नीरज कुमार जोशी : आज इस वर्ष की सांध्यबेला है मतलब साल 2015 विदाई की दहलीज पर खड़ा है और कल से नया साल यानि 2016 की शुरुवात है। मेरे सहकर्मियों, पास-पड़ोस और सोसाईटी आदि सभी में काफी उत्साह दिखाई दे रहा है। जैसे कि बेताबी से वो सब किसी का इंतजार हो। हालांकि ये इंतजार उन्हें नए साल का नहीं है उन्हें तो इंतजार है बस 31st दिसंबर की मध्य रात्रि का। वैसे तो दिसंबर महीना ही सांध्यबेला की तरह है, देखा जाय तो एक जंक्शन पॉइंट जिसके अंत से NEW YEAR यानि साल 2016 की शुरुआत होने जा रही है।
मैं सीधे तौर पर भारतीय सनातन संस्कृति का पुजारी रहा हूँ, इसलिए नव वर्ष भी सनातन संस्कृति के अनुसार मनाता हूँ। सनातन नव-वर्ष “विक्रमी संवत” चैत्र मास में शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा को मनाया जाता है। इसी दिन से वसंत ऋतू की नवरात्रि भी शुरू होती हैं और दुनिया को एक साल में बारह महीने और एक सप्ताह में सात दिन की मान्यता हमारे इसी सनातन धर्म के विक्रमी संवत की देन है। हिन्दी भाषी प्रदेशों के अतिरिक्त महाराष्ट्र में भी नव वर्ष चैत्र शुक्ल प्रतिपदा से ही मनाया जाता है जिसे वहां “गुडी पड़वा” के रूप में लोग धूम-धाम से मनाते हैं। इसके अतिरिक्त पंजाब में नयी फसल की खुशी में बैशाखी के अवसर पर (13-14 अप्रिल), बंगाल में बैशाख मास की प्रतिपदा के अवसर पर, गुजरात में दीपावली के दूसरे दिन “परीवा” के अवसर पर, मलयालम में “ओणम” मलयाली माह छिंगम यानि अगस्त-सितम्बर में, तमिल में “पोंगल” 14-15 जनवरी के अवसर पर, पूरे जैन समाज में “दीपावली” के दिन से नव वर्ष मनाया जाता है। इतने नव वर्ष मानाने के पीछे सबकी अपनी अलग-अलग मान्ययाएं हैं। मैं एक भारतीय होने के नाते इन सब सभ्यताओं का उतना ही सम्मान करता हूँ जितना कि “विक्रमी संवत” का। इसके अतिरिक्त मुस्लिम समुदाय का नववर्ष मोहर्रम से हिजरी संवत के रूप में, पारसियों का नववर्ष “नवरोज” 19 अगस्त से शुरू होता है और ईसाई समाज का नववर्ष एक जनवरी से शुरू होता है। विविधता में एकता वाले इस देश में इतने सब नव वर्ष मनाये जाते हैं लेकिन फिर भी हम लोग क्यों बेसब्री से केवल और केवल एक जनवरी का ही इंतजार करते हैं। क्यों नहीं हम अपनी मान्यताओं का नव-वर्ष मानते। सिद्धांत रूप में हमें अभी इंग्लिश कैलेण्डर का प्रयोग करना पड़ता है वहां तक तो ठीक है लेकिन नव -वर्ष पार्टी के रूप में अन्धानुकरण कहाँ तक सही है।
भारतीय समाज में जितने भी नववर्ष मनाने की परंपराओं के बारे में मुझे जानकारी है इन सब में एक खास बात कॉमन है कि सब के सब नव-वर्ष एक पवित्र त्यौहार के रूप में मनाये जाते हैं जिस दिन लोग सुबह उठाकर दैनिक नित्यकर्म से निवृत्त होकर स्नान करते हैं फिर अपने कुल देवता या अपने ईष्ट देवता का ध्यान पूजन अर्चन करते हैं। छोटों को स्नेह देते हैं बड़ों को प्रणाम करते हैं और आशीर्वाद प्राप्त करते हैं। फिर तरह –तरह के व्यंजन बनाकर मिल-जुलकर भोजन करते हैं या ईष्ट देवता का व्रत रखते हैं और रात्रि जागरण करते हैं और भजन-कीर्तन करते हैं। लेकिन फिर भी सब के सब नववर्ष उन राज्य विशेष तक ही सीमित हैं, मेरे जैसे युवाओं में अधिकांश को तो या पता भी नहीं होता कि आज से हमारा सनातन धर्म की किस सभ्यता का नववर्ष शुरू हो रहा है अलबत्ता 31stदिसंबर और एक जनवरी के सन्देश पैंतालीस दिन पहले से ही आना शुरू हो जाते हैं। यदि मैं चैत्र शुक्ल प्रतिपदा को किसी को नव-वर्ष की हार्दिक शुभकामनाएं दे दूँ या ओणम, पोंगल, परीवा की शुभ कमाना दे दूँ तो कई-कई लोग तो मुझे ऐसे देखते हैं जैसे कि मैं सठिया गया हूँ, पागल हो गया हूँ, कई लोग सीदे तौर पर सवाल करते हैं भाई कौन सा नव वर्ष वो तो जनवरी में हो गया। खैर पागल तो मैं हूँ ही क्योंकि मैं राजीव दीक्षित जी का फौलोवर जो हूँ, मैं स्वदेशी और सनातन संस्कृति की बात जो करता हूँ और आज कल के ज़माने में ये सब कहाँ चलता है किसी को भी हमारे नववर्ष मनाने के पीछे की मान्यतायें नहीं पता, नववर्ष के उत्सव के दौरान होने वाले मंत्र जाप, वैदिक यज्ञ और हवन आज की युवा पीड़ी को अंधविश्वास और अंतश्रद्धा जो लगने लगे हैं।
आज का युवा क्या चाहता है, आज युवा वर्ग की एक ही सोच है “celebration” at mid night of 31stDecember. इस celebration को मैं उत्सव का नाम नहीं दे सकता हूँ क्योंकि जैसा मैंने देखा है हमारा नववर्ष विक्रम संवत, चैत्र शुक्ल प्रतिपदा को जब मनाया जाता है तो उस वक्त वातावरण में एक नयापन का जोश होता है, हर किसान के घर में नयी फसल के कट कर आने का समय भी वही है, इस वक्त प्रकृति में भी परिवर्तन होते हैं जैसे पेड़-पौंधों में फूल, पत्तियां,मंजर, कलियां आदि आना शुरू होते है। वातावरण में मन को आह्लादित कर देने वाला एक नया उल्लास होता है। कहा जाता है कि यह दिन कल्प, सृष्टि, युगादि का प्रारंभिक दिन है इसीलिए सारी सृष्टि सबसे ज्यादा चैत्र में ही महक रही होती है। इस समय न तो अधिक शीत होती है और न ही अधिक गर्मी। पूरा पावन काल। ऐसे संसारव्यापी निर्मलता और कोमलता के बीच प्रकट होता है हमारा अपना नया साल “विक्रम संवत्सर”। विक्रम संवत का संबंध हमारे कालचक्र से ही नहीं, बल्कि हमारे सुदीर्घ साहित्य और जीवन जीने की विविधता से भी है। कहीं धूल-धक्कड़ नहीं, कुत्सित कीच नहीं, बाहर-भीतर जमीन-आसमान सर्वत्र स्नानोपरांत मन जैसी शुद्धता। इस समय प्रकृति मे उष्णता बढने लगती है। जिससे पेड़-पौंधे, जीव-जन्तुओं मे नव जीवन आ जाता है। लोग एकदम मदमस्त हो गीत गुनगुनाने लगते है। ऐसे प्रकृति के नयेपन के साथ सूर्य की सुनहरी रोशनी के बीच आता है हमारा नववर्ष।
शास्त्रों में एक बात आती है कि, “एक शुभ होता है और एक शुभ की तैयारी” मतलब यदि आपका दिन शुभ की तैयारी में बीता है तो निश्चित ही आपकी रात शुभ होगी और यदि आपकी रात शुभ की तैयारी में बीतती है तो निश्चित ही आपका अगला दिन शुभ होगा। स्पष्ट मतलब ये है कि हमारा आने वाला दिन शुभ हो उसके लिए हमें अपने आज को शुभ की तैयारी में बिताना चाहिए। हमारा जो नव वर्ष है उसके लिए जो विधान किये गए हैं वो सब के सब तो वैसे भी शुभ और शुभ की तैयारियों को ध्यान में रखकर किये गए हैं। अब मैं युवा वर्ग के “celebration” at mid night of 31st Decemberवाले बिंदु पर आता हूँ। क्या है आखिर ये mid night celebration?
मेरे कई मित्र मुझे इस बात के लिए जोर करते हैं कि जोशी भाई तुम चाहे पीना मत लेकिन कम से कम गेट टुगेदर तो दे दो, साथ तो आ जाओ, बैठ तो जाओ हमारे साथ, तब मैंने एक बार अपने ख़ास सहकर्मी से पूछा कि भाई क्या करते हो आप इस mid night celebration में तो उसने जो कुछ बताया सुनकर लगा अरे कैसा celebration और कैसी पार्टी…दारू, सिगरेट, चरस आदि का नशा और साथ में निर्दोष प्राणियों को मारकर उनके मृतक शरीर को खा जाना यही है आजकल लोगों की पार्टी, अपने पेट को कब्रिस्तान बनाकर हमें कहते हैं कि ये है “celebration” at mid night of 31stDecember and welcomming of New year.…. और ये है उनके New years के स्वागत का तरीका…जब नशे से मन भर गया तो फिर…. कानफोड़ू संगीत में ऐसे थिरक रहे हैं मानो कहीं कोई आतंकी हमला हो गया हो और जान बचाने के लिए लोगों में भगदड़ मची पडी हो और 31st Decemberको रात के बारह बजते ही एक दूसरे के उपर दारू / कोल्ड ड्रिंक छिड़कते हुए चिल्ला कर कहते हैं “HAPPY NEW YEAR”…. इसके बाद कुछ लोग तो सीधे व्यभिचार में लिप्त…. अरे आप इस साल की संध्या बेला पर नशे और व्यभिचार में लिप्त हैं तो कर क्या रहे हैं आप क्या वास्तव में यही नववर्ष का आगाज है क्या ऐसे ही नव वर्ष का स्वागत किया जाना चाहिए? क्या यही है शुभ और क्या यही है शुभ की तैयारी? अरे जब यहाँ पर आज वर्ष 2015 की संध्या-बेला को इस तरह से नशा, विषय – वासनाओं और व्यभिचार में बिता दोगे तो कैसे आने वाला साल शुभ होगा?
इसे देखकर तो मुझे लगता है कि मैं ठीक हूँ कि मैं पागल हूँ जो राजीव दीक्षित जी के फेर में पड़ गया और भारतीय सनातन संस्कृति को मानने लगा। अरे कितना सुन्दर है चैत्र शुक्ल प्रतिपदा…. पता नहीं किस महामना ऋषि ने चैत्र मास के इस दिव्य भाव को समझा होगा और किसान को सबसे ज्यादा सुहाती इस चैत्र में ही नव-वर्ष की शुरूआत मानी होगी। वैसे तो वसंत ऋतु का आगमन फाल्गुन में ही हो जाता है पर पूरी तरह से व्यक्त चैत्र में ही होता है इस समय सारी वनस्पति और सृष्टि प्रस्फुटित होती है। पके मीठे अन्न के दानों में, आम की मन को लुभाती खुशबू में, गणगौर पूजती कन्याओं और सुहागिन नारियों के हाथ की हरी-हरी दूब में तथा वसंतदूत कोयल की गूंजती स्वर लहरी में हर जगह नयापन दिखाई देता है चारों ओर पकी फसल का दर्शन आत्मबल और उत्साह को जन्म देता है। खेतों में हलचल, फसलों की कटाई, हांसिए का मंगलमय खर-खर करता स्वर और खेतों में डांट-डपट-मजाक करती आवाजें। जरा दृष्टि फैलाइए, भारत के आभा मंडल के चारों ओर। चैत्र क्या आया मानो खेतों में हंसी-खुशी की रौनक छा जाती है। आजकल 31st December या 1 January में कुछ मिलता है ऐसा नयापन…आजकल तो वातावरण में भी धुंध छाई हुई है और ठण्ड इतनी कि पूछो मत कहीं से कहीं तक उत्सव मनाने का भाव मन में भी नहीं आता है।
सनातन धर्म के प्रेमी जितने भी लोग मेरे इस लेख से संतुष्ट हैं वो मेरा समर्थन करें। आजकल तो वातावरण में भी धुंध छाई हुई है और ठण्ड इतनी कि पूछो मत कहीं से कहीं तक उत्सव मनाने का भाव मन में भी नहीं आता है।
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जय हिन्द
वन्देमातरम