हनुमान जी की जाति पर विवाद हो गया। हो भी क्यों न, भारत विवादों का देश जो है। विवादों के बल पर जीना ही भारतीय लोकतंत्र का चरित्र है। हनुमान के बनवासी होने के सत्य से सबसे अhanumanधिक पीड़ा और खुजली किसे होती है, जानते हैं? हनुमान जी से सबसे अधिक डरते हैं जंगलों में बनवासियों का धर्मपरिवर्तन कराने वाले ईसाई मिशनरी।
पिछले सौ वर्षों से बनवासियों को फुसलाने का उनका धंधा इसी आधार पर तो चल रहा है कि हिंदुओं के सारे देवता सवर्णों में से हैं। पिछले आठ सौ वर्षों से सनातन का ध्वज थामने वाले नाथपन्थ का एक सन्यासी आज जब सनातन के कलियुग में सबसे पूज्य देवता को बनवासी स्वाभिमान के साथ जोड़ता है, तो ईसाई मिशनरियां और उनके दलाल मीडियाकर्मियों का बिदकना स्वाभाविक ही है। सारे विवाद के पीछे बस इतनी सी ही बात है।
नहीं तो जब देश मे राम को क्षत्रिय कहे जाने या कृष्ण को यादव कहे जाने से किसी को कोई आपत्ति नहीं, तो फिर हनुमान को बनवासी कहने पर विवाद क्यों हो रहा है? यहाँ तो भगवान विश्वकर्मा और महर्षि वाल्मीकि भी एक-एक जातियों के प्रतीक बन चुके हैं। फिर हनुमान जी पर विवाद क्यों?
आपको पता है मिशनरी केरल और तमिलनाडु में मुरुगन के नाम से पूज्य भगवान कार्तिकेय को कई वर्षों से क्राइस्ट बता कर लोगों को फुसला रहे हैं? केरल के हिंदुओं के घर जा कर उन्हें बताया जा रहा है कि मुरुगन भगवान शिव के पुत्र नहीं, यीशु थे। आपको पता है कि दक्षिण के कई मंदिरों को हड़पने का लिए ईसाई मिशनरियां उन्हें अपना बता कर उनमें यीशु की लाश वाली मूर्ति टांगने का प्रयास कर चुकी हैं? आपको पता है कि हजारों की संख्या में ईसाई कई मंदिरों में ऐसे आक्रमण कर चुके हैं?
हनुमान जी को बनवासी स्वाभिमान से जोड़ना उन सभी धार्मिक आक्रमणकारियों को बुरा लगा है, वे विवाद तो खड़ा कराएंगे ही।
हनुमान जी हमारे लिए कलियुग के सबसे बड़े मार्गदर्शक हैं। वे ब्राह्मण, क्षत्रिय, बनवासी, वैश्य सब हैं। वे इन वर्गों में हो कर भी इनसे ऊपर हैं। उनके बनवासी होने के सत्य को न कोई ईसाई मिशनरी झुठला सकता है, न उनके उत्कोच पर पलने वाले कथित बुद्धिजीवी।
क्रूर धार्मिक आक्रमणकारियों के विरुद्ध मैं नाथपन्थ के इस महत्वपूर्ण प्रयास को नमन करता हूँ।