अम्बादत्त तिवारी : 19 जनवरी 1990, कश्मीरी पंडितों का नरसंहार पर किसी बुद्धिजीवी की आंखे न खुली या फिर राजनीतिक स्वार्थ के चलते आँखे बंद रखी गई, पत्रकार भी सोये रहे क्योंकि मरने वाले हिन्दू थे, हाँ वह सब हिन्दू थे।
19 जनवरी 1990 आज ही के दिन कश्मीरी पंडितों का नरसंहार हुआ था लाखों कश्मीरी पंडितों को अपने ही घर से पलायन करना पड़ा था।
उस समय का बुद्धिजीवी इसलिए सो रहा था क्योंकि एक राजनीतिक दल यह सब अपने शासनकाल में ही करवा रहा था और कहीं न कहीं वह बुद्धिजीवी आज के दिन उन्ही के हाथ खेलता नजर आ जा रहा है आज कुछ हत्या के बाद उन्हें इनटोलरेंस नजर आ रही है जब हजारों निर्दोष सिखों को मारा गया तब वह बुद्धिजीवी सोए हुए थे क्योंकि फिर एक राजनीतिक दल से उन्हें संरक्षण मिला हुआ था
19 जनवरी 1990 को उर्दू अखबार आफताब में हिज्बुल मुजाहिदीन ने छपवाया कि सारे पंडित कश्मीर की घाटी छोड़ दें. अखबार अल-सफा ने इसी चीज को दोबारा छापा. चौराहों और मस्जिदों में लाउडस्पीकर लगाकर कहा जाने लगा कि पंडित यहां से चले जाएं, नहीं तो बुरा होगा. इसके बाद लोग लगातार हत्यायें औऱ रेप करने लगे. कहते कि पंडितो, यहां से भाग जाओ, पर अपनी औरतों को यहीं छोड़ जाओ – असि गछि पाकिस्तान, बटव रोअस त बटनेव सान (हमें पाकिस्तान चाहिए. पंडितों के बगैर, पर उनकी औरतों के साथ.) गिरजा टिक्कू का गैंगरेप हुआ. फिर मार दिया गया. ऐसी ही अनेक घटनाएं हुईं. पर उनका रिकॉर्ड नहीं रहा. किस्सों में रह गईं. एक आतंकवादी बिट्टा कराटे ने अकेले 20 लोगों को मारा था. इस बात को वो बड़े घमंड से सुनाया करता. जम्मू कश्मीर लिबरेशन फ्रंट इन सारी घटनाओं में सबसे आगे था. सरकारी आंकड़ों के मुताबिक 60 हजार परिवार कश्मीर छोड़कर भाग गये. उन्हें आस-पास के राज्यों में जगह मिली. जान बचाने की. कहीं कोई इंतजाम नहीं था. 19 जनवरी 1990 को सबसे ज्यादा लोगों ने कश्मीर छोड़ा था. लगभग 4 लाख लोग विस्थापित हुए थे.
सारे कश्मीरी मुस्लिम सडको पर उतर आये थे उन्होंने कश्मीरी पंडितो के घरो को जला दिया कश्मीर पंडित महिलाओ का बलात्कार करके, फिर उनकी हत्या करके उनके नग्न शरीर को पेड़ पर लटका दिया गया कुछ महिलाओ को जिन्दा जला दिया गया और बाकियों को लोहे के गरम सलाखों से मार दिया गया।
बच्चो को स्टील के तार से गला घोटकर मार दिया गया कश्मीरी महिलाये ऊंचे मकानों की छतो से कूद कूद कर जान देने लगी मंदिरो को तोड़ा गया और देखते ही देखते कश्मीर घाटी हिन्दू विहीन हो गई और कश्मीरी पंडित अपने ही देश में विस्थापित होकर दरदर की ठोकर खाने को मजबूर हो गए।
जो अब भी नहीं समझे वो सेक्युलर समझ ले की लाहौर से लीगी हिन्दू भी भाग कर दिल्ली आया था कश्मीर से कश्मीरी पंडित भी जान बचा कर आया था और आज एक कांग्रेसी हिन्दू की औकात नहीं है जो जामा मस्जिद के पास किराये पर भी घर ले ले, सेक्युलर नाम की चिड़िया सिर्फ डायनोसोर के टाइम थी।