लंबे समय से चली आ रही बातचीत के बाद शुक्रवार को भारत और जापान के बीच न्यूक्यिलर एनर्जी डील हो गई। पीएम नरेंद्र मोदी और उनके जापानी समकक्ष शिंजो अबे बीच हुई बातचीत के बाद यह डील हुई है। पीएम के दौरे से पहले ही भारत और जापान ने ऐतिहासिक असैन्य परमाणु भागीदारी समझौते पर हस्ताक्षर की पूरी तैयारी कर ली थी और वार्ता के बाद इसकी औपचारिकताएं पूरी कर ली।
पीएम मोदी ने इस समझौते को ऐतिहासिक करार देते हुए जापान की संसद और वहां के लोगों को धन्यवाद दिया। जापानी प्रधानमंत्री ने भी समझौते को एतिहासिक बताया और कहा कि उन्हें खुशी है कि दोनों देशों ने परमाणु उर्जा के शांतिपूर्ण इस्तेमाल का समझौता किया है ।
भारत ने अब तक 11 देशों से ये समझौता किया है जिनमें अमेरिका , रुस , ऑस्ट्रेलिया , कनाडा और दक्षिँण कोरिया शामिल है। लेकिन जापान के साथ हुआ ये समझौता भारत के लिए बेहद बडी कामयाबी है । जापान परमाणु मुद्दे पर अत्यधिक संवेदनशील रहता है। वजह यही है कि वो एकमात्र देश है, जिस पर परमाणु बम गिराए गए और जिसके प्रभावों से वह आज तक नहीं उबरा है।
इसलिए असैनिक परमाणु सहयोग का समझौता उसने उन्हीं देशों से किए हैं, जिन्होंने परमाणु अप्रसार संधि पर दस्तखत किए। भारत पहला देश है जिसने एनपीटी पर दस्तखत न करने के बावजूद जापान से ये समझौता किया है। अमेरिका से परमाणु समझौते के बाद भी जापान सहमत नहीं था लेकिन पीएम मोदी की कूटनीति रंग लाई और ये समझौता हो गया।
इस समझौते से जापान भारत को परमाणु प्रौद्योगिकी का निर्यात कर सकेगा। इससे दोनों देशों के बीच द्विपक्षीय आर्थिक और सुरक्षा संबंधों में प्रगाढ़ता आएगी। साथ ही अमेरिकी कंपनियों को भारत में परमाणु संयंत्र स्थापित करने का रास्ता भी साफ हो जाएगा।
अमेरिका से परमाणु समझौते के बाद वहीं दो बड़ी कंपनियां इसलिए भारत को रिएक्टर नहीं बेच पाई हैं, क्योंकि उनमें जापानी कंपनी हिताची और तोशिबा की हिस्सेदारी भी है। समझौते के बाद भारत की एनएसजी सदस्यता का रास्ता भी आसान होगा।
अभी भारत का परमाणु ऊर्जा उत्पादन 4780 मेगावाट है जिसे 2020- 21 तक 14580 मेगावाट करने का लक्ष्य रखा गया है और इसे पूरा करने में ये समझौता मददगार होगा। पिछले साल दिसंबर में जब जापान के प्रधानमंत्री शिंजो अबे भारत यात्रा पर आए थे, तभी दोनों देशों में असैन्य परमाणु ऊर्जा क्षेत्र में साझेदारी पर व्यापक सहमति बन गई थी लेकिन कुछ मसले नहीं सुलझ पाने के कारण इस पर हस्ताक्षर नहीं हो पाया था।
जापान भारत से ये भरोसा चाह रहा था कि वो परमाणु प्रौद्योगिकी का इस्तेमाल सैन्य उद्देश्यों या परमाणु परीक्षणों के लिए नहीं करने का वचन दे।
फिलहाल दोनों देशों के बीच असैन्य परमाणु सहयोग को लेकर हुआ करार केवल व्यावसायिक और स्वच्छ ऊर्जा का समझौता नहीं है, बल्कि यह शांतिपूर्ण एवं सुरक्षित दुनिया के लिए परस्पर विश्वास एवं रणनीतिक भागीदारी के नए मुकाम का प्रतीक है। ।