के के शर्मा : 444 साल पहले का कलंक योगी ने धो डाला अब पुनः प्रयागराज’ के नाम से जाना जाएगा इलाहाबाद, अकबर ने 444 साल पहले बदला था नाम ।
“प्रयागस्य पवेशाद्वै पापं नश्यति: तत्क्षणात्।” — प्रयाग में प्रवेश मात्र से ही समस्त पाप कर्म का नाश हो जाता है ।
देश के धार्मिक, शैक्षिक और राजनीतिक लिहाज से महत्वपूर्ण शहर इलाहाबाद को अब प्रयागराज के नाम से जाना जाएगा।
काफी समय से की जा रही मांग को आखिरकार मानते हुए उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने कुंभ नगरी इलाहाबाद का नाम प्रयागराज करने का ऐलान कर दिया है। राज्यपाल राम नाईक ने भी इस पर मुहर लगा दी है।
भारतरत्न महामना मदनमोहन मालवीय ने 1939 में इलाहाबाद का नाम बदलने की मुहिम छेड़ी थी। उन्होंने जैसे गंगा रक्षा के लिए आंदोलन चलाया था, ठीक उसी प्रकार देश के उन प्रमुख धार्मिक स्थलों का नाम भी बदलने की मुहिम छेड़ी थी, जिन्हें मुगल शासनकाल में बदला गया था।उस दौर में नाम तो नहीं बदला गया, लेकिन महामना के प्रयास से अधिकतर भारतीय अपने शहर की प्राचीनतम पहचान से जुड़ गए थे। मदन मोहन मालवीय जी ने ने कहा था कि इलाहाबाद तो मध्ययुगीन दास्तां की निशानी है। मुगल आक्रांताओं में से एक अकबर ने हिंदू समुदाय की भावनाओं को दरकिनार कर दिया। गुलामी का वो नाम जिसे हम पिछले 450 साल से ढो रहे हैं उसे बदलने की जरूरत है। यह नाम भारत की संस्कृति और इतिहास पर धब्बे की तरह है ।आज 79 वर्ष बाद भारतरत्न महामना पंडित मदन मोहन मालवीय की इच्छा योगी सरकार ने पूरी करके उन्हें सच्ची श्रद्धांजलि दी है।
प्रयागराज भारत का दूसरा प्राचीनतम बसा नगर है ओर उत्तर प्रदेश के बड़े जनपदों में से एक है। यह गंगा, यमुना तथा गुप्त सरस्वती नदियों के संगम पर स्थित है। संगम स्थल को त्रिवेणी कहा जाता है एवं यह हिन्दुओं के लिए विशेषकर पवित्र स्थल है। प्रयाग में आर्यों की प्रारंभिक बस्तियां स्थापित हुई थी।पुराणों में वर्णित है “प्रयागस्य पवेशाद्वै पापं नश्यति: तत्क्षणात्।” — प्रयाग में प्रवेश मात्र से ही समस्त पाप कर्म का नाश हो जाता है ।
इलाहाबाद, अपने गौरवशाली अतीत एवं वर्तमान के साथ भारत के ऐतिहासिक एवं पौराणिक नगरों में से एक है। हिन्दू मान्यता अनुसार, यहां सृष्टिकर्ता ब्रह्मा ने सृष्टि कार्य पूर्ण होने के बाद प्रथम यज्ञ किया था। इसी प्रथम यज्ञ के प्र और याग अर्थात यज्ञ से मिलकर प्रयाग बना और उस स्थान का नाम प्रयाग पड़ा जहाँ भगवान श्री ब्रम्हा जी ने सृष्टि का सबसे पहला यज्ञ सम्पन्न किया था। इस पावन नगरी के अधिष्ठाता भगवान श्री विष्णु स्वयं हैं और वे यहाँ माधव रूप में विराजमान हैं। भगवान के यहाँ बारह स्वरूप विध्यमान हैं। जिन्हें द्वादश माधव कहा जाता है। सबसे बड़े हिन्दू सम्मेलन महाकुंभ की चार स्थलियों में से एक है, शेष तीन हरिद्वार, उज्जैन एवं नासिक हैं। हिन्दू धर्मग्रन्थों में वर्णित प्रयाग स्थल पवित्रतम नदी गंगा और यमुना के संगम पर स्थित है। यहीं सरस्वती नदी गुप्त रूप से संगम में मिलती है, अतः ये त्रिवेणी संगम कहलाता है, जहां प्रत्येक बारह वर्ष में कुंभ मेला लगता है।प्रयाग सोम, वरूण तथा प्रजापति की जन्मस्थली है। प्रयाग का वर्णन वैदिक तथा बौद्ध शास्त्रों के पौराणिक पात्रों के सन्दर्भ में भी रहा है। यह महान ऋषि भारद्वाज, ऋषि दुर्वासा तथा ऋषि पन्ना की ज्ञानस्थली थी। ऋषि भारद्वाज यहां लगभग 5000 ई०पू० में निवास करते हुए 10000 से अधिक शिष्यों को पढ़ाया। वह प्राचीन विश्व के महान दार्शनिक थें।
यह क्षेत्र पूर्व से मौर एवं गुप्त साम्राज्य के अंश एवं पश्चिम से कुशान साम्राज्य का अंश रहा है। बाद में ये कन्नौज साम्राज्य में आया। वर्धन साम्राज्य के राजा हर्षवर्धन के राज में 644 CE में भारत आए चीनी यात्री ह्वेन त्सांग ने अपने यात्रा विवरण में पो-लो-ये-किया नाम के शहर का जिक्र किया है, जिसे प्रयागराज माना जाता है। उन्होंने दो नदियों के संगम वाले शहर में राजा शिलादित्य (राजा हर्ष) द्वारा कराए एक स्नान का जिक्र किया है, जिसे प्रयाग के कुंभ मेले का सबसे पुराना और ऐतिहासिक दस्तावेज माना जाता है।
मध्यकालीन इतिहासकार बदायूनी के अनुसार,1575 में संगम के सामरिक महत्व से प्रभावित होकर सम्राट अकबर ने इलाहाबास के नाम से शहर की स्थापना की जिसका अर्थ है- अल्लाह का शहर। उन्होंने यहां इलाहाबाद किले का निर्माण कराया, जिसे उनका सबसे बड़ा किला माना जाता है। यह किला चार भागो में बनवाया गया। पहले हिस्से में 12 भवन एवं कुछ बगीचे बनवाये गयें। दूसरे हिस्से में बेगमोँ और शहजादियों के लिऐ महलो का निर्माण करवाया गया। तीसरा हिस्सा शाही परिवार के दूर के रिश्तेदारों और नैकरों के लिऐ बनवाया गया और चौथा हिस्सा सैनिको के लिये बनवाया गया। इस किले में 93 महर, 3 झरोखा,25 दरवाजें, 277 इमारतें, 176 कोठियाँ 77 तहखानें व 20 अस्तबल और 5 कुएं हैं।अकबर की राजपूत पत्नी जोधाबाई का महर जो रानी महल के नाम से जाना जाता हैं। यह महल किले में स्थित हैं।
1858 ई० — आजादी के प्रथम संग्राम 1857 के पश्चात ईस्ट इंडिया कंपनी ने मिंटो पार्क में आधिकारिक तौर पर भारत को ब्रिटिश सरकार को सौंप दिया था। इसके बाद शहर का नाम इलाहाबाद रखा गया तथा इसे आगरा-अवध संयुक्त प्रांत की राजधानी बना दिया गया।
आजादी की लड़ाई का केंद्र इलाहाबाद ही था।भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के दिनों में नेहरु परिवार के पारिवारिक आवास आनन्द भवन एवं स्वराज भवन यहां भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की राजनीतिक गतिविधियों के केन्द्र रहे थे। यहां से हजारों सत्याग्रहियों को जेल भेजा गया था।
इलाहाबाद विश्वविद्यालय ने देश को अनेक प्रखर राजनेता, कानूनविद, कलाकार आदि देकर लोकतंत्र की जड़ें मजबूत की हैं. आजादी की लड़ाई की गरम और नरम दोनों ही धाराओं की यह पौराणिक नगरी गवाह रही।
मदन मोहन मालवीय(स्वतंत्रता सेनानी),मोतीलाल नेहरु (वकील और राजनीतिज्ञ),उपेन्द्रनाथ अश्क(उपन्यासकार),अकबर इलाहाबादी(उर्दू कवि),अमिताभ बच्चन(अभिनेता),इंदिरा गांधी(प्रधान मंत्री),जगदीश गुप्त(कवि, कला-इतिहासज्ञ),जवाहरलाल नेहरु (प्रधान मंत्री एवं राजनीतिज्ञ),धर्मवीर भारती(हिन्दी लेखक),ध्यानचंद(हॉकी खिलाड़ी),पुरुषोत्तमदास टंडन(राजनीतिज्ञ राजनीतिज्ञ और स्वतंत्रता सेनानी),फिराक गोरखपुरी (उर्दु कवि),मणीन्द्र अग्रवाल(संगणक वैज्ञानिक),महर्षि महेश योगी(आध्यात्मिक गुरु)
,महादेवी वर्मा(कवयित्री एवं लेखिका),मुरली मनोहर जोशी(राजनीतिज्ञ, पूर्व कैबिनेट मंत्री),सुमित्रानंदन पंत(हिन्दी कवि),सूर्यकांत त्रिपाठी निराला (हिन्दी कवि),हरिवंशराय बच्चन(कवि) आदि महान हस्तियों की जन्मस्थली है प्रयागराज।
भारत के प्रधानमंत्रियों में से 7 का इलाहाबाद से घनिष्ट संबंध रहा है:-जवाहर लाल नेहरु,लालबहादुर शास्त्री,इंदिरा गांधी,राजीव गांधी,गुलजारी लाल नंदा,विश्वनाथ प्रताप सिंह एवंचंद्रशेखर;ये या तो यहां जन्में हैं, या इलाहाबाद विश्वविद्यालय से पढ़े हैं या इलाहाबाद निर्वाचन क्षेत्र से चुने गए हैं।
प्रयागराज को पार्कों के शहर के रूप से भी जाना जाता है।
इलाहाबाद में ही ऐतिहासिक अल्फ्रेड पार्क भी है. इसी अल्फ्रेड पार्क में मशहूर क्रांतिकारी चंद्रशेखर आजाद ने चारों ओर से अंग्रेजों की पुलिस से घिर जाने पर अपनी कनपटी पर पिस्तौल का घोड़ा दबाकर शहादत दी थी.
कम्पनी बाग: अंग्रेजों द्वारा शहर के बीचोँ बीच बसाया गया यह एक अनोखा बाग हैं। शायद हा किसी शहर के बीचों बीच इतना बड़ा पार्क मिले। इसकी विशालता का अनुमान लगाया जा सकता हैं कि इस बाग के अन्दर एक स्टेडियम, एक म्यूजियम, एक पुस्तकालय, तीन नसरियाँ, एक विश्वविघालय और प्रयाग संगीत समिति भी स्थित हैं
विक्टोरिया मेमोरियल: कम्पनी बाग के बीचो बीच सफेद संगमरमर का बना एक स्मारक हैं। इस मेमोरियल के आस पास के नितान्त सुन्दर पार्क है जो सदैव हरी घास से ढका रहता है।
मिन्टो पार्क, इलाहाबाद: सफेद पत्थर के इस मैमोरियल पार्क में सरस्वती घाट के निकट सबसे ऊंचे शिखर पर चार सिंहों के निशान हैं।
नेहरु पार्क: यह एक आधुनिक पार्क हैं। यह पार्क मैक्फरसन झील के आस पास के स्थान का सौँदर्यीकरण करके बनाया गया हैं। यहाँ पर बोँटिक करने की सुविधा हैं।
भारद्वाज पार्क: यह पार्क भी एक भ्रमण करने योग्य स्थान हैं। इसे बड़े ही सुरुचिपूर्ण ढंग से सजाया गया हैं।
हाथी पार्क: चन्द्रशेखर पार्क के पास स्थित हैं। इसमे पत्थर का एक बड़ा हाथी बच्चोँ के मुख्य आकर्षण का केन्द्र हैं। यह स्थान बच्चोँ के घुमने के लिये हैं।
पीडी टण्डन पार्क: सिविल लाइंस इलाके में एक तिकोने आकार का पार्क। इसके एक कोने पर हनुमान मंदिर चौक है।
खुसरो बाग: इलाहाबाद शहर के पश्चिम छोर इलाहाबाद रेलवे स्टेसन के पास स्थित खुसरो बाग मुगलकालीन इतिहास की एक अमिट धरोहर हैं। यह 17 बीधे के विशाल क्षेत्र में फैला हुआ हैं। यह चारोँ मोटे मोटे दिवारो से घीरा हैं। इसके चारोँ ओर एक एक दरवाजे हैं। जहागीर ने इसे अपना आरामगाह बनाया था। जहागीर के पुत्र खुसरो के नाम पर ही इसका नाम खुसरो बाग पडा। इस बाग में तीन मकबरे हैं। पहला मकबरा शहजादा खुसरो का हैं। इसका मकबरा खुसरो की राजपूत माक शाँह बेगम के लिये बनाया गया था। खुसरो बाग के अन्दर जाने का मुख्य द्रार अति विशाल हैं। इसमें अनेकोँ घोडोँ की नाली लागी हुयी हैं। ऐसी मान्यता हैं कि अपने मालिक की और अपने मालिक कि जान बचायी थी तभी से लोग बाग के अन्दर बने मकबरे में मन्नत मानते हैं। और कार्य के पूरा होने पर इसी दरवाजे में धोडे के नाल लगवा देते हैं।
सभ्यता के प्राम्भ से ही प्रयागराज विद्या, ज्ञान और लेखन का गढ़ रहा है। यह भारत का सबसे जीवंत राजनीतिक तथा आध्यात्मिक रूप से जागरूक शहर है।
के के शर्मा, नवल सागर कुंआ, बीकानेर