नीरज कुमार जोशी : गाय हमारे देश की धार्मिक मान्यताओं में एक महत्वपूर्ण स्थान रखती है। आज भी अधिकांश हिन्दू समाज गाय को माँ मानता है और कई त्यौहारों में तो गाय को ईश्वरीय अंश मानकर पूजा जाता रहा है। इसलिए गाय से जुड़ा हर मुद्दा हमारे देश में काफी संवेदनशील होता है। मुझे इतिहास में ज्यादा विस्तार से जाने की जरूरत नहीं है फिर भी इतना बता दूँ कि सर्वप्रथम फिरंगियों ने हमारे देश में गाय का कत्ल करवाना शुरू किया था जिसके दो मकसद थे एक तो फिरंगी सैनिकों को गौमांस मिलता रहे और दूसरा भारत में तत्कालीन हिन्दू-मुस्लिम एकता को भी खंड-खंड किया जा सके। आगे आप जानते है कि सर्वप्रथम मंगल पांडे ने गौहत्या का विरोध करते हुए अपनी कुर्बानी दी और उसके बाद तो गौहत्या बंद करवाने का मुद्दा देश को स्वतंत्र कराने से भी बड़ा मुद्दा बन चुका था। अंग्रेज चूँकि मुस्लिमों से गाय कटवाते थे इसलिए हिन्दू-मुस्लिमों में धर्म के आधार पर दंगे भी लगभग १८९०-१९०० के दशक में शुरू हो चुके थे जो आज भी सतत जारी हैं।“आजादी बचाओ आन्दोलन” और भारत स्वाभिमान जैसे महत्वपूर्ण आंदोलनों के प्रणेता और सामाजिक कार्यकर्ता स्व. राजीव दीक्षित जी को सुनने और समझने के बाद मुझे गाय का आर्थिक और चिकित्सकीय महत्व भी पता चला।इसलिए मैं स्वयं गौरक्षा को अपने जीवन में महत्वपूर्ण स्थान देता हूँ लेकिन फिर भी आज का लेख कई पहलुओं में मेरे और समाज के विरुद्ध भी जा सकता है जिसके लिए में माफी मांगना चाहता हूँ।
अभी कुछ दिन पूर्व गुजरात के ऊना में एक विवादास्पद घटना घटी जहाँ कुछ तथाकथित गौरक्षकों (जो कि सवर्ण कैटेगरी में आते थे) ने गौ तस्करी के विरोध में कुछ दलित (चर्मकार) बंधुओं की बेरहमी से पिटाई कर दी। हालाँकि जब ये घटना घटी इसमें मुद्दा गौरक्षा का दिखाया और बताया गया लेकिन इस बात से भी इनकार नहीं जा सकता कि ये किन्हीं दो गुटों का कोई आपसी विवाद जैसे जमीन सम्बन्धित या राजनैतिक रहा हो ताकि सम्पूर्ण देश का ध्यान इस मुद्दे की और आकर्षित किया जा सके। हुआ भी वही भारतीय मीडिया (So called forth pillar of Democracy) ने इसे जातिवादी मुद्दा बना दिया और कई राष्ट्रीय टीवी चैनलों के एंकर और न्यूज रिपोर्टर पानी पी-पीकर केंद्र और गुजरात की बीजेपी की सरकार को कोसने लगे। लगभग सभी विपक्षी पार्टियों के मुखिया और प्रवक्ताओं ने भी स्वयं को दलितों और अल्पसंख्यकों का सबसे बड़ा रक्षक और बीजेपी को दलितों और अल्पसंख्यकों का सबसे बड़ा दुश्मन साबित करना शुरू कर दिया। जो नेता सर्दी, खांसी के दर से घर पर ठीक से नहाते भी नहीं होंगे वो भी हमारे दलित भाइयों के आंसू पोछने के लिए ऊना पहुँच गए। अब चूँकि सभी जानते हैं कि साल २०१७ में कुल पांच राज्यों में विधानसभा चुनाव होने हैं और इन पांचों राज्यों में ही कुल आबादी का एक बड़ा हिस्सा दलित समुदाय से ही आता है इसलिए सभी राजनैतिक दलों को तो बैठे-बिठाये ही मुद्दा हाथ लग गया और भाजपा को ये डर सताने लगा कि कहीं उनका वोट बैंक न खिसक जाय इसलिए दिल्ली और हैदराबाद के दो अलग-अलगकार्यक्रमों में भारत देश के वर्तमान प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी जी ने इन तथाकथित गौरक्षकों के खिलाफ एक बयान दिया और कहा कि 80% तथाकथित गौरक्षक अपराधी हैं जिनका गौरक्षा से वास्तव में कोई लेना देना नहीं है वो बस अपने गलत-गलत कामों में पर्दा डालने के लिए दिन में गौरक्षक का चोगा पहन लेते हैं। उन्होंने यह भी कहा कि ज्यादा गाय स्लॉटर हाउस में नहीं बल्कि प्लास्टिक खाने से मर रही हैं इसलिए वास्तविक गौरक्षकों को चाहिए कि वो इधर-उधर पडी प्लास्टिक को हटायें ताकि गाय प्लास्टिक न खा सके।
ये तो सब भूमिका थी असल मुद्दे पर आता हूँ, मैं मुद्दे को सामाजिक और राजनैतिक दो दृष्टिकोण से देखता हूँ। पहला तो यह कि आज से लगभग चार साल पहले मैं टीवी पर किसी न्यूज चैनल पर एक कार्यक्रम देख रहा था जहाँ परमपूज्य स्वामी रामदेव जी महाराज भी पधारे हुए थे न्यूज एंकर ने स्वामी जी को एक सवाल किया कि आप नरेन्द्र मोदी या भाजपा का समर्थन क्यों कर रहे हैं सोनियाजी या राहुल गांधी का क्यों नही क्योंकि आप तो साधु हो (प्रश्न मुझे ठीक तरह से याद नहीं है) तो स्वामी जी जबाब दिया कि आपकी सोनिया माता हर महीने नब्बे हजार गाय इस देश में कटवा रही हैं। उस वक्त स्वामी जी के चहरे पर बहुत गुस्सा था जो कि मुझे अच्छा लगा क्योंकि में भारत स्वाभिमान का कार्यकर्ता भी था और स्वामी जी का प्रबल समर्थक भी लेकिन तुरंत टीवी के हम आस-पास बैठे लोगों में बहस शुरू हो गयी और रामदेव जी के विरोधी एक सरकारी ऑफिसर ने मजाक में मुझे चिड़ाते हुए कहा कि तुम्हारे बाबा तो ऐसे बात कर रहे हैं जैसे कि वो इस देश में गौहत्या बंद करवा देंगे।हुआ भी वही क्योंकि आज जिस तरह से माननीय प्रधानमंत्री जी ने बयान दिया है और स्वामी जी की तरफ से कोई भी प्रतिक्रिया नहीं है उससे तो यही दिखता है कि अभी लम्बे समय तक गौहत्या इस देश में रुकने वाली नहीं है।
दूसरा राजनैतिक दृष्टिकोण यहाँ यह भी है कि जिस तरह से तथाकथित गोरक्षकों ने दलित (चर्मकार) बंधुओं की बर्बरतापूर्वक पिटाई की उस पर यदि कानूनी रूप से रोक ना लगाईं जाए तो ये हम बहुत तेजी से अराजकता की ओर जायेंगे और सवर्ण और दलितों के बीच की खाई कभी न पटने वाली एक बहुत गहरी खाई बन जायेगी जो हमें एक अनिश्चितकालीन गृहयुद्ध की और भी ले जा सकती है। इसके लिए माननीय प्रधानमंत्री जी का बयान स्वागत के योग्य है।
तीसरा राजनैतिक दृष्टिकोण यहाँ यह भी है कियदि इस अराजकता पर रो न लगाईं गई तो आगामी पांच राज्यों के चुनाओं में बीजेपी को हारना तो पड़ेगा ही साथ ही साथ इस देश की घटिया राजनीति के लोगों को समाज को बांटने का एक और मुद्दा मिल जाएगा और कभी भी किसी भी सरकार को अस्थिर करने की नियत से विपक्षी दलों द्वारा कभी भी दो समुदायों को कुछ रंग-बिरंगी कागज के टुकड़ों के बल पर लड़वा दिया जाएगा और इस देश की सरकार कभी भी स्थिर नहीं रह पायेगी जिससे विभिन्न विदेशी संस्थाओं द्वारा चलाये जा रहे धर्मांतरण को यहाँ पर बल मिलेगा।
अब मैं सामजिक दृष्टिकोण की बात करता हूँ तो मुझे लगता है कि जहाँ तक हो माननीय प्रधानमंत्री जी की बात में कोई बुराई नहीं है और ये बात सच भी है कि गाय प्लास्टिक कचरा खाने से ज्यादा मर रही हैं क्योंकि मैं अल्मोड़ा जिले के जिस गाँव से सम्बन्ध रखता हूँ वहां लोगों के जीवन-यापन का मूलाधार पशुपालान ही है। लोग गाय, भैंस, जर्सी, बकरे-बकरियां आदि पालते हैं। गाय, भैंस और जर्सी का उपयोग दूध-घी आदि के लिए किया जाता है तो बकरे-बकरियां मांस भक्षण में इस्तेमाल होती हैं। गाँव में सम्मलित रूप से ब्राह्मण, राजपूत और आरक्षित समाज के लोग रहते हैं। मैंने अक्सर गाँव और आस-पास के अन्य सभी गाँवों में देखा है कि जब तक गाय-भैंस दूध दे रहे हैं तब तक तो ठीक है उसके बाद बूड़े जानवरों को या तो घने जंगलों में छोड़ दिया जाता है जहाँ से वो बाजार की ओर रुख करते हैं और होटलों का कचरा सड़क किनारे पड़ी पौलोथीन आदि को खाकर ही पेट पालते हैं या फिर उन्हें कसाइयों के चमचों को बेच दिया जाता है जहाँ से वो कटने के लिए स्लॉटर हाउस तक पहुंचा दी जाती है। लोग गुटखा, तम्बाकू, बीड़ी, सराब में हजारों लुटाते हैं लेकिन गौमाता के प्रश्न पर सब मौन रहते। उनका मौन रहना जायज भी है क्योंकि पशु उनकी आजीविका का सहारा हैं और यदि वे दूध न दें तो पालकर क्या करना। कहाँ से चारा जुटाएंगे उनके लिए? इसके लिए या तो मरने के लिए छोड़ दो या कसाइयों को सौंप दो।
बात उत्तराखंड के किसी और जिले/शहर या फिर उत्तराखंड से हटके किसी और राज्य की करूँ तो उत्तर-प्रदेश में कुछ स्थानों पर मैंने प्रवास किया, दिल्ली में भी मैं रहा और हरियाणा के भी कुछ स्थानों पर मैंने प्रवास किया, फिर राजस्थान में भी थोडा बहुत घूमा हूँ हर जगह मुझे यही स्थिति दिखाई दी। हरियाणा में तो दूध देने वाली गाय भी सडकों पर पौलीथीन खाकर गुजारा करती है और दूध देने मालिक के दरवाजे पर निश्चित समय पर पहुँच जाती है। उससे बाहर महाराष्ट्र में जब मैं निकला तो गांधी जी की कर्मभूमि सेवाग्राम, वर्धा और उसके आस-पास के कुछ गांवों को छोड़कर बाकी हर जगह मैंने गौमाता को निराश्रित और अनाथ ही पाया बदिस्मती से महाराष्ट्र में जर्सी की बहुत सेवा होती है क्योंकि दूध जो बहुत देती है ना।
तो जब तक समाज ही अपना दृष्टिकोण नहीं बदलेगा तब तक गाय तो कटेगी भी और कचरा खाकर मरेगी भी। लेकिन प्रधानमंत्री जी की बात का सबसे बड़ा असर ये हुआ कि अचानक ही सोशल मीडिया पर तथाकथित गौरक्षकों की फौज आ खड़ी हुई और सारे देश के सोशल मीडिया कार्यकर्ता ऐसे तिलमिलाए जैसे कि मोदी जी ने वो बयान उन्हीं को टारगेट करके दिया हो माने कि उन्होंने स्वयं को जैसे उन 80% अपराधियों से जोड़ लिया। अब तो फेसबुक पर, व्हाट्सएप पर हर जगह मोदी विरोध पर पोस्ट, कवितायें डायलोग जैसे छा ही गए। काश कि इन स्वघोषित गौरक्षकों ने जितना पैसा डेटा रिचार्ज करके मोदी जी को गालियाँ देने में खर्च किया उतना पास की किसी गौशाला में दे देते और किसी बेसहारा गाय को वहां पर सौंप देते और उसकी जिम्मेदारी स्वतः ले लेते लेकिन नहीं उससे ज्यादा महत्वपूर्ण था मोदी जी को गालियाँ देकर अपना विरोध प्रदर्शित करना।
मैं इज्जत करता हूँ अपने देश के संविधान की और तथाकथित लोकतंत्र की भी क्योंकि यहाँ पर किसी सर्वोच्च संवैधानिक पद पर बैठे व्यक्ति को गाली देना बहुत ही आसान है बदिस्मत कि जमीन पर कुछ काम करके दिखाया जाय।
मैं निवेदन करता हूँ कि स्वघोषित गौरक्षकों से कि यदि आप किसी दलाल को स्लॉटर हाउस में गाय या कोई भी अन्य पशु ले जाते हुए देखते हैं तो उन्हें रोकिये जरूर लेकिन क़ानून अपने हाथ में मत लीजिये हाँ आप पुलिश प्रशासन की मदद लीजिये जिससे न तो अराजकता फैलेगी और ना ही हमारी तथाकथित विपक्षी पार्टियों को सरकार पर हावी होने का मौक़ा मिलेगा।
मैं इस देश के पंतप्रधान श्री नरेन्द्रमोदी जी से भी निवेदन करता हूँ कि माननीय प्रधानमंत्री जी हमने आपको आप पर भरोसा करके चुना है कि आप तो इस देश को गौहत्या जैसे कुकृत्य से मुक्ति दिलाएंगे फिर आप भी यदि कोई ठोस कार्यवाही नहीं करेंगे तो जाने एक दिन किसी और मंगल पाण्डे को विरोध करते हुए कुर्बानी देनी पड़े और शायद वो मंगल पांडे संत गोपालदास जी बनें इसलिए कृपया गौहत्या पर पूर्ण प्रतिबन्ध लगवाने के प्रस्ताव को चर्चा के लिए आमंत्रित करें।
साथ ही मैं इस देश की आम जनता से भी निवेदन करता हूँ कि कृपया पौलोथीन/ प्लास्टिक पेपर का उपयोग अपने जीवन में कम से कम करें और साथ ही पशुपालकों द्वारा उत्पादित विभिन्न पंचगव्य उत्पादों को अपने दैनिक जीवन में सम्मिलित करें जिससे कि पशुपालकों को उनके उत्पादों के उचित कीमत मिलेगी तो वो अपने पशुओं को न तो कचरा खाने के लिए छोड़ेंगे और ना ही मरने के लिए स्लॉटर हाउस के दल्लों को सौंपेंगे क्योंकि अभी पशुपालकों को पंचगव्य उत्पादों के दाम भी नहीं मिल रहे अरे दाम तो छोड़ो बाजार भी नहीं मिल रहा है।अभीकुछ दिन पूर्व हरियाणा के एक भाई का व्हाट्सएप के किसी ग्रुप में पोस्ट पड़ रहा था कि उसके पासकरीब दो सौ लीटर पंचगव्य उत्पाद पड़ा है लेकिन कोई खरीददार नहीं है और वो भाई लिखता है कि उसकी आर्थिक स्थित बहुत खराब है उसे रुपियों की सख्त जरूरत है अन्यथा वो गउओं का चारा भी नहीं ले पायेगा। आये दिन फेसबुक पर पोस्ट मिलती रहती है कि अमुक गौशाला में आर्थिक स्थिति सही न होने के कारण चारे का अभाव हो गया है और गउएं भूख से मर रही हैं। कृपया मदद करें।
इस विषम परिस्थिति का निपटारा हो तभी हो पायेगा जबकि आप पंचगव्य उत्पादों का उपयोग करना शुरू करेंगे। और आज तो विज्ञान ने भी साबित किया है कि आज गौमाता के पंचगव्य से लगभग सभी बीमारियों का समाधान किया जा सकता है।मैं इससे अधिक लिखने की स्थिति में नहीं हूँ। किन्तु आप लोगों से वही निवेदन करता हूँ कि पंच्गव्य उत्पादों का उपयोग करें और गौ अर्थशास्त्र से लोगों को जमीनी स्तर पर वाकिफ कराएँ सोशल मीडिया पर नहीं।
धन्यवाद
।।जय हिन्द।।वंदेमातरम्।।
आपका लेख आज की देश में गौमाता की हकीकत दर्शाता है। पूरे देश में गौमाता की बहुत ही दयनीय स्थिति है। राजस्थान में जिन जिन जिलों में गौमाता की अकाल मौत हुई है उसका सबसे बड़ा कारण निराश्रित गोवंश का पॉलिथिन व कुपोषण है। डॉक्टरों का कहना है ज्यादातर गोवंश की मौत की वजह पॉलिथीन व कुपोषण है जिसके चलते बीमार होने पर चाह कर भी उसकों बचाया नहीं जा सकता है।