दिनेश कुमार प्रजापति : नया साल कहाँ है ? जवाब मिला एक जनवरी और लास्ट डे इगात्तिस दिसंबर …. इट्स द टाइम टूसेलिब्रेट |पर कैसे ? समझाओ तो जरा , मैं १५ अगस्त कोनया साल मना लू तो क्या बुरा है ??नहीं ऐसा नहीं होता है |चलो फिर किसी भी आड़े दिन मना लेंगे , आपकेजन्मदिन से नयावर्ष अब से|अरे नहीं ऐसा नहीं हो सकता , नए साल पर हीन्यू इयर मनाते है न , न्यू इयर तो १ जनवरी से हीशुरू होता है | ऐसे कैसे कभी भी मना लेंगे |-पर क्यों ? क्या वजह है ? नया क्या है इसमें जोनया वर्ष कहा जाए , और नहीं है नया तो कभीभी मना सकते है न ||31 दिसंबर को भी कडाके की ठण्ड और १ जनवरी को भी , क्या नया हुआ इसमें , 11:59 pm कोभी रात , और 12.01 am को भी रात , कुछ भीतो नया नहीं है |दिसम्बर में भी पतजड़ जनवरी मेंभी | सिर्फ तारीख ही तो बदलती है वो तोरोज बदलती है |
ब्लेंक फेस आज के वैज्ञानिक युग में जहां लोगो को सबसेअधिक समझदार माना जाता है , सोचाजाता है की वो हर बात को प्रमाणित होने पर, सोच समझ कर , वैज्ञानिक मूल्यों पर परख करही अपनाएंगे पर यहाँ तो सभी भेड़ चाल चलने परआमादा है , सभी पढ़े लिए , समझदार भाई बंधू इसअन्धविश्वास को ढो रहे है , यह एक जनवरीवाला नववर्ष क्या है , क्यों है , और हम तक कैसेपंहुचा इन्हें नहीं पता और लकीर के फ़क़ीर बन बैठे है| बिना जाने स्वीकार कर लेना ही तोअंधविश्वास है , और जिसने जान लिया की इसदिन का कोई अर्थ ही नहीं फिर भी स्वीकारकरे तो मुर्खता है | यही अन्धविश्वास औरमुर्खता सिर्फ भारत में नहीं पुरे विश्व में समानरूप से होती है | यह अंधविश्वास है , अवैज्ञानिकहै , मुर्खता है तो विश्वास क्या है ,वैज्ञानिकता क्या है , ज्ञान क्या है , पढ़ करखुद निर्णय ले |अभी बीसवी सदी कैसे है , क्या २००० साल पहलेमानव नहीं था या केलेंडर नहीं था या नववर्षनहीं था ?? उस से पहले के ईतिहास को हम किसदिनांक से सहेजे ? बीस सदीया और अंग्रेजीकेलेंडर के आधार पर गणना करे तो ad,bc केअलावा इसकी गणना नहीं की जा सकती इसकेलिए कोई गणित , विज्ञान विकसित ही नहींकिया गया | २००० वर्ष पूर्व जीसस क्राइस्ट हुए,विचारक, प्रचारक, संत जो भी इस बहस में नहींपड़ते है , तो वो पैदा हुए, कुछ बाते कही कुछशिष्य बनाए फिर मर गए उसके बाद से पश्चिम मेंकेलेंडर में हेरफेर की गयी और तभी से पहली सदीक्राइस्ट की सदी कहलाने लगी एन्नो डोमिनि,आफ्टर डेथ , और बेफोर क्राइस्ट | भारत में तोऐसा प्राय होता है , आम बात है, बहुत सेविदुषी, ज्ञानी, तेजस्वी, साधू संत इस मिटटीमें जन्मे है और देह त्यागी है, इसको माने तोहरवर्ष नयी सदी बन जाएगी |दूसरा यह की साल की शुरवात कब से हो , इसबात पर पश्चिम में लम्बे अर्से तक कई अलग अलगविचारधारा वाले गुटों में मतभेद रहा था,जुलियन केलेंडर के अनुसार १ जनवरी और जीससका अनुसरण करने वाले २५ डिसेम्बर यानी जिसेसके जन्मदिन को नयावर्ष बनाने पर जोर दे रहे थेऔर २५ दिसंबर नया वर्ष होना तय भी हो गयाथा फिर बदल कर १ जनवरी कर दिया गया,जुलियस सीजर एक तानाशाह ने ४५ ईसा पूर्व खुदका केलेंडर बना दिया और १ जनवरी को नयावर्ष मानना प्रारंभ कर दिया , ऐसा करने केलिए उसका पहला वर्ष ४४५ दिवस का करनापड़ा| एक जनवरी वो दिन भी है जब जीसस काखतना हुआ था, यह खतना/सुन्नत का दिन लम्बेअर्से तक रोम, केथोलिक चर्च आदि में एकत्यौहार की तरह मनाया जाता रहा था औरआज भी मनाया जाता है तो इस वजह से नए वर्षके मुद्दे पर जीसस का अनुसरण भी इस से सहमत होगए |इन दोनों बातो से स्पष्ट है तो यह न्यू इयर औरसिर्फ २००० साल की काल गणना को कोईभारतीय मन मस्तिष्क तो कभी स्वीकार नहींकर सकता, जो स्वीकार रहे है वो मुर्ख है , १जनवरी को नया वर्ष जुलियस सीजर कीतानाशाह की मुर्खता या जीसस के खतनाहोने की ख़ुशी में मनाया जाता है इस से अधिककुछ नहीं |विश्व में अनेक सम्प्रदाय और राष्ट्र ने अपने केलेंडरबनाए है और उनकी काल गणना अलग है, अधिकना लिखते हुए सक्षिप्त में इसका सार लिखताहूँ, यह केलेंडर , महीने दिन कहा से आये , कैसे पताचला की महीने में ३०/३१ दिन होंगे , प्रथ्वी कोएक चक्कर करने में ३६५ दिन और ६ गंटे लगते है , जिन्हेंजोड़ कर चार साल बाद लीप इयर में डालाजाता है , सप्ताह में सात दिन होते है , एक गंटे में६० मिनिट ही होंगे १०० नहीं , इतनी शुक्ष्म औरसटीक जानकारी खतना पर नया साल मनानेवाले तो नहीं कर सकते | यह सभी सत्य सनातनका ज्ञान है जिसे विस्तार पूर्वक विश्व कोभारत के ही महान गणितज्ञो औरखगोलशास्त्री ने बताया है , भारत का केलेंडरऔर कालगणना सब से प्राचीन है जिसकी सभीबाते वैज्ञानिक रही है |जरा इस बात पर विचार करिए।सितंबर,अक्टूबर,नवंबर और दिसंबर क्रम से7वाँ,8वाँ,नौवाँ और दसवाँ महीना होनाचाहिए जबकि ऐसा नहीं है।ये क्रम से9वाँ,,10वाँ,11वां और बारहवाँ महीना है।हिन्दी में सात को सप्त,आठ को अष्ट कहाजाता है,इसे अंग्रेजी में sept(सेप्ट) तथा oct(ओक्ट)कहा जाता है।इसी से september तथा Octoberबना। नवम्बर में तो सीधे-सीधे हिन्दी के “नव”को ले लिया गया है तथा दस अंग्रेजी में “Dec”बन जाता है जिससे December बन गया।ऐसा इसलिए कि 1752 के पहले दिसंबर दसवाँमहीना ही हुआ करता था।इसका एक प्रमाण औरहै।जरा विचार करिए कि 25 दिसंबर यानिक्रिसमस को X-mas क्यों कहा जाता है????इसका उत्तर ये है की “X” रोमन लिपि में दस काप्रतीक है और mas यानि मास अर्थात महीना।चूंकि दिसंबर दसवां महीना हुआ करता थाइसलिए 25 दिसंबर दसवां महीना यानि X-masसे प्रचलित हो गया।सप्ताह के सात दिन भारतीय काल गणना केअनुसार है , बड़े बड़े वैज्ञानिक इसमें आठवा दिननहीं जोड़ पाए , रवि,सोम,मंगल , आदि का बसअंग्रेजी में अनुवाद कर प्रयोग में लिया गया है,बहुत से उदहारण है | ४हज़ार वर्ष पूर्व बेबीलोन मेंनयावर्ष मनाया जाता था , पर वो भारतीयकेलेंडर के अनुसार मार्च में मनाया जाता रहा ,बताने का तात्पर्य सिर्फ यह है की जब इतनागहन विज्ञान हमारे ऋषि मुनि (वैज्ञानिको) केपास था जिस पर पुरे विश्व की गणित निर्भर है, उन्होंने भी नववर्ष १ जनवरी को नहीं मनाया |सम्पूर्ण विश्व भारत के प्रभाव में था और आदिकाल से वही सब अपनाता आया जैसा भारत नेविश्व को सिखाया|एक और प्रमाण देखिये अंग्रेज़ अपनी तारीख यादिन 12 बजे रात से बदल देते है। दिन की शुरुआतसूर्योदय से होती है तो 12 बजे रात से नया दिनका क्या तुक बनता है!!! तुक बनता है। भारत मेंनया दिन सुबह से गिना जाता है,सूर्योदय सेकरीब दो-ढाई घंटे पहले के समय को ब्रह्म-मुहूर्त्तकी बेला कही जाती है और यहाँ से नए दिन कीशुरुआत होती है।यानि की करीब 4-4.30 केआस-पास और इस समय इंग्लैंड में समय 12 बजे केआस-पास का होता है।चूंकि वो भारतीयों केप्रभाव में थे इसलिए वो अपना दिन भीभारतीयों के दिन से मिलाकर रखना चाहते थेइसलिए उनलोगों ने रात के 12 बजे से ही दिननया दिन और तारीख बदलने का नियम अपनालिया। जो धीरे धीरे सभी देश ने अपना लियाऔर अब हम भारतीय भी रात को १२ बजे बादनया दिन मान लेते है | भारतीयों को इसकॉपी करने वाली विचारधारा को शीघ्रसमाप्त कर देना चाहिए |पहले भारतीय संस्कृति के आधार पर विश्व मेंअधिक हिस्सों में मार्च-अप्रैल में नया सालमनाया जाता था , 1582 में पोप ग्रेगोरी XIIIने जूलियन कैलंडर की जगह ग्रेगोरियन नया कैलेंडरअपनाने का फरमान जारी कर दिया जिसमें 1जनवरी को नया साल का प्रथम दिन बनायागया। उस समय पुरे यूरोप में मार्च-अप्रैल में नयावर्ष मनाया जाता था जिन लोगो ने इसकोमानने से इंकार किया उनको 1 अप्रैल को मजाकउड़ाना शुरू कर दिया और धीरे धीरे 1 अप्रैल नयासाल का नया दिन होने के बजाय मुर्ख दिवसबन गया। भारतीय नववर्ष के महीने का पहलादिन हम मुर्खदिवस के रूप में मनाते रहे है और खतनादिवस (पश्चिमी नववर्ष) जिसका कोई आधारनहीं है उसकी खुशिया मनाते है |1 जनवरी को नए साल के रूप में मनाने की शुरुआतविभ्भिन देशो में निम्नानुसार हैं:यूक्रेन , लिथुआनिया , बेलारूस 1362वेनिस 1522स्वीडन 1529पवित्र रोमन साम्राज्य (जर्मनी ~) 1544स्पेन, पुर्तगाल, पोलैंड 1556Prussia , डेनमार्क [21] और नॉर्वे 1559फ़्रांस ( रूस्सिल्लॉन के फतवे ) 1564दक्षिणी नीदरलैंड [22] 1576लोरेन 1579डच गणराज्य 1583स्कॉटलैंड 1600रूस 1700Tuscany 1721ब्रिटेन , आयरलैंड औरब्रिटिश साम्राज्यछोड़कर स्कॉटलैंड 1752ग्रीस 1923थाईलैंड 1941यह तो हमने जाना की पश्चिमी नववर्ष नहींमानना चाहिए और क्यों नहीं मानना चाहिए, तो कब और क्यों मनाये इस पर चर्चा करते है |भारतीय कालगणना के अनुसार इस पृथ्वी केसम्पूर्ण इतिहास की कुंजी मन्वंतर विज्ञान में है,इस ग्रह के सम्पूर्ण इतिहास को 14 भागोंअर्थात मन्वन्तरों में बांटा गया है| एक मन्वंतरकी आयु 30 करोड 67 लाख और 20 हजार वर्षहोती है, इस पृथ्वी का सम्पूर्ण इतिहास 4 अरब32 करोंड वर्ष का है| इसके 6 मन्वंतर बीत चुके हैं और7 वां वैवश्वत मन्वंतर चल रहा है| मतलब लगभग 185करोड वर्ष बीत चुके है, और इतने ही और कुछज्यादा वर्ष बीतने बाकी है | आज 2013 है , कलके बाद 2014 , 1 करोड़ वर्ष बाद अपनी डायरीमें या हक्ताक्षर के निचे दिनांक के साथ लोगवर्ष की जगह क्या और कैसे लिखेंगे ??1/1/10000000 और यही 100 करोड हो तो ?सवा सौ करोड़ हो तो ? और इस बीच प्रलय आयेऔर प्रथ्वी नष्ट हो जाए फिर से शुरुवात हो तोपुराना लेखा जोखा कहा से प्राप्त होगा ??पूर्ण रूप से अवैज्ञानिक || भारतीय कालगणना मेंऐसी समस्याओं के लिए स्थान नहीं , समय कीसबसे छोटी इकाई और सब से बड़ी का उल्लेख हैजिसका हिसाब किताब स्वयं प्रकृति रखती है|हमारी वर्त्तमान नवीन सृष्टि 12 करोड 5 लाख33 हजार 1 सौ चार वर्ष की है| ऐसा युगों कीकालगणना बताती है| पृथ्वी पर जैव विकासका सम्पूर्ण काल 4,32,00,00.00 वर्ष है| इसमे बीते1 अरब 97 करोड़ 29 लाख 49 हजार 1 सौ 11 वर्षके दीर्घ काल में 6 मन्वंतर प्रलय, 447 महायुगी खंडप्रलय तथा 1341 लघु युग प्रलय हो चुके हैं| पृथ्वीऔर सूर्य की आयु की अगर हम भारतीयकालगणना देखें तो पृथ्वी की शेष आयु 4 अरब 50करोड 70 लाख 50 हजार 9 सौ वर्ष है तथापृथ्वी की सम्पूर्ण आयु 8 अरब 64 करोण वर्ष है|सूर्य की शेष आयु 6 अरब 66 करोड 70 लाख 50हजार 9 सौ वर्ष तथा इसकी सम्पूर्ण आयु 12 अरब96 करोड वर्ष है|विश्व की सभी प्राचीन कालगणनाओ मेंभारतीय कालगणना प्राचीनतम है| इसकाप्रारंभ पृथ्वी पर आज से प्रायः 198 करोड वर्षपूर्व वर्त्तमान श्वेत वराह कल्प से होता हैं, अतःयह कालगणना पृथ्वी पर प्रथम मनावोत्पत्ति सेलेकर आज तक के इतिहास को युगात्मक पद्धति सेप्रस्तुत करती है, काल की इकाइयों कीउत्तरोत्तर वृद्धि और विकास के लिएकालगणना के हिन्दू विशेषज्ञों ने अंतरिक्ष केग्रहों की स्थिति को आधार मानकरपंचवर्षीय, 12 वर्षीय और 60 वर्षीय युगों कीप्रारंभिक इकाइयों का निर्माण किया.भारतीय कालगणना का आरम्भ सूक्ष्मतम इकाईत्रुटी से होता है, इसके परिमाप के बारे में कहागया है कि सुई से कमल के पत्ते में छेद करने मेंजितना समय लगता है वह त्रुटी है, यह परिमाप 1सेकेण्ड का 33750 वां भाग है| इस प्रकारभारतीय कालगणना परमाणु के सूक्ष्मतम ईकाई सेप्रारंभ होकर काल कि महानतम ईकाई महाकल्पतक पहुंचती है|पृथ्वी को प्रभावित करने वाले सातों गृह कल्पके प्रारंभ में एक साथ एक ही अश्विन नक्षत्र मेंस्थित थे, और इसी नक्षत्र से भारतीय वर्षप्रतिपदा (भारतीय नववर्ष) का प्रारंभ होताहै, अर्थात प्रत्येक चैत्र मास के शुक्ल पक्ष केप्रथमा को भारतीय नववर्ष प्रारंभ होता है|जो वैज्ञानिक द्रष्टि के साथ-साथसामाजिक व सांस्कृतिक संरचना को प्रस्तुतकरता है| भारत में अन्य संवत्सरो का प्रचलन बादके कालों में प्रारंभ हुआ जिसमे अधिकांश वर्षप्रतिपदा को ही प्रारंभ होते हैं, इनमे विक्रमसंवत महत्वपूर्ण है| इसका आरम्भ कलिसंवत 3044 सेमाना जाता है, जिसको इतिहास में सम्राटविक्रमादित्य के द्वारा शुरू किया गया था |भारतीय नव वर्ष चैत्र शुक्ल प्रतिपदा पर मनायाजाता है जब आकाश के सभी ग्रह-नक्षत्र पृथ्वीपर कृपा दृष्टि डालते हैं। नववर्ष प्रतिपदा कोवर्ष के पांच स्वयं सिद्ध मुहूर्तों में से एक मानाजाता है। इस दिन कोई भी काम प्रारंभ कियाजा सकता है। पांच स्वयं सिद्ध मुहूर्तों केअतिरिक्त अन्य दिनों में सभी कार्यों के लिएशुभ मुहूर्त हो ही नहीं सकता। इसलिए अन्यदिनों में कार्य विशेष के लिएमुहूर्त निकाला जाता है। अब पाश्चात्यविद्वान भी ग्रहों के प्रभाव को स्वीकार करचुके हैं।भारतीय नववर्ष तब मनाया जाता है, जबप्रकृति में नवचेतना आनी शुरू हो जाती है।भारतीय नववर्ष रात के बारह बजे नहीं बल्किसूर्योंदय से मनाया जाता है। जब अंधेरा समाप्तहोता है और प्रकाश फैलता है।इसी दिन ब्रह्मा ने सृष्टि की रचना की थी औरइसी दिन हमारी पृथ्वी का जन्म हुआ था, यहअभी पाश्चात्य वैज्ञानिकों को शोध करनापडे़गा।भारतीय नववर्ष तब आता है, जब न तो गर्मी चरमपर होती है और न ही सर्दी। मौसम सम होताहै।भारत में अलग अलाग भूक्षेत्र के लोग इसे अलग अलगतिथियों पर अपने इतिहास, परंपराओं से जोड़कर अलग अलग नाम से मनाते है , पर सभी इसकेवैज्ञानिक मूल्यों को समझते हुए तय विशेषदिवस को ही मनाते है, प्राय यह यह तिथिअप्रैल और मार्च के बीच में ही होती है|पंजाब में नया साल बैशाखी नाम से १३ अप्रैलको मनाई जाती है। सिख नानकशाही कैलंडर केअनुसार १४ मार्च होला मोहल्ला नया सालहोता है। इसी तिथि के आसपास बंगाली तथातमिळ नव वर्ष भी आता है। तेलगु नया सालमार्च-अप्रैल के बीच आता है। आंध्रप्रदेश में इसेउगादी (युगादि=युग+आदि का अपभ्रंश) के रूप मेंमनाते हैं। यह चैत्र महीने का पहला दिन होताहै। तमिल नया साल विशु १३ या १४ अप्रैल कोतमिलनाडु और केरल में मनाया जाता है।कश्मीरी कैलेंडर नवरेह १९ मार्च को होता है।महाराष्ट्र में गुड़ी पड़वा के रूप में मार्च-अप्रैल केमहीने में मनाया जाता है, कन्नड नया वर्षउगाडी कर्नाटक के लोग चैत्र माह के पहले दिनको मनाते हैं, सिंधी उत्सव चेटी चंड, उगाड़ी औरगुड़ी पड़वा एक ही दिन मनाया जाता है। मदुरैमें चित्रैय महीने में चित्रैय तिरूविजा नए साल केरूप में मनाया जाता है। बंगाली नया सालपोहेला बैसाखी १४ या १५ अप्रैल को आता है।पश्चिम बंगाल और बांग्लादेश में इसी दिन नयासाल होता है।नए अन्न किसानो के घर में आ जाते हैं, वृक्ष में नएपल्लव यहाँ तक कि पशु-पक्षी भी अपना स्वरूप नएप्रकार से परिवर्तित कर लेते हैं| होलिका दहन सेबीते हुए वर्ष को विदा कहकर नवीन संकल्प केसाथ वाणिज्य व विकास की योजनायेंप्रारंभ हो जाती हैं | वास्तव में परंपरागत रूप सेनववर्ष का प्रारंभ चैत्र शुक्ल प्रतिपदा से हीप्रारंभ होता है|प्रस्तुत तथ्यों से स्पष्ट है कि अंग्रेजी नववर्ष काप्रकृति और ब्रमांड से कोई लेना-देना नहीं है,जबकि भारतीय नववर्ष चैत्र शुक्ल प्रतिपदाज्योतिष के अनुसार वैज्ञानिक औरआध्यात्मिक तथ्यों के अनुसार और प्रकृति चक्र केअनुसार मनाया जाता है। गंभीरता से देखें तोउत्सव मनाने की प्रत्येक क्रिया के पीछे समस्तभूमंडल का हित समाहित है। हमें इस बात काध्यान रखना होगा कि कहीं हम पाश्चात्यसंस्कृति का अंधानुकरण करते हुए, वास्तविकनववर्ष अथवा भारतीय नववर्ष मनाना भूल नजाएं। पश्चिम के विद्वान अभी तकभौतिकतावाद की दुनिया में ही भ्रमण कर रहेहैं। पाश्चात्य संस्कृति का अंधानुकरण करने सेहमारा दृष्टिकोण और सोच भी भौतिकवादीतक ही सीमित रह गई है। वैश्वीकरण, उदारीकरणऔर आधुनिकतावाद के नारों के बीच भारतीयसंस्कृति गुम होती जा रही है। ऐसे वक्त में जब समस्त विश्व मानवता, संस्कृति और आध्यात्मकी सीख के लिए भारत की ओर निहार रहा है,तब हमें भी भारतीय नववर्ष पर गर्व करते हुए उपनिवेशवादी संस्कृति के इस न्यू इयर के लबादे को उतार फेंकना चाहिए ।।