“स्वयंसेवकों के लिए राष्ट्र ही सर्वोपरि है और यही संघ का संस्कार भी,और इसलिए, राष्ट्र के प्रति समर्पित स्वयंसेवक अगर राष्ट्र के लिए महत्वपूर्ण न हो तो न केवल भारत अपने परम वैभव को नहीं प्राप्त कर पायेगा बल्कि एक कृतघ्न राष्ट भी कहलायेगा।
स्वयंसेवकों के समर्पण व् निष्ठां का भाव ही किसी भी स्वयंसेवक को न केवल संघ बल्कि पूरे समाज व् राष्ट्र के सन्दर्भ में महत्वपूर्ण बनाता है और इस दृष्टि से बेंगलुरु में गत दिनों हुए एक स्वयंसेवक की नृशंश हत्या न केवल निंदनीय है बल्कि चिंता का कारन भी।
जब देश में एक प्रचारक की सरकार होते हुए भी स्वयंसेवक तक समाज में सुरक्षित न हों तो और क्या कहा जाए; माना की स्थानीय स्तर पर कानून व्यवस्था का पालन व् अपराध नियंत्रण सम्बंधित प्रादेशिक सरकारों का दायित्व है पर इसका यह अर्थ नहीं की केंद्र की सरकार परिस्थितियों के प्रति राजनीतिक रूप से विवश दिखे।
देश की सेना निश्चित रूप से अपने दायित्व का पूरी तरह निर्वहन कर रही है और देश को भी अपने सैन्य बल के शौर्य और पराक्रम पर कोई संदेह नहीं, पर केंद्र की सरकार को देश में जो करने के लिए चुना गया था क्या वो कर रही है, यह आज हम सब के लिए चिंतन का विषय है।
गत वर्ष केरल के कुन्नूर में जब ऐसे ही एक स्वयंसेवक की नृशंश हत्या की गयी थी, अगर सरकार ने उस अपराध की जांच कर अपराधियों को कठोर दंड सुनिश्चित किया होता तो निश्चित रूप से बेंगलुरु में जो हुए वो नहीं होता। दुर्भाग्यवश ऐसा हो न सका ! पर क्यों ?
क्या केंद्र सरकार के अधीन समस्त अपराध नियंत्रण व् जांच ऐजेंसियां केवल राजनीतिक प्रयोग का उपक्रम बन कर रह गयी हैं, क्या हमने एक प्रचारक को प्रधानमंत्री केवल चुनाव प्रचार करने के लिए ही बनाया था, अगर ऐसा है, तो क्या निर्णय की गलती आज सार्वजनिक रूप से स्पष्ट नहीं ?
जो भी शक्तियां स्वयंसेवकों की ऐसी नृशंश हत्या के माध्यम से संघ, स्वयंसेवकों अथवा समाज को जो भी सन्देश देने का प्रयास कर रही हैं, शायद उन्हें न तो संघ की शक्ति का अनुमान है और न ही स्वयंसेवकों के दृढ़ निस्चय का ; अगर संघ के स्वयंसेवक राष्ट्र की रक्षा करने में सक्षम हैं तो स्वायभाविक है की वो अपना और अपने स्वजनों की रक्षा करने का भी सामर्थ रखते हैं।
ईश्वर न करे की कभी ऐसी परिस्थिति आयी की आत्म रक्षा और राष्ट्र की सुरक्षा के लिए शस्त्र उठाना ही स्वयंसेवकों के लिए एक मात्र विकल्प बचा तो विश्वास मानिये की स्वयंसेवक उस कर्तव्य से भी पीछे नहीं हटेंगे और अगर कभी ऐसा हुआ तो अगले कई दशकों तक सिंधु में प्रवाहित जल रक्त रंजीत होगी ; पर क्या यह उचित होगा ?
किसी के लिए भी सामाजिक विधि व्यवस्था को अपने हाथों में लेना आखरी विकल्प होना चाहिए और अगर यही करना था तो हमने आखिर केंद्र में प्रचारक की सरकार क्यों बनाई ?
आखिर हो क्या रहा है………. समाज चीनी वस्तुओं का विरोध कर रही है और सरकार चीन से व्यापार समझौते ! स्पष्ट योजना और वैकल्पिक नीति के आभाव में आज हम परिस्थितियों द्वारा शाषित हैं, क्यों? क्या यह नेतृत्व की त्रुटि नहीं ?
देश को आज प्रधानमंत्री के रूप में ऐसे नेतृत्व की आवश्यकता है जिसे व्यक्ति और पद का अंतर स्पष्ट हो, तभी, पद की गरिमा और देश प्रधानमंत्री के व्यक्तित्व के रूप में आत्मविश्वास और आत्म गौरव प्राप्त हो सकेगा।
देश को न तो प्रधानसेवक चाहिए न ही प्रधानमंत्री के रूप में कोई चौकीदार बल्कि एक ऐसा प्रधानमंत्री चाहिए जो देश में राजनीति नहीं बल्कि धर्मानुकूल तरिके से राज करे और देश को उचित नेतृत्व प्रदान करे। सहानुभूति के आधार पर क्या किसी चायवाले की मानसिकता को देश के नेतृत्व का दायित्व सौंप देना क्या प्रधानमंत्री के पद की गरिमा और देश के नेतृत्व की आवश्यकता के साथ न्याय होगा; समय मिले तो इस विषय पर विचार कीजियेगा।
सामर्थ और योग्यता में अंतर होता है, देश ने भले ही जनतंत्र के अधिकारों के माध्यम से राजनीतिक विकल्प को देश का नेतृत्व करने के लिए पूर्ण बहुमत प्रदान किया है पर अगर शीर्ष नेताओं में नेतृत्व की योग्यता न हो तो महत्वपूर्ण पदों पर सामर्थ के आधार पर अयोग्य को पदस्थापित करना समाज के सचेतन निर्णय की ऐसी भूल होगी जिसकी कीमत राष्ट्र को अपने अवसर की संभावनाओं से चुकानी होगी।
सरकार का सामर्थ तो संसद में स्पष्ट है, अब शीर्ष नेतृत्व को अपनी योग्यता सिद्ध करनी होगी जिसके लिए भाषण पर्याप्त नहीं बल्कि काम कर के दिखाना होगा।
बेंगलुरु में हुए स्वयंसेवक की नृशंश हत्या कीमैन कड़े शदों में निंदा करता हूँ और साथ ही प्रादेशिक व् केंद्र सरकार से यह सविनय निवेदन करता हूँ की वह दोषियों को पकड़कर एक निश्चित समय सीमा में दण्डित करें ताकि भविष्य में कोई भी ऐसा दुस्साहस करने की हिम्मत न करे ; और अगर सरकारें ऐसा कर पाने में सक्षम नहीं तो निश्चित रूप से वो अपने आप को अपने पद के अयोग्य सिद्ध करेंगी ; वर्तमान नेतृत्व से उसकी योग्यता के प्रमाण की प्रतीक्षा में है , यही समय है, अगर अभी चुके तो नेतागण न केवल जनता का उनके प्रति विश्वास का कारन बल्कि जनाधार भी खो देंगे; वैसे भी, प्रत्यक्ष को प्रमाण की आवश्यकता नहीं होती !”
गुरुजी हम आपकी बातों से सौ नहीं एक सौ एक प्रतिशत सहमत हैं लेकिन एक स्वयं सेवक तभी अपनी सेवाएँ देश को दे सकता है जब वो अपने परिवार को अपनी सेवाएँ दे पा रहा हो। हम देश के सबसे बड़े समाजिक संगठन का हिस्सा हैं, लेकिन हमारी युवा पीढ़ी बेरोज़गारी की मार झेल रही है क्या हमने इसके लिये कोई कार्य किया? क्या हमने उन्हें संघ से जोड़ने हिन्दू धर्म से विस्थापित होने से रोकने के लिये कूछ किया? दुश्मन आये दिन हमारे लोगों को धर्मांतरित कर रहे हैं क्या हमने इसके लिये कुछ किया ?
गुरू जी हमने संघ से केवल कुछ लोगों को नहीं जोरना बल्कि सभी हिन्दूओं को जोरना है इसके लिये बुनियादी सुविधाओं का इंतजाम करना ज़रूरी है ।
धन्यवाद