चंडीगढ़ : शिक्षा व्यवस्था में आमूलचूल परिवर्तन की जरूरत है। इसके लिए बिना राजनीतिक दखल वाला स्वायत्त आयोग गठित होना चाहिए। इस आयोग को नौकरशाही से भी मुक्त रखा जाना चाहिए। इसमें सिर्फ शिक्षा से जुड़े लोग हों। साथ ही आईएएस, आईपीएस की तरह आईईएस (इंडियन एजुकेशन सर्विस) भी शुरू होनी चाहिए। ये बातें शिक्षाविद एवं शिक्षा बचाओ आंदोलन के प्रणेता दीनानाथ बत्रा ने कहीं। श्री बत्रा पंचनद शोध संस्थान, चंडीगढ़ के वार्षिक व्याख्यान ‘शिक्षा का भारतीय स्वरूप’ विषय पर बतौर मुख्य वक्ता बोल रहे थे। कार्यक्रम की अध्यक्षता हरियाणा के राज्यपाल कप्तान सिंह सोलंकी ने की।
स्वामी विवेकानंद के वक्तव्यों का हवाला देते हुए शिक्षाविद दीनानाथ बत्रा ने कहा कि हर व्यक्ति के अंदर समग्रता है, उस समग्रता को बाहर निकालना और उसे समाज सेवा के लिए प्रेरित करना ही शिक्षा है। शिक्षा तभी पूर्ण है जब किसी बालक का सर्वांगीण विकास हो। उन्होंने कहा कि आज शिक्षा की स्थिति ठूंसने और उड़ेलने जैसी हो गयी है।
श्री बत्रा ने कहा कि शिक्षा ऐसी हो जो देश के स्वाभिमान को जगाये। उन्होंने कहा शिक्षा का उद्देश्य अपनी संस्कृति, सभ्यता को समृद्ध करने के साथ ही गांवों एवं मलिन बस्तियों में सेवाभाव होना चाहिए। इसके लिए विश्वविद्यालयों को 10 और स्कूलों को एक गांव गोद लेना चाहिए। उन्होंने कहा कि शिक्षा का व्यवसायीकरण नहीं बल्कि शिक्षा में वयवसाय का पाठ्यक्रम हो। उन्होंने कहा कि नौवीं कक्षा से इस वोकेशनल कोर्स शुरू होना चाहिए।
नैतिकता एवं मूल्यों की शिक्षा को जरूरी बताते हुए उन्होंने कहा कि जो शिक्षा अपनी भाषा और संस्कृति पर ही कुठाराघात करे, उसे विकृति उपजेगी।
कार्यक्रम में बतौर मुख्य अतिथि उपस्थित हरियाणा के राज्यपाल कप्तान सिंह सोलंकी ने कहा, ‘हमें मंथन करना होगा कि हम कैसा राष्ट्र चाहते हैं।’ उन्होंने आजादी के स्वर्ण जयंती समारोह की चर्चा करते हुए कहा कि उस वक्त वरिष्ठ नेता अटल बिहारी वाजपेयी ने कहा था कि हम भारत को ही नहीं पहचान पाये। उन्होंने कहा कि जिस तरह हर आदमी का एक स्वभाव होता है उसी तरह हर देश का भी स्वभाव होता है। भारत इस सबमें सबसे अलग है। इसे किसी राजा ने नहीं बसाया। खुद अनुशासित रहने और औरों को इसके लिए प्रेरित किये जाने की जरूरत है।
इस मौके पर प्रो़ मथुरादत्त पांडेय द्वारा लिखी गयी पुस्तक अहल्या का लोकार्पण भी हुआ।
माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. बृज किशोर कुठियाला ने मानपत्र पढ़ा एवं डॉ केएस आर्य ने धन्यवाद ज्ञापित किया।
85 वर्षीय शिक्षाविद दीनानाथ बत्रा लंबे समय तक अध्यापन कार्य से जुड़े रहे। पुस्तकों में भाषा एवं ऐतिहासिक तथ्यों की गलती को सुधारने के लिए उन्होंने कानूनी लड़ाई भी लड़ी। उनके संघर्ष का ही परिणाम था कि किताबों से 75 आपत्तिजनक शब्द हटाये गये, दिल्ली विश्वविद्यालय ने एके रामानुजन के इतिहास के कोर्स से रामायण पर लिखे निबंध को हटाया।
उनके विरोध को देखते हुए मशहूर प्रकाशक पेंग्विन ने वेंडी डोनिगर की विवादास्पद किताब द हिंदू –एन आल्टरनेट व्यू को बाजार से हटा लिया। आज यूनेस्को सहित देश की कई राज्य सरकारें उनसे शिक्षा, भाषा एवं पाठ्यक्रम पर सलाह लेती है। वह एनसीईआरटी के सदस्य भी हैं।