विपुल, हरिद्वार : क्या हम यह जान पा रहे हैं कि सोशल मीडिया पर चल रही अधिकतर पोस्ट विदेशों में बैठकर तैयार हो रही हैं और देश को बर्बाद करने की मंशा पाल रखी है भारत विरोधी शक्तियों ने ? और वह लोग फैला रहे हैं जो अपना राजनितिक स्वार्थ की पूर्ती करना चाहते हैं
आज हम आपस में ही लड़ने कटने को तैयार बैठे हैं, बिना यह समझे कि भारत की बर्बादी की चाह रखने वालों ने अभी से 2019 की पटकथा लिखनी शुरू कर दी है, जिसका रिमोट कंट्रोल देशद्रोहियों के हाथो में है।
यह भी सत्य है कि निशाने पर न ब्राह्मण है, न मराठा है, न राजपूत है, न जाट है, न माली है, न गुर्जर है, न दलित है, न आदिवासी है, न पिछड़े हैं, जगह और समय के हिसाब से जातियां बदलेंगी, क्योंकि…निशाने पर भारत है। क्या हम जानते हैं कि देशभर में कुल रोजगार का केवल 3% ही आरक्षण योग्य सरकारी नौकरियां हैं ? फिर क्यों हम आरक्षण आरक्षण की पोस्ट को शेयर करते हैं ?
अपने स्वार्थ में कुछ सत्तालोभी देश तोड़कर भी सत्ता हासिल करने को बेताब हैं। पूर्व में भी देश तोड़कर ही सत्ता हासिल की थी। सिख समाज के मेरे एक पितातुल्य बड़े भाई ने बताया कि एक अफवाह समाज में चल रही है कि गुरुद्वारों पर GST लगा दिया गया है। इसके मायने समझने की कोशिश करें मित्रो। एक बलिदानी कौम को जानबूझकर भड़काने की कोशिश हो रही है।
कोई चर्चा नहीं कर रहा है कि “एक बड़ा दरख्त गिरता है तो धरती हिलती ही है” जैसी बातों को करने वालों ने पूरे पंजाब को लाशों के ढेर में बदल दिया था। एक फिल्म के नाम पर पूरा राजपूत समाज उद्वेलित था क्योकिं मीडिया का एक वर्ग उन्हें विलन बनाकर प्रस्तुत कर रहा एक फिल्म के नाम पर पूरा राजपूत समाज उद्वेलित था क्योकिं मीडिया का एक वर्ग उन्हें विलन बनाकर प्रस्तुत कर रहा था।
वैश्य समाज को कहा जा रहा है कि आपके व्यापार को तबाह कर दिया, ब्राह्मण को कहा जा रहा है कि आपके मंदिरों को सरकार अपने चंगुल में ले रही है और त्यागी, जाट, गुर्जर, यादव को कहा जा रहा है कि बनिया और ब्राह्मण को बढावा देकर आपकी खेती को लूटा जा रहा है। बर्बाद कर देगा यह तुम्हें। क्या हुआ अचानक यह भाई ?
हम गरीब देश हैं साथियो। कंगाली में रोष स्वाभाविक है, ऐसा हम परिवार में भी देखते हैं। दिनरात मेहनत करने वाले माता पिता की कमियां गिनाने पर कभी कभी मन मानने लगता है, यह मानव स्वभाव है।उस रोष को किसी भी दिशा में मोड़ा जा सकता है, ऐसा शत्रु पड़ौसी का लक्ष्य रहता है।
हार्दिक पटेल, अल्पेश ठाकुर और जिग्नेश मेवानी जैसे विपरीत ध्रुव दो वर्ष तक कुछ ऐसी माॅग करते रहे कि सरकार की गले की फांस बन गई थी। बात ही एक दूसरे के इतनी विरोधी थीं कि एक मानी जाती तो दूसरा नाराज और दूसरी मानी जाती तो तीसरा नाराज। चुनाव आते हैं तो तीनों ही एक दूसरे के धुर विरोधी एक साथ एक राजनीतिक दल के साथ हो जाते हैं।
इसके निहितार्थ समझो भाईयो।
सत्ता के लालच में किसी भी हद तक गिरा जायेगा।
वर्षों की लूट का पैसा जो कि विदेशों में जमा है, उस हजारों करोड़ के खर्चे से एजेंसियों को हायर किया जा रहा है, जिनका काम समाज में नफरत फैलाकर देश को बारूद के ढेर पर बैठाना है। लाखों लोग समाज में घुल-मिल कर काम कर रहे हो सकते हैं उनके।
हम सबको मिलकर इसका सामना करना है भाईयो। हम पहले भी भुगत चुके हैं।
एक बात और याद रखें। सनातन सभ्यता में कार्य विभाजन तो था परन्तु छुआ-छूत या शोषण नहीं था। विधर्मी सत्ता के आगे जिसने घुटने नहीं टेके और उनके बड़े बल के आगे पराजित हुए, उनको दंडस्वरूप गुलाम बनाकर उनसे मैला उठवाने जैसे गंदे काम करवाये गये और गैरमानवीय बर्ताव किया गया।कालांतर में उन्हें नीची जाति का माना जाने लगा और लोग उनसे बचने लगे और छुआ-छूत जैसी कुप्रथा ने जन्म लिया। वास्तव में यह लोग महान देशभक्त व सच्चे थे।
वंचित को भड़काना आसान है। आज भी उनका एक बड़ा वर्ग नारकीय जीवन जीने को मजबूर है। बच्चों को पढ़ने की व्यवस्था नहीं, दाने दाने को मोहताज।
लगा लो उन्हें गले ! भाई ही हैं हमारे ! मत जाने दो उन्हें अपने से दूर। धीरे धीरे व्यवस्थाओं को भी सुधारने की कोशिश करेंगे।
आज से और अभी से प्रण कर लें कि आपस में वैमनस्य फैलाने वाली कोई पोस्ट न तो फॉरवर्ड करेंगे और न ही शेयर।
जयहिन्द ।।
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