एक ऐसे क्रान्तिकारी जिससे अंग्रेजी हुकमत थर्राती थी। चटागांव के मास्टर दा यानि सूर्यसेन ने अंग्रेजों के साम्राज्यवादी इरादों को चकनाचूर कर दिया।
12 जनवरी, 1934 को सूर्य सेन और तारकेश्वर वतन की राह पर हंसते हंसते फाँसी के तखते पर झूल गए। चटगांव के नायक मास्टर सूर्यसेन से अंग्रेजी हुकूमत कांपती थी। ये वह दौर था जब चटगांव के युवाओं में आजादी पाने की हसरत अंगड़ाईयां ले रही थी और क्रांति का चेहरा बने मास्टर दा यानि सूर्य सेन। उन्होने चटगाँव के कोने-कोने में क्रांति की अलख जगा दी।
अंग्रेजों के हथियारों का मुकाबला करने के लिए सूर्य सेन ने गुरिल्ला युद्ध करने की रणनीति बनाई। 23 दिसम्बर, 1923 को चटगाँव में आसाम-बंगाल रेलवे के ट्रेजरी ऑफिस को लूटा। चटगाँव आर्मरी रेड कर अंग्रेज़ सरकार को झकझोर दिया।
सूर्य सेन ने भारतीय प्रजातान्त्रिक सेना का संगठन किया। 18 अप्रैल, 1930 सूर्य सेन की अगुवाई में चटगाँव के पुलिस शस्त्रागार पर कब्ज़ा कर राष्ट्रीय ध्वज फहरा दिया और भारत की अस्थाई सरकार की स्थापना की। सूर्य सेन लगातार फिरंगीयों को छकाते रहे। 16 फ़रवरी, 1933 आखिरकार पुलिस ने धौके से उन्हे गिरफ्तार कर लिया। उनपर मुकदमा चलाया गया और सजा-ए-मौत का फर्मान सुनाया दिया गया।