भारतीय राजनीति में लोक लुभावन नारे और वादे की एक लंबी फेहरिस्त रही है। इन वादों की फेहरिस्त को आगे बढ़ाते हुए टेक्नोलोजी और सोशल मीडिया के द्वारा अब युवा मतदाताओं को रिझाने की कोशिश जा रही है।
एक ज़माना था,जब चुनावों में सस्ते चावल,गेहूँ और धोती साड़ी देने के वायदे के साथ सियासी पार्टियाँ चुनाव मैदान में उतरती थीं। लेकिन समय ने करवट बदली और अब डिज़ीटल इंडिया और सोशल मीडिया के दौर में यूथ हर सियासी पार्टियों के लिये सत्ता तक पहुंचने का एक अहम ज़रिया बन गया है।
इसकी बानगी यूपी विधानसभा चुनाव से पहले बढ़ी सरगर्मियों में देखने को मिल रही है। जहाँ पार्टियों के तमाम फ़ैसले युवाओं को केन्द्र में रखकर किये जा रहे हैं। समाजवादी पार्टी का हालिया स्मार्टफ़ोन देने का एलान इसी नयी सियासत का हिस्सा है।
लेकिन केन्द्र की सत्तारुढ़ भाजपा उत्तरप्रदेश सरकार पर अक्रामक है। बीजेपी का कहना है कि पिछले चुनाव में लैपटाप के वायदे हवा हो गये,ऐसे में स्मार्टफोन का भरोसा छलावा है।
यूपी सरकार ने दसवीं पास और 1 जनवरी 2017 को 18 साल की उम्र पूरा करने वाले छात्रों को नई सरकार में आने पर स्मार्टफोन देने का वायदा किया है। जिनके परिवार की सालाना आमदनी 2 लाख रुपये से कम होने चाहिये। इसके लिये छात्रों को हाईस्कूल पास का प्रमाण पत्र देना होगा और निबंधन कराना होगा।
आईये एक नज़र डालते हैं भारत की सियासत में लुभावने नारे और वायदों की भरमार इससे पहले कहाँ – कहाँ रही। 2006 के चुनाव में डीएमके ने जनता से कलर टेलीविज़न सेट देने का वायदा किया था। वहीं यूपी में समाजवादी पार्टी 2012 के विधानसभा चुनाव में लैपटॉप के सहारे चुनाव मैदान में उतरी थी।
बिहार चुनाव 2015 में नीतीश कुमार भी वायदा करने में पीछे नहीं रहे और छात्रों को क्रेडिट कार्ड के ज़रिये चार लाख रुपये के ऋण देने का एलान कर दिया। 2016 के चुनावों में तमिलनाडू में डीएमके ने एजुकेशन लॉन,टैबलेट,लैपटॉप देने का वायदा जनता से किया।
जबकि आल इंडिया अन्नाद्रमुक ने स्कूटर और मोबाईल फोन की खरीद पर सब्सिडी देने का लुभावना वायदा किया। उत्तरप्रदेश सरकार का रुझान कहीं न कहीं पीएम मोदी के डिज़ीटल इंडिया कार्यक्रम से प्रभावित दिखाई पड़ रहा है। लेकिन देखना होगा कि यूपी की जनता इस बार टेक्नोलोजी के प्रयोग को कितना मह्त्व देती है।