जसविंदर :
आज भगवान वाल्मीकि जयंती है।
हर जगह झांकियां निकाली जाएंगी। सभी वर्ग से सभी जातियों से उस में हिस्सा लेते हैं और यह बहुत ही अच्छी बात है। पर क्या हम सदियों से चली आ रही दलित वर्ग की उपेक्षा होने का कारण जान पाए हैं। या फिर जानने की कोशिश की है।
देश तो तरक्की कर रहा है पर क्या दलितों को उपेक्षित कर हम देश को आगे ले जायेंगे। आज भी वो मल मूत्र,व मैला ढोने का काम करने पर मजबूर हैं। अगर मैं आजादी से पहले की बात करूं तो गोखले जी ने
आज ब्रिटिश साम्राज्य में हमारी स्थिति अछूतों-जैसी हो गई है’ तो गोखले के इन शब्दों का अर्थ यही था कि यह ‘दलितों’ का हमारे द्वारा किए गए ‘दलन’ के बदले में हमारे प्रति न्यायी ईश्वर द्वारा किया गया न्याय ही है।
क्या उनके द्वारा कही गयी ये बात सिर्फ उसी दिन तक सीमित कर दी गयी थी।
12 मार्च, 1925 को त्रावणकोर की नगरपालिका को संबोधित महात्मा गांधी जी ने विवेकानंद जी को याद करते हुए
जब उन्होंने कहा कि हम इन्हें भूलवश इनको नीची जाति कहते हैं। विवेकानंद जी के द्वारा पहली बार जब दलित शब्द का प्रयोग किया गया था । स्वामी विवेकानंद जी ज्यादातर अंग्रेजी भाषा मे लोंगो को सम्बोधित करते थे। वे डिप्रेस्ड क्लास कहते थे।
स्वामी विवेकानंद ने हमें याद दिलाया था कि कथित ऊंची जातिवालों ने ही अपने में से कुछ लोगों को दलित किया था और ऐसा करके वे ऊंची जाति स्वयं अपने आप में नीच हो गए थे. आप अपने ही वर्ग के मनुष्यों को नीचा करके खुद ऊंचे नहीं बने रह सकते ।
महात्मा गांधी जी ने दलितों को हरिजन बना दिया।
दिलचस्प है कि आज भले ही ‘हरिजन’ शब्द को अपमानजनक मानकर कुछे दलित राजनेता महात्मा गांधी की आलोचना करते हों, लेकिन महात्मा गांधी ने हरिजन शब्द को चुनते हुए भी ‘सप्रेस्ड’ या ‘दलित’ शब्द को छोड़ा नहीं था. गांधी को ‘दलित’ शब्द से परहेज नहीं था. लेकिन ‘हरिजन’ शब्द को वे थोड़ा अधिक सकारात्मक और सुंदर मानते थे. 27 मार्च, 1936 को कुछ आर्य-समाजी हरिजन-सेवकों ने गांधी से पूछा- ‘पर लोग हमें हरिजन क्यों कहें, हिंदू क्यों नहीं?’
इसके जवाब में गांधी ने कहा, ‘मैं जानता हूं कि आपमें से कुछ थोड़े से लोगों को हरिजन नाम बुरा लगता है. पर इस नाम की उत्पत्ति आपको जान लेनी चाहिए. आपलोगों को पहले ‘दलितवर्ग’ या ‘अस्पृश्य’ या ‘अछूत’ कहा जाता था. ये सब नाम स्वभावतः आपमें से अधिकांश लोगों को बुरे लगते थे, अपमानजनक से मालूम होते थे. आपमें से कुछ लोगों ने इस पर अपना विरोध भी प्रकट किया और मुझे एक अच्छा सा नाम ढूंढ़ने के लिए लिखा. अंग्रेजी में ‘डिप्रेस्ड’ से बेहतर शब्द ‘सप्रेस्ड’ मैंने ले लिया था, पर जबकि मैं अच्छा हिंदुस्तानी नाम सोच रहा था, एक मित्र ने मुझे ‘हरिजन’ शब्द बतलाया…यह शब्द उन्होंने एक महान संत (नरसिंह मेहता) के भजन से लिया था. यह शब्द मुझे जंच गया. क्योंकि यह आपकी दीन-दशा को बड़ी अच्छी तरह व्यक्त करता था, और साथ ही, इसमें कोई अपमान जैसी बात भी नहीं थी.’
परन्तु आज के समय मे भी दलितों को अपमानित होना ही पड़ता है उनकी जाति का नाम लेकर उपहास बनाया जाता है। हिन्दू होते हुए भी हिन्दू नही है । क्या दलित भी हिन्दू हैं? अगर हैं भी तो उपेक्षित क्यों? अगर वाल्मीकि भगवान तो वाल्मीकि समाज उपेक्षित क्यों
धर्म अगर समानता न दिला पाए तो वो धर्म नही सिर्फ कुछ वर्गों के द्वारा रचा हुआ षड्यंत्र है।