क्या ये बहस का मुद्दा नही है की देश में ITR फ़ाइल करने वाले लोगो की संख्या 70% बढ़ गई , हाँ मित्रो जैसा की पूर्व सरकार ने इतने वर्षों तक आर्थिक सुधार के जो दावे किये वह सब दिखावा था , घोषित अर्थशास्त्रियों की जमात की करतूत यह रिपोर्ट आंकड़े के साथ बेहद सरलता से दर्शाती है।
इससे पहले एजेंडे और एकपक्षीय पत्रकारिता में लीन पत्रकार इन आंकड़ों की दुहाई भारत की गरीबी, अशिक्षा, बेरोजगारी पे फोड़ते हुए प्राइम टाइम शो करे उससे पहले देश को आर्थिक मोर्चे पे मिली इस वर्ष की सबसे बड़ी उपलब्धि से आपको रूबरू कराता हुँ।
आयकर विभाग के आंकड़े के अनुसार पिछले वित्तीय वर्ष इसी समय की तुलना के मुकाबले इस वर्ष तकरीबन 70फीसदी ज्यादा ITR फ़ाइल हुए हैं। पिछले वर्ष 3.12 करोड़ की तुलना में इस वर्ष 5.42 करोड़ लोगों ने इनकम टैक्स रिटर्न फ़ाइल किया है। कल ही खबर आई थी कि पहली तिमाही में भारतीय GDP 8.2 फीसदी के साथ बुलंदी पे थी, इसके अलावा आँकड़े ये भी बताते हैं कि देश की विदेशी मुद्रा कोष अब तक के अपने सार्वधिक स्तर पे है और भारत लगातार विश्व की सबसे बड़ी अर्थव्यस्था बनने की और अग्रसर है, FDI फ्लो में गजब की वृद्धि दर्ज हुई है, भारत अब बाजार के साथ-साथ मैन्युफैक्चरिंग हब बनने को भी अग्रसर है।
अब समझने योग्य ये हैं कि अगर रोजगार नही बढा जैसे विपक्ष के दावे हैं तो फिर इतनी भारी मात्रा में ITR भरने वाले कहाँ से आएं?? नोटबन्दी के बाद वित्तीय वर्ष 2017-18 में आयकर विभाग को वित्तीय वर्ष 2016-17 की तुलना में 57% से अधिक आय कर प्राप्त हुए थे औऱ इस वर्ष सरकार को मिलने वाले आय कर में भी 60% की वृद्धि होनी तय मानी जा रही।
अब सवाल है कि 4 वर्ष में जनता में यत्ना उत्साह बढ़ाया जा सकता है तो अर्थशास्त्री प्रधानमंत्री के शासन काल के दौरान ऐसी वृद्धि क्यों देखने को नही मिली?? उल्टा तब भारत का वित्तीय घटा बढा ही… अनियमितताएं आम थी… आज का इंफ्रास्ट्रक्चर मॉड्यूल पिछले सरकार से कहीं ज्यादा आकर्षक है… सड़क, बिजली सहित सभी क्षेत्रों में नंगी आँखों से सकारत्मक परिवर्तन देखा औऱ महसूस किया जा सकता है।
आँकड़ें झूठ नही बोलते और यहाँ आंकड़े प्रत्यक्ष रूप से मोदी सरकार की नीति और नियत की पीठ थपथपा रही है और स्पष्ट रूप से UPA 1 और UPA 2 की नीति औऱ नियत पे बड़ा प्रश्न चिन्ह खड़ी करती है।।
वैश्विक मंच पे अब दुनिया का भारत को देखने का नजरिया बदला है ऐसा इसलिए क्योंकि देश का कद ऊँचा हुआ है। भारत विश्व के साथ तुलनात्मक दृष्टिकोण से काफी तेजी से समृद्धि की इर अग्रसर होता राष्ट्र मालूम होता है। ऐसे में जान-बुझ कर एक आदमी के जनमानस के दिलों में बढ़ती पैठ से हैरान-परेशान पारंपरिक पारिवारिक राजनीति के घोषित पुरोधे, अप्रत्यक्ष शासन करने की मनोवृति एवम विचारधारा से ग्रस्त वामपंथी देश को नकारात्मकता की आग में धकेल कर गृह युद्ध का माहौल खड़ा करने में कोई कसर नही छोड़ना चाह रहे पर जब सबका साथ सबका विकास की नियत से आई ये सरकार इनकी राजनीति को विफल करने हेतु कोई कदम उठाते हैं तो इनके अपने समर्थंक ही बगावत पे उतर आते हैं। ध्यान रखिएगा ये जाती ये धर्म तब तक ही आपका है जब तक ये देश आपका है… भारत के बाहर आपकी सबसे बड़ी पहचान भारतीय होना ही है औऱ इस बात का धेय्य तो आपको निश्चित है कि आपकी जाती के किये अगर भाजपा आज आपके साथ खड़ी नही तो कोई और भी नही है हाँ दूसरे आपको अपाहिज भी बना देंगे जब sc-st के साथ साम्प्रदायिक हिंसा बिल को भी आपके खिलाफ इस्तेमाल में लाएंगे।
आपका वोट आपकी जाती-धर्म से कहीं ज्यादा आपके देश का भविष्य तय करता है इसलिए सचेत रहें, दिमाग खुला रखें नही तो कहीं ऐसा न हो कि “चौबे जी गयें थे छब्बे बनने औऱ दुब्बे बन कर लौटें” ऐसा इसलिए क्योंकि 2004 में भी आप ही लोग थे जिन्होंने अटल जी को छला था फिर 2014 में मोदी के लिए लौट कर आएं कितने घोटाले, मुम्बई के हमले, कर्नल पुरोहित-साध्वी प्रज्ञा आदि के साथ हुए अत्यचारों को देखने के बाद पर फिर से आपका यही अति भावुक होना बापस से उसी गर्त की ओर धकेलेगा हमें।।
बाकी आत्मसम्मान और स्वाभिमान अगर इतना प्रखर है आपका तो मुझे नही लगता कि आप प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष किसी भी रूप से ———–जैसे निकम्मे-नाकारों को इस देश का नेता बन जांना स्वीकारेंगे।। शेष आपका विवेक अपना तो वही है