“अगर आप के घर की नाली जाम हो जाए तो आप क्या करेंगे ? जब तक समस्या से शिकायत करते रहेंगे, उसी गन्दगी में जीने को विवश होंगे ; अगर समाधान चाहिए तो सुझाओ और शिकायत से ऊपर उठकर पूरी ईमानदारी से सफाई की कोशिश करनी होगी; नाली में भी उतारना होगा;आज हमारे देश की परिस्थिति भी कुछ ऐसी ही है…
इस देश की सामजिक व्यवस्था वह नाली है जो अभी जाम दिखती है पर वास्तविक समस्या यह है की आज हमारी समझ ने हमारे घर को इतना छोटा कर दिया है की किसी को यह महसूस करने की फुर्सत ही नहीं की हमारा देश ही हमारा घर है ; सभी अपने रोज़-मर्रा के दाल रोटी की दौड़ में लगे पड़े हैं ;
हाँ, अकेला इंसान आखिर क्या कर सकता है पर अगर हर इंसान जो कुछ भी कर सकता है पूरी ईमानदारी से करे तो ऐसा कुछ भी नहीं जो नहीं हो सकता; बस ज़रूरत महसूस करने की देरी है ;
स्वक्षता के संचार के लिए स्त्रोत का स्वक्ष होना अनिवार्य है ; जब तक प्रयास का केंद्र बिंदु इस सत्य की उपेक्षा करेगा उसकी सफलता संदेहास्पद रहेगी !
हाँ , यह सत्य है की वर्त्तमान की सामाजिक व्यवस्था प्रणाली ऊपर से निचे तक भ्रस्टाचार से संक्रमित है पर इस समस्या के समाधान के लिए हमें जागरूक होना होगा ; जब तक समस्या की प्रतिक्रियाएं ही प्रयास को प्रेरित करेंगी, समाधान मुश्किल होगा, समस्या के मूल तत्व तक पहुंचना होगा …
आकांक्षाओं और अधिकारों से ऊपर उठकर आवश्यकताओं को महसूस करना होगा और सभी को अपने हिस्से के कर्तव्य का निर्वहन पूरी निष्ठां से करना होगा; हमारा दाइत्व ही हमारा महत्व है ;
आज कोई खिलाडी हो या इंजीनियर, पदाधिकारी हो या पत्रकार। अपनी प्रतिभा के दम पर ही वह अपने कायक्षेत्र के शिखर पर पहुँचता है पर वहां पहुंचकर अपनी स्थिति बनाये रखने के लिए अगर उसे अपने सिद्धांतों से समझौता करना पड़े तो यह स्पष्ट है की समस्या का स्त्रोत ऊपर के स्तर पर है, नीचे वाले तो केवल समस्या के प्रभाव से ही पीड़ित हैं ;
चिंता का केंद्र बिंदु समस्या नहीं अपितु हमारे अनुकूलन की क्षमता है जिसने हमें प्रतिक्रिया करने से भी प्रतिरक्षित कर दिया है; ऐसा लगता है मानो भ्रस्टाचार की धीमी आंच में यह समाज सुलग रहा हो और सामाजिक चेतना प्रतिक्रिया की प्रतीक्षा में है;
अगर जीवन की साहुल्यतों के लिए व्यवहारिकता के नाम पर सिद्धांत अपने आदर्शों से समझाौता करने के आदि हो गए तो भविष्य के पास उम्मीद का कोई कारन भी न बचेगा ; इसलिए, समझ के माध्यम से समाज को झकझोरना वर्त्तमान की आवश्यकता है और इसके लिए हमें व्यक्तिगत स्तर पर तैयार रहना होगा !”