सुप्रीम कोर्ट ने समलैंगिक संबंधों को अपराध के दायरे से किया बाहर, 5 जजों की संविधान पीठ ने शीर्ष न्यायालय के 2013 के फैसले को पलटा, कहा धारा 377 के समलैंगिकता को नहीं माना जाएगा अपराध।
देश की सर्वोच्च अदालत ने समलैंगिकता को अपराध की श्रेणी से हटा दिया है। इसके अनुसार आपसी सहमति से दो वयस्कों के बीच बनाए गए समलैंगिक संबंधों को अब अपराध नहीं माना जाएगा। 5 जजों की संविधान पीठ ने सुप्रीम कोर्ट के 2 जजों के 2013 के फैसले को पलटा। धारा 377 के तहत अब समलैंगिकता को अपराध नहीं माना जाएगा।
2009 में दिल्ली हाई कोर्ट ने समलैंगिकता को अपराध की श्रेणी से हटाया था। दिल्ली हाईकोर्ट के फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई थी। 2013 में सुप्रीम कोर्ट की 2 जजों की पीठ ने हाई कोर्ट के फैसले को रद्द कर दिया था। 2016 में तत्कालीन सीजेआई जस्टिस ठाकुर ने मामले में दायर क्यूरेटिव पिटीशन को पांच जजों की संविधान पीठ को सौंपा था। 2018 में सीजेआई जस्टिस दीपक मिश्रा की अध्यक्षता में 5 जजों की पीठ ने नए सिरे से सुनवाई शुरू की थी
मुख्य न्यायाधीश दीपक मिश्रा की अध्यक्षता वाली सुप्रीम कोर्ट की पांच सदस्यीय खंडपीठ ने समलैंगिकता को अपराध बताने वाली धारा को खत्म कर दिया है। जिसके बाद अब समलैंगिकता अपराध नहीं माना जाएगा।सुप्रीम कोर्ट के फैसला आने के बाद लोगों ने इसे ऐतिहासिक फैसला बताया। 24 साल और कई अपीलों के बाद सुप्रीम कोर्ट के पांच न्यायाधीशों की खंडपीठ ने अंतिम फ़ैसला दिया है।