श्वेता चक्रवर्ती : भारतीय वीरों की वीर गाथाओं से इतिहास और ग्रन्थ भरे पड़े हैं, फिर हज़ारो वर्षों तक देश ग़ुलाम क्यों रहा? हिंदुओं का कत्लेआम क्यों हुआ? इनके घर जलाए गए और ये विस्थापित क्यों हुए? कृपया उत्तर दें..
उत्तर – श्रीमद भगवत गीता और रामायण जैसे वीर रस से भरे धर्म ग्रंथो का स्वाध्याय करना पूर्वजों, कुलगुरुओ, और ब्राह्मण पुजारियों ने लोगों को नहीं सिखाया बल्कि इनको टीका चन्दन करके पूजना सिखाया। स्वाध्याय के अभाव में वीर रस, पुरुषार्थ और कर्मयोग भूलते चले गए। पण्डे-पुजारियों और कुछ बाबाओं ने नई भक्ति धर्म व्यापार के नाम पर लोगों को सिखाई जो कायरता रक्त में घोलती थी। भगवान पर मनोकामना का बोझ लादना सिखाया। स्त्रियों से गायत्री मंत्र का अधिकार छीन लिया और अनपढ़ रख उनसे स्वाध्याय का अधिकार छीन के उन्हें धार्मिक भिखारी वाली भक्ति सिखाई। प्रार्थना जीवंत न सिखा के मृत सिखाई गयीं।
पण्डे पुजारियों और बाबाओं ने गीता का आधा श्लोक पढ़ाया –
*अहिंसा परमो धर्मः*” (यह पूर्ण नहीं है)
जबकि पूर्ण श्लोक इस तरह से है।
*“अहिंसा परमो धर्मः धर्म हिंसा तथैव च: l”*
(अर्थात् यदि अहिंसा मनुष्य का परम धर्म है और धर्म की रक्षा के लिए हिंसा करना उस से भी श्रेष्ठ है)
क्या हमारे कोइ भी भगवान् बिना शस्त्र के हैं? नहीं ना… स्व रक्षा हेतु, परिवार रक्षा हेतु, ग्राम रक्षा हेतु, देश रक्षा हेतु हथियार न उठाना और उसके लिए पूर्व तैयार न होना अधर्म है, कायरता है।
पत्नी सीता के अपहरण पर श्रीराम कायरों की भांति मात्र दैवी सहायता हेतु हाथ नहीं फैलाये बल्कि शक्ति-शिव की आराधना कर उनसे आशीर्वाद लेकर रावण से युद्ध कर एक लाख बेटे और सवा लाख नातियों सहित वध कर दिया। सम्मान सहित सीता को लौटा लाये।
द्रौपदी के चीर पर हाथ डालने वाले दुर्योधन का समूल नाश पाण्डवो ने श्रीकृष्ण के साथ और आशीर्वाद से किया।
हमारे ग्रन्थ तो भूले भटको को राह दिखाने वाले और कर्मयोग समझा के पुरुषार्थ जगाने वाले हैं। अब जो स्वाध्याय करेगा ही नहीं तो उसमें पुरुषार्थ जगेगा कैसे?
कुछ बाबा मलूकदास जी जैसों ने तो हिन्दू समाज को और कायर बना दिया और गीता के कर्मयोग के सिद्धांत के विरुद्ध कहा-
*अजगर करे न चाकरी, पंछी करे न काम।*
*दास मलूका कह गए, सबके दाता राम।।*
अब मलूकदास और उनके चेलो ने न गीता पढ़ी और न समझी।
कुछ उल्टी खोपड़ी के तार्किक जो स्वाध्यायी न थे और रिसर्चर न थे, यज्ञ को धुआँ फैलाने वाला समझा औऱ घी तथा अन्य सामग्रियों को आहूत करना बेकार समझा। मन्त्र विज्ञान से अनभिज्ञ लोगो ने तो गायत्री मंत्र की अनिवार्यता ही लोगों के जीवन से समाप्त कर दी। एक वैज्ञानिक, एक समग्र चिकित्सा पद्धति और एक कला गायत्री मंत्र और यज्ञ को जीवन से ही गायब कर दिया, इंसान में देवत्व, आत्मपरिष्कार और आत्मविश्वास भरे पौरुष को समाप्त कर दिया। कायर भक्ति गढ़ दी, जिससे धर्म व्यापार चल सके। भगवान भरोसे जीना सीखा दिया, जबकि रामायण के सुंदरकांड में तुलसीदास जी लक्ष्मण जी के कथन को कहते हैं – *दैव दैव आलसी पुकारा* अर्थात केवल कायर और आलसी ही भगवान भरोसे जीवन जीता है।
कर्मयोगी भक्ति से शक्ति लेकर स्वयं के पुरुषार्थ से स्वयं का, स्वयं के परिवार का, स्वयं के राष्ट्र का रक्षण करता है। समाज का उद्धारक बनता है। गीता का यही संदेश है।
कर्मयोग और पुरुषार्थ के अभाव में भगवान भरोसे जीने वाली भक्ति के कारण हमारे राजा महाराजा देश की सुरक्षा हेतु आधुनिक हथियार और युद्ध टेक्नोलॉजी को अपग्रेड नहीं किया, स्त्री-पुरुषों को नई युद्ध नीति न सिखाई, एक हाथ मे माला(आत्मकल्याण) और दूसरे हाथ लोककल्याण हेतु(भाला-हथियार) उठाना न सिखाया। जिसका दुष्परिणाम देश को वर्षो की गुलामी के रूप में झेलना पड़ा। भारत यदि अभी भी अपने सैनिकों को नई युद्ध नीति और हथियार न देगा तो युद्ध के वक्त देश हारेगा।
आपको क्या लगता है कि महान पोरस युद्ध मे महान सिकन्दर से क्यों हारा? बल-बुद्धि-शक्ति-पुरुषार्थ में दोनों समान थे, केवल युद्ध की टेक्नोलॉजी में सिकन्दर पोरस से ज्यादा बेहतर था। पोरस नहीं हारा, उसकी पुरानी युद्ध नीति और हाथी हारे। पुरुषार्थी भारतीय राजपूत बाबर से नहीं हारे, बाबर नई बंदूकों और बारूद लेकर लड़ने नई युद्ध नीति से लड़ने आये। इसलिए भारतीय राजपूत नहीं हारे बल्कि उनकी युद्ध नीति और हथियार हारे। अंग्रेजों के पास बारूद, तोप, लेटेस्ट हथियार और नई युद्ध नीति जीती। भारतीय अंग्रेजों से नहीं हारे, हर वक्त उनकी पुराने हथियार और युद्ध नीति हारी। राजपूतो ने स्त्रियों को जौहर सिखाया उसकी जगह यदि चार दुश्मनों को मारकर मरना लक्ष्मीबाई की तरह सिखाया गया होता तो कमाल न होता क्या? स्त्री को एक हाथ से घर सम्हालना और दूसरे हाथ से स्वयं का रक्षण सिखाया होता तो कमाल न होता?
भारतीय हमेशा एक और बात से हारते है जब उनके अपने जयचन्द जैसी गद्दारी करते है, दुश्मनों से मिलकर अपनो को हराने हेतु उनका सीक्रेट शेयर कर देते हैं। देश के नेता जब स्वार्थवश राजनीतिक संकल्प से वोट के लिए देशहित कठोर निर्णय नहीं लेते तो देश को गद्दार जयचन्द की तरह नुकसान पहुंचाते हैं।
चाणक्य कहते थे, भारतभूमि की रक्षा हेतु एकजुटता अनिवार्य है, बच्चो के अंदर बचपन से राष्ट्रीय चरित्र गढ़ना पड़ेगा, जिससे गद्दार जयचन्द जैसे लोग न पनपें, बल्कि सुभाषचंद्र बोष, भगतसिंह, बिस्मिल और रानी लक्ष्मीबाई जैसे बच्चे बने।
कश्मीरी पंडितों ने यदि रामायण और गीता का नित्य स्वाध्याय किया होता, स्त्री-पुरुष दोनों ने एक हाथ मे माला(आत्मकल्याण-जप-तप-ध्यान-स्वाध्याय) और एक हाथ में भाला(स्त्री-बच्चो-परिवार के रक्षण हेतु हथियार उठाना) सिखाया होता तो आज उन्हें कश्मीर से पलायन करना न पड़ता। कश्मीरी पंडित एकजुट होकर बहादुरी से या तो शहीद होते या सम्मान से जी रहे होते। देवता और सरकार को परिवार के कत्लेआम/रेप के दौरान पुकारना और उनके भरोसे बैठना कायरता है। अर्जुन को अपना युद्ध स्वयं लड़ना पड़ा, कृष्ण साथ थे लेकिन उन्होंने हथियार नहीं उठाया था। तो फिर आप ये उम्मीद क्यों करते हो कि भगवान आपके लिए हथियार उठाएगा। *भगवान उसकी मदद करता है, जो अपनी मदद स्वयं करता है।स्व रक्षा हेतु हथियार उठाने को भारतीय संविधान भी सही ठहराता है।