महान भारतीय आचार्य महर्षि भारद्वाज ने एक ग्रंथ रचा, जिसका नाम है, “विमानिका” या “विमानिका शास्त्र” 1875 ईसवीँ में दक्षिण भारत के एक मन्दिर में विमानिका शास्त्र ग्रंथ की एक प्रति मिली थी। इस ग्रन्थ को ईसा से 400 वर्ष पूर्व का बताया जाता है, इस ग्रंथ का अनुवाद अंग्रेज़ी भाषा में हो चुका है। इसी ग्रंथ में पूर्व के 97 अन्य विमानाचार्यों का वर्णन है तथा 20 ऐसी कृतियों का वर्णन है जो विमानों के आकार प्रकार के बारे में विस्तृत जानकारी देते हैं। खेद का विषय है कि इन में से कई अमूल्य कृतियां अब लुप्त हो चुकी हैं।
इस महान ग्रंथ मेँ विभिन्न प्रकार के विमान, हवाई जहाज एवं उड़न-खटोले बनाने की विधियाँ दी गई हैँ, तथा विमान और उसके कलपुर्जे तथा ईंधन के प्रयोग तथा निर्माण की विधियोँ का भी सचित्र वर्णन किया गया है, उन्होँने अपने विमानोँ मेँ ईंधन या नोदक अथवा प्रणोदन (प्रोपेलेँट) के रूप मेँ पारे (मर्करी Hg) का प्रयोग किया।
साथ ही 7 प्रकार के इंजनों का वर्णन किया गया है, तथा उनका किस विशिष्ट उद्देश्य के लिये प्रयोग करना चाहिये तथा कितनी ऊंचाई पर उसका प्रयोग सफल और उत्तम होगा ये भी वर्णित है।
ग्रंथ का सारांश यह है कि इसमेँ प्रत्येक विषय पर तकनीकी और प्रयोगात्मक जानकारी उपलब्ध है। विमान आधुनिक हेलीकॉप्टरों की तरह सीधे ऊंची उडान भरने तथा उतरने के लिये, आगे-पीछे तथा तिरछा चलने में भी सक्षम बताये गये हैं।
विमानों के प्रकार:-
(1) शकत्युदगम विमान -“विद्युत से चलने वाला विमान”
(2) धूम्र विमान – “धुँआ, वाष्प आदि से चलने वाला विमान”
(3) अशुवाह विमान – “सूर्य किरणों से चलने वाला विमान”,
(4) शिखोदभग विमान – “पारे से चलने वाला विमान”,
(5) तारामुख विमान -“चुम्बकीय शक्ति से चलने वाला विमान”,
(6) मरूत्सख विमान – “गैस इत्यादि से चलने वाला विमान”
(7) भूतवाहक विमान – “जल,अग्नि तथा वायु से चलने वाला विमान”
यन्त्र सर्वस्वः ग्रंथ महर्षि भारद्वाज रचित है। इसके ४० भाग हैं जिनमें से एक भाग मेँ ‘विमानिका प्रकरण’ के आठ अध्याय, लगभग १०० विषय और ५०० सूत्र हैं जिन में विमान विज्ञान का उल्लेख है। इस ग्रन्थ में ऋषि भारद्वाज ने विमानों को तीन श्रैँणियों में विभाजित किया हैः-
(1) अन्तर्देशीय – जो एक स्थान से दूसरे स्थान पर जाते हैं।
(2) अन्तर्राष्ट्रीय – जो एक देश से दूसरे देश को जाते हैँ।
(3) अन्तर्राक्षीय – जो एक ग्रह से दूसरे ग्रह तक जाते हैँ।
इनमें सें अति-उल्लेखनीय सैनिक विमान थे जिनकी विशेषतायें विस्तार पूर्वक लिखी गयी हैं और वह अति-आधुनिक साईंस फिक्शन लेखक को भी आश्चर्य चकित कर सकती हैं।
सैनिक विमानों की विशेषतायें इस प्रकार की हैं-
1- पूर्णत्या अटूट.
2- अग्नि से पूर्णतयाः सुरक्षित.
3- आवश्यक्ता पड़ने पर पलक झपकने मात्र के समय मेँ ही एक दम से स्थिर हो जाने में सक्षम.
4- शत्रु से अदृश्य हो जाने की क्षमता (स्टील्थ क्षमता).
5- शत्रुओं के विमानों में होने वाले वार्तालाप तथा अन्य ध्वनियों को सुनने में सक्षम.
6- शत्रु के विमान के भीतर से आने वाली आवाजों को तथा वहाँ के दृश्योँ को विमान मेँ ही रिकार्ड कर लेने की क्षमता.
7- शत्रु के विमानोँ की दिशा तथा दशा का अनुमान लगाना और उस पर निगरानी रखना.
8- शत्रु के विमान चालकों तथा यात्रियों को दीर्घ काल के लिये स्तब्द्ध कर देने की क्षमता.
9- निजी रुकावटों तथा स्तब्द्धता की दशा से उबरने की क्षमता.
10- आवश्यकता पडने पर स्वयं को नष्ट कर सकने की क्षमता.
11- चालकों तथा यात्रियों में मौसमानुसार अपने आप को बदल लेने की क्षमता.
12- स्वचालित तापमान नियन्त्रण करने की क्षमता.
14- हल्के तथा उष्णता ग्रहण कर सकने वाले धातुओं से निर्मित तथा आपने आकार को छोटा बड़ा करने, तथा अपने चलने की आवाजों को पूर्णतयाः नियन्त्रित कर सकने की क्षमता.
भारद्वाज मुनि ने विमानिका शास्त्र मेँ लिखा हैं, -“विमान के रहस्यों को जानने वाला ही उसे चलाने का अधिकारी है।”
शास्त्र में विमान चलाने के बत्तीस रहस्य बताए गए हैं। उनका भलीभाँति ज्ञान रखने वाला ही उसे चलाने का अधिकारी है। क्योँकि वहीँ सफल पायलट हो सकता है।
विमान बनाना, उसे जमीन से आकाश में ले जाना, खड़ा करना, आगे बढ़ाना टेढ़ी-मेढ़ी गति से चलाना या चक्कर लगाना और विमान के वेग को कम अथवा अधिक करना उसे जाने बिना यान चलाना असम्भव है।
अब कुछ विमान रहस्योँ की चर्चा-
(1) कृतक रहस्य – बत्तीस रहस्यों में यह तीसरा रहस्य है, जिसके अनुसार हम विश्वकर्मा , छायापुरुष, मनु तथा मयदानव आदि के विमान शास्त्रोँ के आधार पर आवश्यक धातुओं द्वारा इच्छित विमान बना सकते , इसमें हम कह सकते हैं कि यह हार्डवेयर यानी कल-पुर्जोँ का वर्णन है।
(2) गूढ़ रहस्य – यह पाँचवा रहस्य है जिसमें विमान को छिपाने (स्टील्थ मोड) की विधि दी गयी है। इसके अनुसार वायु तत्व प्रकरण में कही गयी रीति के अनुसार वातस्तम्भ की जो आठवीं परिधि रेखा है उस मार्ग की यासा , वियासा तथा प्रयासा इत्यादि वायु शक्तियों के द्वारा सूर्य किरण हरने वाली जो अन्धकार शक्ति है, उसका आकर्षण करके विमान के साथ उसका सम्बन्ध बनाने पर विमान छिप जाता है।
(3) अपरोक्ष रहस्य – यह नौँवा रहस्य है। इसके अनुसार शक्ति तंत्र में कही गयी रोहिणी विद्युत के फैलाने से विमान के सामने आने वाली वस्तुओं को प्रत्यक्ष देखा जा सकता है।
(4) संकोचा – यह दसवाँ रहस्य है। इसके अनुसार आसमान में उड़ने समय आवश्यकता पड़ने पर विमान को छोटा करना।
(5) विस्तृता – यह ग्यारहवाँ रहस्य है। इसके अनुसार आवश्यकता पड़ने पर विमान को बड़ा या छोटा करना होता है। यहाँ यह ज्ञातव्य है कि वर्तमान काल में यह तकनीक 1970 के बाद विकसित हुई है।
(6) सर्पागमन रहस्य – यह बाइसवाँ रहस्य है जिसके अनुसार विमान को सर्प के समान टेढ़ी – मेढ़ी गति से उड़ाना संभव है। इसमें कहा गया है दण्ड, वक्र आदि सात प्रकार के वायु और सूर्य किरणों की शक्तियों का आकर्षण करके यान के मुख में जो तिरछें फेंकने वाला केन्द्र है, उसके मुख में उन्हें नियुक्त करके बाद में उसे खींचकर शक्ति पैदा करने वाले नाल में प्रवेश कराना चाहिए। इसके बाद बटन दबाने से विमान की गति साँप के समान टेढ़ी – मेढ़ी हो जाती है।
(7) परशब्द ग्राहक रहस्य – यह पच्चीसवाँ रहस्य है। इसमें कहा गया है कि शब्द ग्राहक यंत्र विमान पर लगाने से उसके द्वारा दूसरे विमान पर लोगों की बात-चीत सुनी जा सकती है।
(8) रूपाकर्षण रहस्य – इसके द्वारा दूसरे विमानों के अंदर का दृश्य देखा जा सकता है।
(9) दिक्प्रदर्शन रहस्य – दिशा सम्पत्ति नामक यंत्र द्वारा दूसरे विमान की दिशा का पता चलता है।
(10) स्तब्धक रहस्य – एक विशेष प्रकार का अपस्मार नामक गैस स्तम्भन यंत्र द्वारा दूसरे विमान पर छोड़ने से अंदर के सब लोग मूर्छित हो जाते हैं।
“विमान-शास्त्री महर्षि शौनक” आकाश मार्ग का पाँच प्रकार का विभाजन करते हैं तथा “महर्षि धुण्डीनाथ” विभिन्न मार्गों की ऊँचाई पर विभिन्न आवर्त्त या तूफानोँ का उल्लेख करते हैं और उस ऊँचाई पर सैकड़ों यात्रा पथों का संकेत देते हैं। इसमें पृथ्वी से 100 किलोमीटर ऊपर तक विभिन्न ऊँचाईयों पर निर्धारित पथ तथा वहाँ कार्यरत शक्तियों का विस्तार से वर्णन करते हैं।
आकाश मार्ग तथा उनके आवर्तों का वर्णन निम्नानुसार है :
(1) 10 किलोमीटर – रेखा पथ – शक्त्यावृत्त तूफान या चक्रवात आने पर
(2) 50 किलोमीटर – वातावृत्त – तेज हवा चलने पर
(3) 60 किलोमीटर – कक्ष पथ – किरणावृत्त सौर तूफान आने पर
(4) 80 किलोमीटर – शक्तिपथ – सत्यावृत्त बर्फ गिरने पर
एक महत्वपूर्ण बात विमान के पायलटोँ को विमान मेँ तथा पृथ्वी पर किस तरह भोजन करना चाहिए इसका भी वर्णन है
उस समय के विमान आज से कुछ भिन्न थे। आज के विमान की उतरने की जगह (लैँडिग) निश्चित है, पर उस समय विमान कहीं भी उतर सकते थे।
अतः युद्ध के दौरान जंगल में उतरना पड़ा तो जीवन निर्वाह कैसे करना चाहिए, इसीलिए 100 वनस्पतियों का वर्णन दिया गया है, जिनके सहारे दो-तीन माह जीवन चलाया जा सकता है। जब तक दूसरे विमान आपको खोज नहीँ लेते।
विमानिका शास्त्र में कहा गया है कि पायलट को विमान कभी खाली पेट नहीं उड़ाना चाहिए। 1990 में अमेरिकी वायुसेना ने 10 वर्ष के निरीक्षण के बाद ऐसा ही निष्कर्ष निकाला है।
अब जरा विमानोँ मेँ लगे यंत्रोँ और उपकरणोँ के बारे मेँ तथ्य प्रस्तुत कियेँ जाएं –
“विमानिका-शास्त्र” में 31 प्रकार के यंत्र तथा उनके विमान में निश्चित स्थान का वर्णन मिलता है। इन यंत्रों का कार्य क्या है इसका भी वर्णन किया गया है। कुछ यंत्रों की जानकारी निम्नानुसार है –
(1) विश्व क्रिया दर्पण – इस यंत्र के द्वारा विमान के आसपास चलने वाली गतिविधियों का दर्शन पायलट को विमान के अंदर होता था, इसे बनाने में अभ्रक तथा पारा आदि का प्रयोग होता था।
(2) परिवेष क्रिया यंत्र – ये यंत्र विमान की गति को नियंत्रित करता था।
(3) शब्दाकर्षण मंत्र – इस यंत्र के द्वारा 26 किमी. क्षेत्र की आवाज सुनी जा सकती थी तथा पक्षियों की आवाज आदि सुनने से विमान को “पक्षी-टकराने” जैसी दुर्घटना से बचाया जा सकता था।
(4) गर्भ-गृह यंत्र – इस यंत्र के द्वारा जमीन के अन्दर विस्फोटक खोजा जाता था।
(5) शक्त्याकर्षण यंत्र – इस यंत्र का कार्य था, विषैली किरणों को आकर्षित कर उन्हें ऊष्णता में परिवर्तित करना और ऊष्णता के वातावरण में छोड़ना।
(6) दिशा-दर्शी यंत्र – दिशा दिखाने वाला यंत्र
(7) वक्र प्रसारण यंत्र – इस यंत्र के द्वारा शत्रु विमान अचानक सामने आ गया, तो उसी समय पीछे मुड़ना संभव होता था।
(8) अपस्मार यंत्र – युद्ध के समय इस यंत्र से विषैली गैस छोड़ी जाती थी।
(9) तमोगर्भ यंत्र – इस यंत्र के द्वारा शत्रु युद्ध के समय विमान को छिपाना संभव था , तथा इसके निर्माण में तमोगर्भ लौह प्रमुख घटक रहता था।
“विमानिका-शास्त्र” मेँ विमान को संचालित करने हेतु विभिन्न ऊर्जा स्रोतोँ का वर्णन किया गया है, महर्षि भारद्वाज इसके लिए तीन प्रकार के ऊर्जा स्रोतों उल्लेख करते हैं-
(1) विभिन्न दुर्लभ वनस्पतियोँ का तेल – ये ईँधन की भाँति काम करता था।
(2) पारे की भाप – प्राचीन शास्त्रों में इसका शक्ति के रूप में उपयोग किए जाने का वर्णन है। इसके द्वारा अमेरिका में विमान उड़ाने का प्रयोग हुआ, पर वह जब ऊपर गया, तब उसमें विस्फोट हो गया। पर यह सिद्ध हो गया कि पारे की भाप का ऊर्जा की तरह प्रयोग हो सकता है, इस दिशा में अभी और कार्य करने बाकी है।
(3) सौर ऊर्जा – सूर्य की ऊर्जा द्वारा भी विमान संचालित होता था। सौर ऊर्जा ग्रहण कर विमान उड़ाना जैसे समुद्र में पाल खोलने पर नाव हवा के सहारे तैरता है। इसी प्रकार अंतरिक्ष में विमान वातावरण से सूर्य शक्ति ग्रहण कर चलता रहेगा। सेटेलाइट इसी प्रक्रिया द्वारा चलते हैँ।