गरीबों और बेसहारा लोगों के लिए जीवन सर्मपित करनेवाली मदर टेरेसा को आज वेटिकन सिटी में संत की उपाधि दी गई। ईसाईयों के धर्मगुरू पोप फ्रांसिस ने करीब एक लाख श्रद्धालुओं के बीच मदर टेरेसा को संत की उपाधि से नवाज़ा। इस ऐतिहासिक मौके पर विदेश मंत्री सुषमा स्वराज 12 सदस्यीय प्रतिनिधिमंडल के साथ वेटिकन सिटी में मौजूद थी।
मदर टेरेसा भारत आई तो थी एक मिशनरी शिक्षक के तौर पर लेकिन अब वो संत कहलाएंगी। अपने परमार्थ कार्यों की वजह से 20वीं सदी में काफी ऊंचा मुकाम हासिल करने वाली मदर टेरेसा रविवार को संत घोषित की जाएंगी।
टेरेसा ने करीब चार दशक तक कोलकाता में निर्धन लोगों की सेवा की। मैसेडोनिया में 1910 में जन्मीं टेरेसा ने पूरी दुनिया में घर-घर तक पहचान बनाईं और भारत की नागरिक भी बनीं। उन्होंने भारत को अपनाया और भारत ने भी दिल से उन्हें अपनाया। मदर टेरेसा ने सन 1950 में कोलकाता में मिशनरीज़ of चेरिटी की स्थापना की।
इन्हें मानवता की भलाई के लिए किये गये कार्य के कारण 1962 में पद्मश्री,1979 में नोबेल शांति पुरस्कार और 1980 में भारत का सर्वोच्च नागरिक सम्मान भारत रत्न प्रदान किया गया।
87 साल की उम्र में 1997 में मदर टेरेसा के निधन पर राजकीय सम्मान से उनकी आखिरी विदाई भी की गई। मदर टेरेसा को रोमन कैथोलिक चर्च के संत का दर्जा दिए जाने की सभी तैयारियां पूरी हो चुकी हैं।
रविवार, 4 सितंबर को भारतीय समयानुसार दोपहर 2 बजे वेटिकन सिटी के सेंट पीटर्स स्क्वायर में विशेष जनता के सामने पोप फ्रांसिस ने मदर टेरेसा को रोमन कैथोलिक चर्च का संत घोषित किया।
इस मौके कार्डिनल मदर टेरेसा की संक्षिप्त जीवनी पढ़कर सुनाई। जिसके बाद एक प्रार्थना हुई और फिर संतो की लीटानी। उसके बाद पोप लैटिन में केननिज़ैषण यानि संत की उपाधि देने का फॉर्मूला पढ़ा। यह मदर टेरेसा के संत होने की आधिकारिक मान्यता है।
मदर टेरेसा को संत की उपाधी दिये जाने के बाद पूरे देश में इसे लेकर खुशी का माहौल है । दिल्ली के सेकरेड चर्च के मुख्य पुजारी फादर लारैंस पी आर ने कहा है कि आज का दिन विशेषकर भारत के लिये बहुत महत्वपूर्ण है। उन्होने कहा कि जिस समर्पण भाव से मदर टेरेसा ने दिन दुखियों की सेवा की यह काम एक संत ही कर सकता है।
संत चुने जाने के बारे में आपको बताए तो अभी तक 10,000 से भी ज्यादा शख्सियतों को संत नामित किया गया है, लेकिन कोई आधिकारिक आंकड़ा नहीं है। संतों को सिर्फ केननिज़ैषण की औपचारिक प्रक्रिया के बाद ही संत नामित किया जा सकता है, जो कि सालों चलती रहती है।
केननिज़ैषण प्रक्रिया उम्मीदवार की मौत के 5-50 साल के भीतर शुरू की जा सकती है। 1999 में पोप जान पॉल द्वितीय ने सामान्य पांच वर्ष के इंतजार को खत्म करते हुए मदर टेरेसा के लिए केननिज़ैषण की इजाजत दे दी थी क्योंकि उन्हें ‘जीवित संत’ माना जाता था।
एक बार प्रक्रिया शुरू होने के बाद, व्यक्ति को “ईश्वर का सेवक” कहा जाता है। केननिज़ैषण की प्रक्रिया को आगे ले जाने के लिए, दो चमत्कार की घटनाओं की जरूरत होती है।
मदर टेरेसा के मामले में 2002 में, पोप ने एक बंगाली आदिवासी महिला, मोनिका बेसरा के ट्यूमर के ठीक होने को मदर टेरेसा का पहला चमत्कार माना। 2015 में ब्रेन ट्यूमर से ग्रस्त ब्राजीलियन पुरुष के ठीक होने को दूसरा चमत्कार माना गया।
इस पूरी प्रक्रिया के बाद आधिकारिक रूप से मदर टेरेसा को कलकत्ता की संत कहा जाएगा। और माना जाएगा मदर टेरेसा मृत्यु के बाद भी ईश्वर से जुड़ी शक्ति है।