जबसे यह खबर आयी है की बलात्कार नहीं हुआ था तब से कुछ एक लोगों का खाना नहीं पच रहा ! इनमें कई तथाकथित साहित्यकार हैं ! इन सब के द्वारा आंसू में भिगो भिगो कर ऐसी कविता कहानी और पोस्ट लिखी जा रही है की मानो इनकी भावना के सैलाब में दुनिया के सारे बलात्कारी बह जाएंगे !
इसे किस तरह की बौद्धिकता कहेंगे? जिसमे इन लोगों को एक समाचार पत्र की यह रिपोर्ट स्वीकार्य नहीं कि बलात्कार नहीं हुआ , लेकिन दूसरे समाचार पत्र का पहले छपा यह स्वीकार्य है कि बलात्कार हुआ था !
जब दोनों ख़बरों का आधार कोई समाचार पत्र ही है तो फिर एक पर अविश्वास और दुसरे पर विश्वास !!!!
यह दोगलापन हैरान करता है ! मगर यही इनका चरित्र है ! असल में इन्हे उस मासूम से कोई मतलब नहीं जिसकी जान जा चुकी बल्कि उनके लिए वो अमानवीय वीभत्स कृत्य एक मौका है अपनी साहित्यगिरी परोसने का !
सवाल उठता है कि आखिरकार एक विशेष निष्कर्ष के साथ ये लोग क्यों जजमेंटल हो रहे हैं ? असल में ये लोग जजमेंटल नहीं बल्कि सेंटीमेंटल होकर अपनी लाइक और शेयर बटोर रहे हैं !क्योंकि इस तरह की किसी भी पोस्ट में कहीं भी यह नहीं दिखाई देता कि आखिर समाज और सरकार को क्या और कैसे करना होगा जिससे भविष्य में किसी भी मासूम बालिका को किसी भी अमानवीयता से ना गुजरना पड़े !
संवेदनशीलता तो तब कहलाती कि शब्द का शोर कम मचाया जाता भाव का अर्थ अधिक प्रभावित करते !
साहित्य का दायित्व निर्वाहन तब माना जाता जब दोषारोपण कम होता बल्कि दोषनिवारण के मार्ग सुझाये जाते !
अंत में इन लोगों से एक ही सवाल पूछना चाहिए की इन्हे न्यायाधीश का पद कब और किसने दे दिया ?
क्या वे चाहेंगे की किसी आरोपित को बिना न्यायिक प्रक्रिया के फांसी चढ़ा दिया जाए ?
और अगर वो भविष्य में बेक़सूर साबित होता है तो उसे जीते जी मारने के अपराधी को क्या सजा दी जानी चाहिए ?
हर जिम्मेवार नागरिक यह चाहता है की उस मासूम को न्याय मिले !
किसी भी समाज का कोई भी मानव किसी भी अमानवता का कभी समर्थन नहीं कर सकता, साथ ही उसे अपनी सभ्यता को प्रमाणित करने के लिए उपरोक्त सवालों के जवाब भी अपने आप को देते रहने होंगे !
जब एक बौद्धिक अपने शब्दों में संतुलित नहीं होता तो वो जाने अनजाने जन भावनाओं का बलात्कार कर रहा होता है , जिससे पीड़ित समाज की चीख सदियों तक जन जन को प्रताड़ित करती रहती है !
मनोज सिंह ( प्रसिद्ध साहित्यकार )