अभिषेक तिवारी : जैसा कि आप सभी जानते है कि अभी हाल ही में एक न्यूज आयी है कि बायोलॉजिकल क्लॉक को बताकर 3 वैज्ञानिक नोबल जीत गए, इसे अगर भारत मे रहने वाले एक बच्चे से भी पूछो तो वो बता देगा कि ये हमारे यहाँ बहोत पहले से होता आ रहा है और इसे हजारो सालो पहले ऋषियो ने बता रखा है लेकिन वैदिक आजकल पढ़ना ही कौन चाहता है , खैर आइये आज शरद पूर्णिमा है तो इसके कुछ वैज्ञानिक पक्ष रखता हूँ —
#हिन्दू संस्कृति में अश्विन मास की पूर्णिमा का अपना विशेष महत्व है। इसे शरद पूर्णिमा के नाम से भी जाना जाता है। शरद पूर्णिमा को आनंद व उल्लास का पर्व माना जाता है। इस पर्व का धार्मिक व वैज्ञानिक महत्व भी है। ऐसा माना जाता है कि शरद पूर्णिमा की सुनहरी रात्रि में भगवान शंकर एवं पार्वती कैलाश पर्वत पर रमण करते हैं तथा संपूर्ण कैलाश पर्वत पर चंद्रमा जगमगा जाता है। भगवान श्रीकृष्ण ने भी शरद पूर्णिमा को रासलीला की थी तथा मथुरा-वृंदावन सहित अनेक स्थानों पर आज भी इस रात को रासलीलाओं का आयोजन किया जाता है। लोग शरद पूर्णिमा को व्रत भी रखते हैं तथा शास्त्रों में इसे कौमुदी व्रत भी कहा गया है।
#शरद_पूर्णिमा को चंद्रमा पृथ्वी के सबसे निकट होता है और चंद्रमा के प्रकाश की किरणें पृथ्वी पर बौछार करती हैं।
इसी_प्रकार विभिन्न मंदिरों में प्रसाद के रूप में खीर वितरण किया जाता है व लोग भक्ति भाव व कीर्तन आदि करते हैं। व्रत रखने वाले लोग चंद्र किरणों में पकाई गई खीर को अगले रोज प्रसाद के रूप में ग्रहण कर अपना व्रत खोलते हैं। शरद पूर्णिमा की रात को नौका विहार करना, नदी में स्नान करना शुभ माना जाता है। शरद पूर्णिमा की रात प्रकृति का सौंदर्य व छटा मन को हर्षित करने वाली होती है।
आइये_अब_जरा_इसका_विज्ञान भी समझ लेते है कि ऐसा करने को बोलने के पीछे क्या विज्ञान छुपा है —
आपने ये तो सुना ही होगा कि चाँद चुम्बकीय प्रभाव से युक्त है जिसके कारण ज्वार भाटा भी आता है वैसे ही चाँद हमारे शरीर पे भी प्रभाव डालता है मनुष्य के शरीर में जीवन के आरंभ से कुछ चुम्बकीय तत्व होते हैं जो जीवन के अंत तक रहते है। चुम्बकीय शक्ति रक्त संचार के माध्यम से मानव शरीर को प्रभावित करती है। हम देखते है कि हमारे शरीर के हर हिस्से में नाडियों और नसों द्वारा खून पहुँचता है। यही हमारे अंदर की चुम्बकीय शक्ति है। जो हमारे शरीर को प्रभावित करती है।
चुम्बकीय प्रभाव क्षेत्र में किसी पदार्थ अथवा द्रव्य, तरल पदार्थों को रखने से उसमें चुम्बकीय गुण प्रकट होने लगते हैं जैसे- जल, दूध, तेल आदि तरल पदार्थो में चुम्बकीय ऊर्जा का प्रभाव बढ़ाकर उपयोग करने से काफी लाभ पहुंचता है।
चुम्बकीय_खीर का उपयोग:-
चुम्बक के प्रभाव को पानी, दूध, तेल एवं अन्य द्रवों में डाला जा सकता है। शक्तिशाली चुम्बकों पर ऐसे द्रव रखने से थोड़े समय में ही उनमें चुम्बकीय गुण आने लगते हैं। जितनी देर उसको चुम्बकीय प्रभाव में रखा जाता है, चुम्बक हटाने के पश्चात् लगभग उतने लम्बे समय तक उसमें चुम्बकीय प्रभाव रहता है। प्रारम्भ के 10-15 मिनटों में 60 से 70 प्रतिशत चुम्बकीय प्रभाव आ जाता है। परन्तु पूर्ण प्रभावित करने के लिये द्रवों को कम से कम शक्तिशाली चुम्बकों के 6 से 8 घंटे तक प्रभाव में रखना पड़ता है। चुम्बक को हटाने के पश्चात् धीरे-धीरे द्रव में चुम्बकीय प्रभाव क्षीण होता जाता है इसलिए ही चाँद की रोशनी यानी चुम्बकीय छेत्र में खीर बनाया जाता है और उसे प्रसाद(दवा) के रूप में इस्तेमाल किया जाता है
#विशेष –
चुम्बक रक्तकणों में हीमोग्लोबिन तथा साइटोकेम नामक अणुओं में निहित लौह तत्वों पर प्रभाव डालता है। इस तरह चुम्बकीय क्षेत्र के सम्पर्क में आकर खुन और गुण में लाभकारी परिवर्तन आ जाता है और इससे शरीर के अनेक रोग ठीक होते है।
चुम्बकीय चिकित्सा से कोई हानी नहीं होती इसलिये यह बच्चे, वृध्द, स्त्रियॉं सभी के लिये लाभदायक है। प्राचीनकाल में आकर्षण शक्ति और वेदों इसका उल्लेख में मिलता है।