन ग्रैजुएशन के लिए और पैसे चाहिए थे. पैसे न होने की वजह से उनके पिता ने कन्याकुमारी के नागरकोइल के हिंदू कॉलेज में उनका दाखिला करवा दिया. और जब वो हिंदू कॉलेज में मैथ्स में बीएससी करने पहुंचे, तो उनके पैरों में चप्पलें आईं. धोती-कुर्ता और चप्पल. इससे पहले के सिवन के पास कभी इतने पैसे नहीं हुए थे कि वो अपने लिए चप्पल तक खरीद सकें. सिवन ने पढ़ाई की और अपने परिवार के पहले ग्रैजुएट बने. मैथ्स में 100 में 100 नंबर लेकर आए. और फिर उनका मन बदल गया.
अब उन्हें मैथ्स नहीं, साइंस की पढ़ाई करनी थी. और इसके लिए वो पहुंच गए एमआईटी. यानी कि मद्रास इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नॉलजी. वहां उन्हें स्कॉलरशिप मिली और इसकी बदौलत उन्होंने एरोऩॉटिकल इंजीनियरिंग (हवाई जहाज बनाने वाली पढ़ाई) में बीटेक किया. साल था 1980. एमआईटी में उन्हें एस नमसिम्हन, एनएस वेंकटरमन, ए नागराजन, आर धनराज, और के जयरमन जैसे प्रोफेसर मिले, जिन्होंने के सिवन को गाइड किया. बीटेक करने के बाद के सिवन ने एयरोस्पेस इंजीनियरिंग में मास्टर्स किया बैंगलोर के इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ साइंस से. और जब के सिवन आईआईएस बैंगलोर से बाहर निकले तो वो वो एयरोनॉटिक्स के बड़े साइंटिस्ट बन चुके थे. धोती-कुर्ता छूट गया था और वो अब पैंट-शर्ट पहनने लगे थे. ISRO यानी इंडियन स्पेस रिसर्च ऑर्गनाइजेश के साथ उन्होंने अपनी नौकरी शुरू की. पहला काम मिला पीएसएलवी बनाने की टीम में. पीएसएलवी यानी कि पोलर सेटेलाइट लॉन्च वीकल. ऐसा रॉकेट जो भारत के सेटेलाइट्स को अंतरिक्ष में भेज सके. के सिवन और उनकी टीम इस काम में कामयाब रही.