लालकिले की प्राचीर से प्रधानमंत्री द्वारा बलूचिस्तान, पाक अधिकृत कश्मीर औैर गिलगिट के लोगों पर अत्याचार का मुद्दा उठाए जाने का वहां के लोगों और तमाम नेताओं ने समर्थन किया है।
दशकों से पाकिस्तानी सेना का अत्याचार झेल रहे वहां के लोग अब मुखर होकर आज़ादी की मांग करने लगे हैं।
पाकिस्तान के सबसे बड़े प्रांत बलूचिस्तान के बड़े हिस्से कलात ने ख़ुद को 11 अगस्त 1947 को स्वाधीन भी घोषित कर लिया था लेकिन पाकिस्तानी सेना ने जोर जबर्दस्ती से उस विद्रोह को दबा दिया और आज तक वहां के लोग आतंक के साए में जीने को मजबूर हैं।
साल 2004 में बलूच आंदोलन को बुलंदियों पर ले जाने वाले नवाब अकबर बुग्ती की हत्या पाकिस्तानी सेना के एक अभियान के दौरान कर दी गई थी। विभिन्न एजेंसियों के आंकड़ों की बात की जाए साल 2000 तक 20,000 के करीब बलूच लोगों का या तो अपहरण कर लिया गया या सेना द्वारा मार दिया गया। इसमें 5000 बच्चे भी शामिल हैं।
बलूचिस्तान में मानवाधिकारों के उल्लंघन को लेकर वहां की सर्वोच्च अदालत भी कई बार गंभीर टिप्पणी कर चुकी है। साल 2002 से 2005 के बीच करीब 4000 लोगों को हिरासत में लिया गया जिसमें से मात्र 200 लोगों को ही अदालत में पेश किया गया बाकी बचे लोगों का कोई अता-पता नहीं लग सका।
लापता हुए लोगों के मामले में गंभीर रुख अख्तियार करते हुए वहां की सर्वोच्च अदालत ने पाकिस्तान के सैन्य शासक परवेज़ मुशर्रफ के खिलाफ वांरट भी जारी किया था। खबरों की माने तो पाकिस्तान की खुफिया एजेंसी आईएसआई बलूचिस्तान में मानवाधिकारों के उल्लंघन को लगातार बढ़ावा दे रही है। जिसके कारण स्थानीय लोग समय-समय पर आक्रोशित हो सड़कों पर उतर आते हैं।
वहां आए दिन जिस प्रकार के आंदोलन होते हैं वे खुद ही बयान देते हैं कि किस प्रकार से लोग वहां दमन का शिकार हो रहे हैं। बलूचिस्तान की ही तरह गिलगित-बल्तिस्तान में भी पाकिस्तान के खिलाफ आए दिन धरना प्रदर्शन होते रहते हैं।