डॉ विवेक आर्य : मीडिया में गुजरात के ऊना की घटना पर अपने आपको बुद्धिजीवी कहने वाली जमात हिन्दुओं को जातिवादी, अत्याचारी, मनुवादी, ब्राह्मणवादी न जाने क्या क्या कह चिल्लाई। मगर मेवात में हुई घटना को लेकर ऐसा सन्नाटा छाया हुआ है कि कोई अपना मुंह तक खोलने को तैयार नहीं हैं। मेवात में दलितों का जबरन धर्म परिवर्तन का मामला सामने आया हैं। ताजा मामला नगीना खंड के गांव मोहलाका का है। यहां एक दलित परिवार ने मुस्लिम धर्म परिवर्तन नहीं अपनाया तो उन पर गांव के ही मुस्लिम दबंगों ने जानलेवा हमला बोल दिया। सोमवार सुबह करीब 6 बजे इस्लाम, तौफीक, मोसिम, अतरु, असमीना ने उसके परिवार पर लाठी डंडों व सरिया से जानलेवा हमला कर दिया। उन्हें जातिसूचक शब्दों से संबोधित कर अपमानित भी किया। हमले में किशन को गंभीर चोटें आईं।
यह मामला पहला नहीं है। मेवात के इलाके में पहले भी जबरन धर्म परिवर्तन के मामले सामने आए हैं। अक्टूबर 2017 में मेवात मॉडल स्कूल में दो टीचर्स पर छात्रों पर जबरन नमाज पढ़ने के लिए दबाव डालने का आरोप लगा था। यह मामला काफी समय पर सुर्खियों में रहा। बाद में डीसी ने इनका तबादला कर दिया था। इससे पहले कुलहेड़ा, भाकड़ौजी व पाडला शाहपुर में भी धर्म परिवर्तन के मामले सामने आ चुके हैं। इन अधिकतर मामलों में गरीब दलित परिवारों का धर्मांतरण करवाया गया था।
कमाल जब हुआ जब दलित-मुस्लिम एकता झुनझुना बजाने वाले कभी ऐसे मामलों में अपना मुंह तक नहीं खोला। किसी चैनल पर रविश या राजदीप सरदेसाई ने प्राइम टाइम में इस घटना को नहीं दिखाया। कोई अरुंधति या वृंदा करात उस परिवार से मिलने नहीं गई। दलित नेता मायावती ने कोई आधिकारिक बयान देकर इस घटना की निंदा नहीं की। किसी JNU के प्रोफेसर ने जंतर-मंतर पर इसके विरोध में धरना नहीं दिया। जिग्नेश मेवानी गुजरात से चल कर हाथ में संविधान लेकर उसके अनुसार कार्यवाही करने के लिए इनसे मिलने नहीं आया। किसी साहित्यकार ने अपना पुरस्कार नहीं लौटाया। कोई सेक्युलर नेता ने संसद में इस मामलें को नहीं उठाया।
इतना सन्नाटा क्यों है भाई?
क्यूंकि इन सबका उद्देश्य केवल वोट लेकर सत्ता हासिल करना हैं। उनका उद्देश्य दलितों का उद्धार नहीं हैं। मैं मानता हूँ कि जातिवाद हिन्दू समाज की एक बड़ी समस्या है। मगर इस समस्या का समाधान स्वयं हिन्दू समाज को करना होगा। पिछले कुछ दशकों में जातिवाद की समस्या में बहुत परिवर्तन आया हैं। मगर हमारे देश के इन नेताओं ने इस समस्या को गंभीर ही किया हैं। वो भी केवल अपने निजी स्वार्थ के लिए। आप सोशल मीडिया में देखिये। अधिकतर दलितों के नाम से प्रोफाइल बनाये हुए लोग सारा दिन हिन्दू धर्म से सम्बंधित प्रतीकों और मान्यताओं पर आक्षेप करना अपना कर्त्तव्य समझने लगे हैं। जबकि पिछले 1200 वर्षों में इस्लामिक आक्रांताओं द्वारा हम हिन्दुओं पर हुए किये गए अत्याचारों पर कभी कोई टिका टिप्पणी कभी करता। मैंने खुद देखा है अनेक मुस्लिम युवा डॉ अम्बेडकर की फोटो लगाकर अपने आपको दलित दिखाकर सोशल मीडिया में सारा दिन दलित अधिकारों और विद्रोह की बात करते हैं। जबकि उनका उद्देश्य केवल वैमनस्य फैलाना होता हैं। दलित समाज के बहुत सारे निष्पक्ष युवा इस सुनियोजित षड़यंत्र का शिकार होकर हिन्दुओं के प्रति वैर भाव भी रखने लगते हैं।
आज के परिपेक्ष में हम इस निष्कर्ष पर पहुंचते है कि
१. इस्लाम का इतिहास उठाकर देखिये। उसने सदा गैर मुसलमानों पर अत्याचार ही किया हैं।
२. कुछ नेता मुसलमानों और दलितों को केवल वोट बैंक के रूप में देखते हैं। उनसे सावधान रहे।
३. जातिवाद हिन्दू समाज की निजी समस्या है। जिसका निराकरण स्वयं हिन्दू समाज को करना होगा। कोई बाहरी केवल अपना लाभ उठाएगा।
४. दलित युवाओं को वेद, यज्ञ, श्री राम और श्री कृष्ण आदि के प्रति आक्रोशित कर केवल उन्हें भ्रमित किया जा रहा हैं। जिसे हिन्दू समाज की एकता भंग हो।
५. यह षड़यंत्र अंतरराष्ट्रीय स्तर पर चल रहा है। जिसमें अनेक छदम बुद्धिजीवी शामिल हैं। जब भी दलितों पर मुस्लमान अत्याचार करते हैं। तब यह जमात चुप रहती हैं। जबकि कोई सवर्ण हिन्दू दलितों पर अत्याचार करें तो यह खूब शोर मचाती हैं।
६. हमारा हित आपस में लड़ने में नहीं अपितु जातिवाद को समाप्त कर एकता स्थापित करने में हैं।
७. संत कबीर, संत रविदास, महर्षि वाल्मीकि, गुरु नानक, स्वामी दयानन्द आदि समाज सुधारकों ने जातिवाद को समाप्त करने के लिए सामाजिक संघर्ष किया। उन्होंने अन्धविश्वास का विरोध किया। धर्म के मूल स्वरुप का समर्थन किया। आज उसी की आवश्यकता है।
अपनी बुद्धि लगाये। गम्भीरता पूर्वक विचार करे।