मनमोहन कुमार आर्य, देहरादून। आर्यसमाज धामावाला देहरादून के रविवार दिनांक 16-9-2018 के सत्संग में समाज के प्रधान डॉ. महेश शर्मा जी का ओ३म् की व्याख्या विषय पर व्याख्यान हुआ जिसे उन्होंने मल्टी मीडिया प्रजेन्टेशन के माध्यम से 40 से अधिक स्लाइडों के द्वारा प्रस्तुत किया।
ओ३म् की व्याख्या प्रस्तुत करते हुए आरम्म में आपने ओ३म् शब्द का तीन बार उच्चारण कराया। गायत्री मन्त्र को स्क्रीन पर अर्थ सहित दिखाया गया और सभी ने उसका उच्चारण भी किया। उन्होंने कहा कि ओ३म् अमृत है व सबका पालक है। ऋग्वेद एवं यजुर्वेद आदि में यह मन्त्र आता है। ऋग्वेद के अन्तिम सूक्त संगठन सूक्त के मन्त्रों की भी आपने चर्चा की। गायत्री मन्त्र यजुर्वेद के चालीसवें अध्याय का तीसरा मन्त्र है। उन्होंने कहा कि संकट की घड़ी में गायत्री मन्त्र का पाठ किया जाता है। आपने गायत्री मन्त्र का ऋषि दयानन्द का किया हुआ अर्थ भी बोल कर सुनाया। उन्होंने कहा कि वह सभी श्रोताओं को अपने विचारों के साथ सहभागी बनाना चाहते हैं। शर्मा जी ने कहा कि आज वह ओ३म् की व्याख्या की चर्चा कर रहे हैं। ओ३म् को ओंकार भी कहते हैं। ओ३म् ईश्वर का सर्वोत्तम एवं निज नाम है।
उन्होंने ओ को दीर्घ स्वर, ३ को मात्रा का सूचक तथा म् को हलन्त् व व्यंजन बताया। ओ३म् शब्द अ, उ और म् से मिलकर बना है। अ, उ व म को उन्होंने अकार, उकार व मकार बताया और इन्हें अक्षर, स्वर तथा स्वरूप वर्ण कहा। ‘कार’ का अर्थ बताते हुए उन्होंने कहा कि इसका अर्थ कार्य, क्रिया या बनाने वाला है। ‘कार’ के अन्य अर्थ भी विद्वान वक्ता ने बताये। कार के उदाहरण देते हुए आपने कर्मकार, शिल्पकार आदि उदाहरण दिये। श्री शर्मा ने माण्डूक्य उपनिषद के आधार पर अकार, उकार और मकार को समझाया। उन्होंने कहा कि मनु महाराज के अनुसार अकार, उकार और मकार इन तीन शब्दों से ओ३म् शब्द की सिद्धि होती है। विद्वान वक्ता ने सत्यार्थप्रकाश में ऋषि दयानन्द द्वारा वर्णित अकार, उकार व मकार के ईश्वरपरक अर्थ भी बताये। श्री शर्मा ने उन ग्रन्थों के नाम भी बताये जिनमें ओ३म् का वर्णन है। उनके अनुसार कुरआन, बाइबिल, गुरु ग्रन्थ साहिब सहित जैन, बौद्ध, यहूदी व पारसी ग्रन्थों में भी ओ३म् का उल्लेख मिलता है। श्री शर्मा ने ऋषि दयानन्द के जन्म स्थान टंकारा के विषय में भी श्रोताओं को जानकारी दी।
विद्वान वक्ता डॉ. महेश शर्मा ने ऋषि दयानन्द के ग्रन्थों व उनके प्रकाशन वर्ष की भी जानकारी दी। उन्होंने बताया कि पंचमहायज्ञविधि (1874), सत्यार्थप्रकाश प्रथम संस्करण (1875), आर्याभिविनय (1876), संस्कारविधि (1877), ऋग्वेदादिभाष्य भूमिका (1877), ऋग्वेदभाष्य (1877), आर्योद्देश्यरत्नमाला (1877), यजुर्वेदभाष्य (1878), व्यवहारभानु (1879) तथा गोकरूणानिधि (1880) में लिखे व प्रकाशित हुए। उन्होंने कहा कि ऋषि दयानन्द जी ने अनेक अन्य ग्रन्थ भी लिखे व प्रकाशित किए हैं। उनके अनुसार सत्यार्थप्रकाश ग्रन्थ मात्र तीन महीनों में लिखा गया। आपने सत्यार्थप्रकाश के लेखन और उसमें लेखक पं. चन्द्रशेखर आदि द्वारा की गई अशुद्धियों पर भी प्रकाश डाला। उन्होंने यह भी बताया कि किन कारणों से प्रथम संस्करण में उत्तरार्ध के चार समुल्लास नहीं छपे थे।
श्री महेश चन्द्र शर्मा ने ओ३म् शब्द को जन-जन में प्रसारित करने के महत्व का भी उल्लेख किया। उन्होंने कहा कि ऋषि दयानन्द के अनुसार ईश्वर के ओ३म् नाम से हमारा सम्बन्ध पिता-पुत्र के सम्बन्ध के समान है। शर्मा जी ने बताया कुल उपलब्ध उपनिषदों की संख्या 223 है जिनमे ंसे 11 उपनिषद् वेदानुकूल होने से प्रामाणिक हैं। उन्होंने अनेक उपनिषदों के नाम भी श्रोताओं को बताये। शर्मा जी ने कहा कि सभी उपनिषदों में ओ३म् नाम आता है। माण्डूक्य उपनिषद में ओ३म् की व्याख्या उपलब्ध होती है। विद्वान वक्ता ने ओ३म् के विषय में पौराणिक मान्यताओं तथा उनके द्वारा किये जाने वाले अर्थ को भी बताया। उन्होंने कहा कि अ का अर्थ सृष्टि की उत्पत्तिकर्ता, उ का अर्थ पालनकर्ता और म् का अर्थ प्रलयकर्ता है। शर्मा जी ने अंग्रेजी के GOD शब्द की चर्चा की। उन्होंने कहा कि जी से जेनरेटर, ओ से आपरेटर तथा डी से डिस्ट्रायर बनता है जिसे पौराणिक विद्वानों द्वारा ब्रह्मा, विष्णु और महेश भी कहा जाता है। शर्मा जी ने कहा कि ओ३म् शब्द स्थूल, सूक्ष्म और कारण अवस्था सहित पृथिवी, अन्तरिक्ष तथा द्युलोक का भी द्योतक है। ओ३म् शब्द अग्नि, वायु और आदित्य का भी द्योतक है। ओ३म् परमात्मा का निज नाम व छोटा नाम है परन्तु अर्थ की दृष्टि से इसका महत्व बहुत अधिक है। उन्होंने कहा कि ओ३म् के अनन्त अर्थ है। उनके अनुसार ओ३म् में ही सारा ब्रह्माण्ड समाया हुआ है।
श्री शर्मा ने ईश्वर के अनेक अन्य नामों का भी उल्लेख किया। उन्होंने ईश्वर के 76 पर्यायवाची शब्दों भी बताये। शर्मा जी ने कार्यक्रम में उपस्थित बच्चों से आर्यसमाज का दूसरा नियम पूछा जिसे सभी बच्चों ने उच्च स्वर से बोल कर प्रस्तुत किया। आर्य विद्वान शर्मा जी ने संसार की भिन्न भिन्न प्रमुख लिपियों में ओ३म् की आकृतियों से सम्बन्धित शब्दों को भी मल्टी मीडिया के माध्यम से स्क्रीन पर दिखाया। यह लिपियां तमिल, बंगला, तिब्बति, चीनी, ब्राह्मी, गुरुमुखी आदि थी। उन्होंने कहा कि ओ३म् एक पवित्र बोध चिन्ह के रूप में लिखा मिलता है। शर्मा जी ने पौराणिकों की ओ३म् विषयक अनेक कल्पनाओं की जानकारी सहित इसके लिये प्रयोग में लाये जाने वाले चिन्हों की जानकारी भी दी। ओ३म् शब्द का अर्थ उन्होंने सर्वव्यापी व रक्षा करने वाला बताया। इसके अतिरिक्त उन्होंने ओ३म् के 19 अर्थ भी बताये। शर्मा जी ने कहा कि ओ३म् को प्रणव नाम से भी जाना जाता है। योगदर्शन में इसका उल्लेख ‘तस्य नाम प्रणवः’ से मिलता है।
डा. महेश शर्मा का जन्म 12 मार्च सन् 1938 को जबलपुर में हुआ था। उन्होंने सन् 1961 में एम.एस-सी. तथा सन् 1972 में पी.एच-डी. की। इसके बाद आप डीआरडीओ में वैज्ञानिक के पद नियुक्त हुए और वहां से सीनियर वैज्ञानिक-एफ के पद से लगभग 20 वर्ष पूर्व सेवानिवृत्त हुए। आपके अनेक शोध लेख देश विदेश की विज्ञान पत्रिकाओं में प्रकाशित हुए हैं। लगभग 40 लोगों ने आपके निर्देशन में पी.एच-डी. किया है। आकाशवाणी से भी आर्यसमाज पर आपकी वार्तायें प्रसारित हुई हैं। आपने आर्यसमाज विषयक अनेक पुस्तकें लिखकर प्रकाशित की हैं। आप आर्यसमाज में समय समय पर प्रवचन भी करते हैंं।
आर्यसमाज के सत्संग के अन्त में प्रधान जी किसी प्रसिद्ध विद्वान द्वारा आर्यसमाज के समर्थन में कहे गये शब्दों को प्रस्तुत करते हैं। आज उन्होंने मौलाना मोहम्मद अली जौहर के शब्दों को प्रस्तुत किया। उन्होंने कहा है कि सत्यार्थप्रकाश स्वामी दयानन्द की मातृ तुल्य सर्वोत्तम कृति है और स्वामी दयानन्द आर्यों के गुरू हैं। शर्मा जी ने सभी श्रोताओं को 11 सितम्बर, 2018 को दिवंगत आर्यसमाज के प्रमुख विद्वान डॉ. भवानीलाल भारतीय जी की जानकारी दी और इसे आर्यसमाज की अपूरणीय क्षति बताया। सभी श्रोताओं ने दो मिनट का मौन रखकर उनको श्रद्धांजलि दी। इसके बाद आर्यसमाज के नियम पढ़े गये और शान्ति पाठ हुआ। आज आर्यसमाज का पूरा हाल भरा हुआ था। अनेक आर्यसमाजों सहित पुराने सदस्य भी आज समाज में आये थे। प्रसाद वितरण के साथ आज का सत्संग समाप्त हुआ। ओ३म् शम्।