दिल्ली सरकार को संसदीय सचिव बिल पर बड़ा झटका लगा है। राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने दिल्ली सरकार के विधेयक को वापस लौटा दिया है। यह विधेयक संसदीय सचिव को लाभ के पद से बाहर रखने को लेकर था, लेकिन राष्ट्रपति ने दिल्ली सरकार के इस बिल को ठुकरा दिया है।
ऐसे में सरकार के 21 संसदीय सचिवों को खतरा हो सकता है। पिछले साल मार्च में दिल्ली की केजरीवाल सरकार ने 21 संसदीय सचिवों की नियुक्ति की थी जिसमें किसी तरह का वेतन भत्ता देने की मनाही थी। इसमें बताया गया था कि इन नियुक्तियों से सरकारी खजाने पर कोई बोझ नहीं पड़ेगा।
अब इस मामले में चुनाव आयोग को फैसला लेना होगा। सभी 21 विधायक मुख्यमंत्री केजरीवाल से इस मामले पर आज मिलकर बातचीत करेंगे। हालांकि आप विधायक और पूर्व मंत्री सोमनाथ भारती ने कहा कि अगर यह साबित हो जाता है कि यह लाभ का पद है तो 21 विधायक इस्तीफा दे देंगे।
उधर, राष्ट्रपति द्वारा बिल लौटाए जाने के बाद दिल्ली की सियासत गरमा गई है। विपक्षी दलों ने इस मुद्दे पर मुख्यमंत्री का घेराव कराना शुरु कर दिया है।
दिल्ली विधानसभा में विपक्ष के नेता विजेंद्र गुप्ता ने लाभ के पद के मामले में नैतिकता के आधार पर राज्य के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल का इस्तीफा मांगा है। विजेंद्र गुप्ता के नेतृत्व में एक प्रतिनिधिमंडल दिल्ली के उप राज्यपाल नजीब जंग मिला और पूरे मामले पर चर्चा की।
भाजपा प्रवक्ता संबित पात्रा ने कहा कि 21 विधायकों से जुड़े विधेयक को राष्ट्रपति द्वारा नामंजूर करने से ये साफ हो गया है कि केजरीवाल ने इस मामले पर सही निर्णय नहीं लिया था।
कांग्रेस ने कहा कि इससे साफ जाहिर होता है कि यह आम आदमी पार्टी नहीं बल्कि वीआईपी पार्टी है।
संविधान विशेषज्ञ सुभाष कश्यप ने कहा है कि ये स्पष्ट है कि आम आदमी पार्टी के 21 विधायक लाभ के पद पर थे, ऐसे में संविधान के हिसाब से उनकी सदस्यता रद्द की जा सकती है। उन्होंने कहा कि नियमों के मुताबिक इन 21 सीटों पर फिर से चुनाव कराए जाने चाहिए।
लाभ का पद ऐसा पद है जिसमें उसे संभालने वाले व्यक्ति को वित्तीय फायदे के साथ ही कोई अन्य लाभ होता हो। संविधान की धारा 102 (1)(A) के तहत कोई सांसद या विधायक केंद्र या राज्य सरकार के तहत लाभ का पद नहीं ले सकता है। अगर संसद किसी पद को लाभ के पद के दायरे से बाहर कर दे तो ये नियम लागू नहीं होता।
वैसे ये पहली बार नहीं है जब लाभ के पद के विवाद में किसी की कुर्सी गई है कई और लोगों पर इसकी गाज़ गिर चुकी है। सोनिया गांधी ने 2006 में विवाद के बाद अपने कई पदों से इस्तीफ़ा दिया क्योंकि वो एनएसी के अध्यक्ष के पद पर थीं। समाजवादी पार्टी सांसद जया बच्चन की राज्यसभा सदस्यता भी इसी के चलते रद्द की गई थी।
कुल मिलाकर केजरीवाल सरकार अपने ही बुने जाल में फंस गई है और चुनाव आयोग के फैसले के बाद उसके 21 विधायकों की सदस्यता भी जा सकती है। इससे केजरीवाल सरकार की स्थिरता पर भले ही न असर पड़े लेकिन नैतिक तौर पर उसकी हार जरुर होगी।