देहरादून : शायद ही कोई भूला हो। मैं भी कई दिन अन्ना की राजनैतिक पिपासा का शिकार हुआ था और दिल्ली तक जा पहुंचा था। परिणाम पूरा भारत जानता है। जन लोकपाल तो नही मिला पर केजरीवाल की राजनीति चमक गयी। सरलता और निर्धनता का ढोंग करने वाले अन्ना से कोई पूछे कि रामलीला मैदान का 50000 रुपये का किराया रोज़ कौन देता है?
अन्अना जी आपको 7 साल बाद कैसे पुनः लोकपाल याद आया?
कहीं कोई नया केजरीवाल तो जन्म नही लेने वाला?
कहीं ये पूरी राजनैतिक नौटँकी 2019 के लिए तो नही?
फिलहाल इन प्रश्नों के उत्तर अन्ना नही देंगे परंतु समय अवश्य देगा। वैसे अन्ना के फ्लॉप आंदोलन से लोग कन्नी काट चुके है, किराए की भीड़ से अन्ना कब तक काम चलाएंगे यह अवश्य सोचनीय है।
दो टूक कहूँ तो केजरीवाल के राजनैतिक जन्म के साथ ही ‘अन्नागिरी’ की मृत्यु हो गयी थी। अन्ना पूर्ण रूप से अपनी विश्वसनीयता खो चुके है।
बहुत सही कहा अमित जी , जरा यह भी बताओ की खाने का पैसा और टेंट का खरचा कितना हे सूना हे कुछ आपिये और खान्ग्रेस भी बहुत अनुदान दे रही है