इतिहासकार श्री कपिल कुमार के अनुसार भंसाली ने इस मूवी में हमारे इतिहास को यथासंभव बरबाद करने की पुरजोर कोशिश किया है। घूमर नृत्य तो साधारण मुद्दा है, इसने तो मूल कहानी को ही बदल दिया है:
रावल रतनसिंह की पहली पत्नी को ये बोलते हुए दिखाया गया कि पद्मावती को ख़िलजी को सौंप दो और मेवाड़ को बचा लो !!! जबकि ऐसा तो पद्मावत में भी नहीं लिखा गया है। यह काल्पनिक पात्र गढ़कर राजपूतानीयो को बदनाम करने की कोशिश की गई है । अब आगे राजपूतो को ऐसे काल्पनिक पात्र के नाम पर चिढ़ाया जाएगा।
ख़िलजी रावल रतनसिंह को बन्दी बनाकर दिल्ली ले जाता है, और उसे बचाने के लिए रानी पद्मावती भी हजारो महिलाओ के साथ पालकी लेकर दिल्ली पहुंच जाती है अपने को सौपने के लिये!!! अबे भड़वे भंसाली ये तूने कहाँ पढ़ लिया ?
न तो रतनसिंह को दिल्ली ले जाया गया था, न ही पद्मावती पालकी में बैठकर गयी थी… गोरा – बादल गए थे पालकी में बैठकर।
इस कहानी का इतना सम्मान और लोकप्रियता ही इसलिये है कि रानी पद्मिनी के मन मे उनके सतीत्व के त्याग का ख्याल एक बार भी नही आया ।
ख़िलजी की कैद से रतनसिंह और पद्मावती को सुरंग के सहारे भागने में ख़िलजी की पत्नी द्वारा मदद करना दिखाया गया ! जबकि असल में गोरा और बादल के नेतृत्व में हजारों राजपूतो ने ख़िलजी के कैंप पर धावा मारकर रावल रतनसिंह को छुड़ाया था। इन्हें ना दिखाना वैसा ही है जैसे रामायण में हनुमान, लक्ष्मण और वानर सेना को ना दिखाना । इस कहानी का सबसे मूल तत्व गोरा – बादल के नेतृत्व में रानी पद्मिनी के सतीत्व की रक्षार्थ हजारों राजपूतो का बलिदान है।
मूवी मे जौहर और सती प्रथा दोनों को एक मानकर इसे महिमामण्डित न करने का डिस्क्लेमर दिखाकर क्षत्राणियों के जौहर को अपमानित किया गया है। मूवी में खिलजी को विलेन ना दिखाकर राघव चेतन नाम के एक ब्राह्मण को विलेन दिखाया गया है जो रावल रत्न सिंह और रानी पद्मिनी के खिलाफ साजिश रचता है। इससे क्षत्रिय-ब्राह्मण संबंधों को खराब करने की कोशिश की गई है। इसमे मुस्लिम पात्रों को सह्रदय और हिन्दू पात्रों को मुख्य विलेन दिखाया गया है।
मूवी को मलिक मौहम्मद जायसी के काव्य ग्रन्थ पद्मावत पर आधारित दिखाया गया है, जबकि भंसाली कि ये मूवी तो पदमावत की कहानी पर भी आधारित नही है। कई मीडिया कर्मी जिन्होंने यह फ़िल्म देखी है उनके अनुसार इस फ़िल्म को देखने के बाद यह इम्प्रैशन जाएगा कि ज्यादातर राजपूत बेवकूफ और कायर थे जबकि खिलजी बहुत बुद्धिमान और ताकतवर।
इस फ़िल्म से राजपूतो की सबसे शौर्यपूर्ण गाथा को राजपूतो का मजाक मान लिया जाएगा। इस घटना के मुख्य किरदार रानी पद्मिनी, गोरा बादल, हजारो राजपूत और चित्तोड़ है लेकिन इनको या तो दिखाया ही नही गया या फिर बहुत कम दिखाया है और खिलजी के ऊपर पूरी फिल्म बेस्ड की गई है। आगे की पीढियां अब इसी रूप में इसे याद रखेंगी। अब मर्जी आपकी आप इस देश का गोरवशाली अतीत को किस रुप में देखना चाहते हैं । ताकतवर या कायर ।