के के शर्मा, बीकानेर : भारत में हर धर्म के लोगों के दीवाली मानने के अपने अपने कारण हैं जैन लोग दीवाली मनाते हैं क्योंकि इस दिन उनके गुरु श्री महावीर को निर्वाण प्राप्त हुआ था। सिख दीवाली अपने गुरु हर गोबिंद जी के बाकी हिंदू गुरुओं के साथ जहाँगीर की जेल से वापस आने की खुशी में मनाते हैं। बौद्ध दीवाली मनाते हैं क्योंकि इस दिन सम्राट अशोक ने बौद्ध धर्म स्वीकार किया था। और हिन्दू दीवाली मनाते हैं अपने चौदह वर्षों का बनवास काटकर प्रभु श्रीराम के अयोध्या वापस आने की खुशी में।
प्यार और त्याग की मिट्टी से गूंथे अपने अपने घरौंदों को सजाना भाँति भाँति के पकवान बनाना नए कपड़े और पटाखों की खरीददारी ! दीपकों की रोशनी और पटाखों का शोर बस यही दिखाई देता है चारों ओर। हमारे देश और हमारी संस्कृति की यही खूबी है। त्यौहार के रूप में मनाए जाने वाले जीवन के ये दिन न सिर्फ उन पलों को खूबसूरत बनाते हैं बल्कि हमारे जीवन को अपनी खुशबू से महका जाते हैं। हमारे सारे त्यौहार न केवल एक दूसरे को खुशियाँ बाँटने का जरिया हैं बल्कि वे अपने भीतर बहुत से सामाजिक संदेश देने का भी जरिया हैं।
दिवाली कह ले या दीपावली बात तो एक ही है. बात करे उस अँधेरे को मिटाते हुए दिए की या उस ख़ामोशी को चीरते हुए पटाखे की, हर कही एक उल्लास भरा होता है. एक अनकही सी ख़ुशी होती है जिसे हम अपनों से मिलकर, उन्हें अपने हाथो से मिठाई खिलाकर बयां करते है. सभी अपनों से मिलते है और प्यार बांटते है. लेकिन इस बीच कही एक बात दिल में यह भी चुभती है कि कही कुछ लोग ऐसे भी है जो आज भी उन जलते हुए पटाखों को देखकर खुश तो है लेकिन यह पटाखे वे खुद नही जला रहे है. एक मुह से दूसरे मुंह तक मिठाई जाते हुए देख तो रहे है लेकिन खुद खा नहीं पा रहे है. लेकिन वे खुश है कि ये दिवाली है…..रौशनी की मोजुदगी नहीं है उनके घरो में लेकिन आँखों में एक तेज है….हो भी क्यों ना वे खुश है कि ये दिवाली है।ये हमारे भारतवर्ष के वही लोग है जो सुबह से लेकर शाम तक कही ना कही मजदूरी करते है और अपना पेट पालते है. वक़्त और हालात की मज़बूरी के चलते ये वे खुशियां तो नहीं खरीद पाते है जो अमीरो की चौखट पर सजती है. वो रंबिरंगी फुलझड़ियां तो नहीं छोड़ पाते जिनसे एक रौशनी होती है. लेकिन इनके पास एक ना कह सकने वाली उम्मीद होती है जो इनकी मुस्कान में ना जाने कहाँ से झलक पड़ती है.
हर माता पिता चाहते हैं कि उनका बच्चा दीपोत्सव पर अपनी मुस्कान बिखेरे । दीपावली का त्यौहार बच्चों के लिए खुशियां लेकर आए हर माता-पिता पूरा प्रयास करते हैं कि वह अपने बच्चों की हर ख्वाहिश को पूरा कर सके चाहे वह अच्छे कपड़े हो, पटाखे हो, मिठाई हो, खिलौने हो या साज सज्जा का सामान, हर माता-पिता दीपक की रोशनी के साथ अपने बच्चे के चेहरे पर भी चमक देखना चाहते हैं। लेकिन एक तबका ऐसा भी है जिनके बच्चों को दीपावली के महापर्व पर भी मुस्कान नहीं मिल पाती, उनके माता-पिता दो वक्त खाना बमुश्किल जुटा पाते हैं इससे अधिक कुछ नहीं । उनकी भी इच्छा होती है कि वह दूसरे बच्चों की तरह नए कपड़े पहने, मिठाई खाए, पटाखे फोड़े लेकिन उनकी गरीबी उनकी यह इच्छा पूरी नहीं कर पाते।
विडंबना है कि किसी घर से मीठे के डिब्बे बासी होने पर फेंके जाएंगे, तो कोई कई रातों बाद भी आज भी भूखा सोएगा. किसी घर के बच्चे तीन-चार जोड़ी कपड़े बदलेंगे, तो किसी के तन पर आज भी चिथड़े नहीं होंगे. कोई अमीर आज कुत्ते का घर भी सजायेगा पर किसी गरीब की बरसों से टूटी झोपड़ी में आज भी अंधेरा छाया रहेगा।
दीवाली हम मनाते हैं गणेश और लक्ष्मी पूजन करके तो हर बार की तरह इस बार भी इनके प्रतीकों की पूजा अवश्य करें लेकिन साथ ही किसी जरूरतमंद ऐसे नर की मदद करें जिसे स्वयं नारायण ने बनाया है शायद इसीलिए कहा भी जाता है कि ”नर में ही नारायण हैं”। और किसी शायर ने भी क्या खूब कहा है, घर से मंदिर है बहुत दूर तो कुछ ऐसा किया जाए किसी रोते हुए बच्चे को हँसाया जाए। जलाओ दीप पर रहे ध्यान इतना अंधेरा धरा पर कहीं रह ने जाए। इस आधार पर हमें उन गरीब भाइयों के यहां जाकर कर दीपक जलाकर मिठाई खिलानी चाहिए। हम समाज के एक अंग है। ऐसे में जो समाज से बिखरे हुए है उन्हें अपने साथ मिलाए। यही समाजिकता है।तो इस बार किसी बच्चे को पटाखे या नए कपड़े दिलाकर उसकी मुस्कुराहट के साथ दीवाली की खुशियाँ मनाएँ और इस दीवाली अपने दिल की आवाज को पटाखों के शोर में दबने न दें।पटाखों में हम हजारों रुपये फूंक देते हैं लेकिन अगर उन पैसों का चौथाई हिस्सा भी गरीब बच्चों के मुस्कान पर खर्च कर दिए जाए तो शायद ये दिवाली बेहतरीन बन सकती है इसलिए कोशिश कीजिए आप अपने पैसों का एक हिस्सा गरीब बच्चों को मिठाई खिलाने में खर्च करें जिससे आपकी दिवाली भी शानदार हो और उस बच्चे की भी। घर को सजाने वाले सामान किसी बड़ी दुकान के बजाए किसी जरूरतमंद की दुकान से खरीदें जाएं तो आपके साथ उसकी दिवाली भी खास हो जाएगी।दीवाली के पहले भारत माता की ओर से धनपतियो से अपील तो की ही जा सकती है, कि इस दीवाली पर तुम एक काम करना- गरीब बच्चो का भी ध्यान रखना. जो बच्चे अनाथालयों में पल रहे है, उनके लिए भी कुछ मिठाईयां (नकली नहीं..), कुछ पटाखे भी खरीद कर वहां तक पहुंचा देना. यही हमारे नागरिक होने का फ़र्ज़ है. वृधाश्रम में उपेक्षित बुजुर्ग रहते है. उनके बीच भी जाना. दीवाली की खुशियाँ तब और बढ़ जायेगी.
पटाखो कि दुकान से दूर हाथों मे,
कुछ सिक्के गिनते मैने उसे देखा…
एक गरीब बच्चे कि आखों मे,
मैने दिवाली को मरते देखा.
थी चाह उसे भी नए कपडे पहनने की…
पर उन्ही पूराने कपडो को मैने उसे साफ करते देखा.
हम करते है सदा अपने ग़मो कि नुमाईश…
उसे चूप-चाप ग़मो को पीते देखा.
जब मैने कहा, “बच्चे, क्या चहिये तुम्हे”?
तो उसे चुप-चाप मुस्कुरा कर “ना” मे सिर हिलाते देखा.
थी वह उम्र बहुत छोटी अभी…
पर उसके अंदर मैने ज़मीर को पलते देखा
रात को सारे शहर कि दीपो कि लौ मे…
मैने उसके हसते, मगर बेबस चेहरें को देखा.
हम तो जीन्दा है अभी शान से यहा.
पर उसे जीते जी शान से मरते देखा.
लोग कहते है, त्योहार होते हैजि़दगी मे खूशीयो के लिए,
तो क्यो मैने उसे मन ही मन मे घूटते और तरसते देखा?
आओ इस बार ऐसी दीवाली मनाएँ कि यह एक दिन हमारे पूरे साल को महका जाए और रोशनी का यह त्यौहार केवल हमारे घरों को नहीं बल्कि हमारे और हमारे अपनों जीवन को भी रोशन कर जाए। हमारी छोटी सी पहल से अगर हमारे आसपास कोई न हो निराश, तो समझो दीवाली है। हमारे छोटे से प्रयास से जब दिल दिल से मिलके दिलों के दीप जलें और उसी रोशनी से, हर घर में हो प्रकाश तो समझो दीवाली है।
के के शर्मा, नवल सागर कुंआ, बीकानेर