राहुल मिश्रा : अयोध्या में श्रीराम मंदिर निर्माण में हो रही देरी को लेकर हिन्दुओं के आक्रोश को मोदी सरकार ने भांप लिया है. जिस तरह अयोध्या श्रीराम मंदिर मामले में सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई लगातार टलती जा रही है, उसे लेकर हिन्दुओं में आक्रोश बढ़ता ही जा रहा है. हिन्दुओं के इसी आक्रोश को देखते हुए केंद्र की मोदी सरकार ने श्रीराम मंदिर पर बड़ा कदम उठाया है. मोदी सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की है जिसमें विवादित ज़मीन के अलावा अधिग्रहित की गई अतिरिक्त ज़मीन राम जन्मभूमि न्यास को लौटाने की अपील की गई है.
आपको बता दें कि 1993 में केंद्र सरकार ने अयोध्या में करीब 67 एकड़ ज़मीन का अधिग्रहण किया था. इसमें से 2.77 एकड़ की जमीन पर इलाहाबाद हाईकोर्ट ने फैसला सुनाया था. जिस भूमि पर विवाद है वह जमीन 0.313 एकड़ ही है. 1993 में सुप्रीम कोर्ट ने इस जमीन पर स्टे लगाया था, और किसी भी तरह की एक्टविटी करने से इनकार किया था. सरकार का कहना है कि इस जमीन को छोड़कर बाकी जमीन भारत सरकार को सौंप दी जाए. मोदी सरकार का कहना है कि जिस जमीन पर विवाद नहीं है उसे वापस सौंपा जाए.
गौरतलब है कि 30 सितंबर 2010 को इलाहाबाद हाई कोर्ट की लखनऊ खंडपीठ ने अयोध्या विवाद को लेकर फैसला सुनाया था. जस्टिस सुधीर अग्रवाल, जस्टिस एस यू खान और जस्टिस डी वी शर्मा की बेंच ने अयोध्या में 2.77 एकड़ की विवादित जमीन को 3 हिस्सों में बांट दिया था.जिस जमीन पर राम लला विराजमान हैं उसे हिंदू महासभा, दूसरे हिस्से को निर्मोही अखाड़े और तीसरे हिस्से को सुन्नी वक्फ बोर्ड को दे दिया गया था. केंद्र ने कहा है कि अयोध्या जमीन अधिग्रहण कानून 1993 के खिलाफ मुस्लिम पक्ष ने सुप्रीम कोर्ट में अपील की थी, जिसमें उन्होंने सिर्फ 0.313 एकड़ जमीन पर ही अपना हक जताया था, बाकि जमीन पर मुस्लिम पक्ष ने कभी भी दावा नहीं किया है.
अर्जी में कहा गया है कि इस्माइल फारुकी नाम के केस के फैसले में सुप्रीमकोर्ट ने कहा था कि सरकार सिविल सूट पर इलाहाबाद हाईकोर्ट के फैसले के बाद विवादित भूमि के आसपास की 67 एकड़ जमीन अधिग्रहित करने पर विचार कर सकती है. केंद्र का कहना है कि इलाहाबाद हाईकोर्ट ने फैसला दिया है और इसके खिलाफ अपील सुप्रीम कोर्ट के सामने लंबित है, गैर-उद्देश्यपूर्ण उद्देश्य को केंद्र द्वारा अतिरिक्त भूमि को अपने नियंत्रण में रखा जाएगा और मूल मालिकों को अतिरिक्त जमीन वापस करने के लिए बेहतर होगा. बता दें कि 1993 में केंद्र सरकार ने जिस 67 एकड़ जमीन का अधिग्रहण किया था, उसमें विवादित ढांचा सिर्फ 0.313 एकड़ जमीन पर है. हाईकोर्ट ने 2.77 एकड़ जमीन को लेकर फैसला दिया. केंद्र सरकार ने यही बाकी बची पूरी जमीन वापस मांगी है. विवादित जमीन के अलावा बाकी जमीन हिंदू पक्ष की है और जो जमीन विवादित नहीं है उस पर निर्माण का रास्ता साफ हो सकता है.