मानव जीवन में चंद्रमा का एक विशिष्ट स्थान है। पृथ्वी के सबसे निकटतम खगोलीय पिंड होने के नाते तथा चंद्रीय खोज में हुई वर्तमान उपलब्धियों के कारण चंद्रमा अध्ययन के एक महत्वपूर्ण पिंड के रूप में बना रहेगा। अपोलो युग के दौरान चंद्र पर हुए आरंभिक अवतरणों के बाद 1990 के आरंभिक समय तक चंद्रीय अध्ययन में एक ठहराव आ गया था, जिसके बाद, क्लेमेंटाइन (यू.एस.ए.एफ./नासा), लूनार प्रोस्पेक्टर (नासा), स्मार्ट-1 (ई.एस.ए.), कागुया (जापान), चैंग मिशन (चीन), चंद्रयान-1 (भारत), लूनार रिकोनेसन्स आर्बिटर (नासा), इत्यादि के प्रमोचन हुए।
एक दशक पहले, इसरो ने चंद्रमा पर अपने पहले मिश्न चन्द्रयान-1 का प्रमोचन किया था। यह कई मायनों में एक विशेष मिशन था, जिसमें मुख्य रूप से चंद्रमा पर जल के होने का साक्ष्य, खनिज तथा रसायनिक संघटक अध्ययनों से चंद्रमा की उत्पत्त्िा को समझना, व्यापक रूप से चंद्रीय सतह का मानचित्रण तथा चंद्रमा के विरल वायुमंडल में परमाणु प्रजातियों की उपस्थिति का संसूचन तथा उसकी पहचान करना शामिल था।
पूरक उपकरणों अथवा संयुक्त रूप से विकसित परीक्षणों के माध्यम से हमारे चंद्रीय विज्ञान अन्वेषण में जुड़ने के लिए अंतरराट्रीय भागीदारों को आमंत्रित करना चंद्रमायान-1 की विशेषता थी। इस मिशन में संयुक्त राज्य अमरीका, यूरोप तथा बुल्गेरिया से आए उपकरण शामिल थे। चंदयान-1 वैज्ञानिक लक्ष्यों के विषय वस्तु तथा क्षमता को बढ़ाने के लिए इनका इष्टतम रूप से चयन किया गया था, जिसमें चंद्रमा पर जल की खोज शामिल था।
चंद्रयान-1 आंकड़े ने चंद्रमा के बहिर्मंडल में चंद्रमा की सतह पर तथा उप-सतह (दस मीटर से भी गहरा) पर जल के होने का साक्ष्य प्रस्तुत किया। चंद्रमा के विरल वायुमंडल में, द्रव्यमान स्पैक्ट्रोमीटर परीक्षण (चंद्रमा संघट्ट प्रोब पर सी.एच.ए.सी.ई.) ने इसके सीमित प्रचालन समय के भीतर भी जल के होने का साक्ष्य दर्शाया है, क्योंकि चंद्रमा संघट्ट प्रोब को दक्षिण ध्रुवीय क्षेत्र के इसके विनाशकारी, प्रक्षेपिक प्रक्षेप पथ पर प्रस्तारित कर दिया गया था। ऐसा विश्वास है कि चंद्रमा के ध्रुवीय क्षेत्र में जल जैसी वाष्पशील वस्तु हैं। आदिम काल से ही जल की संभावना रही है (~3-4 बिलीयन वर्षों पहले), जो सौर जगमगाहट की विशिष्ट ज्यामिति के कारण संरक्षित रहा, जो ध्रुवीय क्षेत्रों में क्रेटरों में सीधे सूर्य के प्रकाश के प्रवेश को रोकता है। ध्रुवीय क्षेत्रों पर जल तथा अन्य वाष्पशील वस्तुओं के निम्न अक्षांशों से अभिगमन के बढ़ने की भी संभावना है।
सतही जल के लिए साक्ष्य चंद्रयान-1 पर चंद्रमा खनिज विज्ञान मानचित्रक (एम.3) परीक्षण से प्राप्त हुआ है। आरंभ में इसने परावर्ती सूर्य की रोशनी में जल/हिम स्पैक्ट्रल सिंगनेचर (2-2.5 माइक्रोन) का प्रयोग करते हुए सौर प्रकाशित स्थान पर जल की मौजूदगी को दर्शाया। अभी हाल में 21 अगस्त को राष्ट्रीय विज्ञान अकादमी (यू.एस.ए.) की कार्यवाही में इसके बारे में रिपोर्ट किया गया कि एम.3 ने भी चंद्रीय ध्रुव पर जल के होने की खोज की जहां यह सिग्नेचर एकदम अंधेरे वाले क्षेत्र से बाहर निकले परंतु सूर्य के प्रकाश के परावर्तन में धुंधले स्पैक्ट्रमी लक्षण, जिसने क्रेटरों में सीधे प्रवेश न करके क्रेटर दीवारों से बहु परावर्तन द्वारा प्रवेश किया। एम.3 के सीमित तरंगदैर्घ्य कवरेज से अवरोध चिंता का विषय बना रहा। इसके साथ-साथ, टीम ने प्रयोगशाला परीक्षण भी किए, जिसने एम.3 स्पैक्ट्रोमीटर (0.7 से 3.0 माइक्रोन) द्वारा औपचारिक रूप से शामिल स्पैक्ट्रम के भाग में जल द्वारा अवशोषण सिग्लन के पूरक साक्ष्य को दर्शाया। प्रयोगशाला अध्ययनों से प्राप्त मुख्य साक्ष्य 1.3, 1.5 तथा 2 माइक्रोन पर अवशोषण लक्षणों के एक साथ उपस्थिति की खोज करना था, जिसने जल-हिम की उपस्थिति के लिए पुख्ता साक्ष्य प्रदान किया है। इस नए सिग्नेचर का स्थानीकरण चंद्रमा के उत्तर तथा दक्षिण ध्रुवों पर स्थाई रूप से छायादार क्रेटर के साथ मेल खाता है। चूंकि एम.3 अवरक्त परावर्तन स्पैक्ट्रोस्कोपिक सिग्लन चंद्रीय सतह के ऊपर के मात्र कुछ ही मिली. मीटर से उभरते हैं, यह ध्रुवीय क्रेटर में सतही जल के लिए साक्ष्य था। इसने आगे लेज़र तुंगतामापी से पहले के साक्ष्यों तथा लूनार रिकोनेसन्स आर्बिटर (एल.आर.ओ.) पर पराबैंगनी स्पैक्ट्रोमीटर परीक्षणों को मज़बूती प्रदान की है।
उप सतही जल (दस मीटर से गहरा) के लिए साक्ष्य चंद्रयान-1 तथा एल.आर.ओ. सहित चंद्रीय मिशन पर लगे संशलेषी द्वारक रेडार से प्राप्त हुए। मानचित्रण ध्रुवों पर सबसे सटीक था, जिस कारण उप सतही हिम जल के साक्ष्य की प्राप्ति हुई।
चंद्रमा पर जल की संपूर्ण कहानी को बल देने के लिए, वर्ष 2017 के मध्य में वर्तमान में एम.3 खोजों की रिपोर्ट करने वाली उसी टीम से एक केंद्रीय समूह (कोर ग्रुप) ने अत्यधिक संवेदनशील उपकरणों का प्रयोग करते हुए अपोलो 15 तथा 17 से ज्वालामुखीय चट्टानों का अध्ययन किया तथा इन चट्टानों में अपेक्षा से अधिक जल की बहुलता के बारे में रिपोर्ट किया, जो कि चंद्रीय सतह के आंतरिक भाग से निकला। भू आधारित शक्तिशाली लेज़रों का प्रयोग करते हुए चंद्रमा के लेज़र रेंजिंग की कई वर्षों की खोज, जो अपोलो (11, 14, 15) अंतरिक्ष यात्रियों तथा लूनोखोड (1 तथा 2) लैंडरों द्वारा चंद्रमा पर छोड़े गए रैट्रोपरावर्तकों पर परावर्तित किए गए, ने द्रव कोर के साक्ष्य को दर्शाया है।
भविष्य की अंतरिक्ष खोज तथा यात्रा पर नज़र डालने से सतह, उप-सतह, बहुत गहरे सतह, तथा बर्हिमंडल से आने वाली चंद्रीय जल के लिए व्यापक साक्ष्य सबसे अधिक रोमांचक है। ध्रुवों पर जल का सुलभ अभिगम वैज्ञानिक तथा उपयोगितावादी दोनों ही रूप में प्रेरित करने वाला है। आदिम जल का नमूना चंद्रमा तथा पृथ्वी पर जल की उत्पत्ति के बारे में बताने वाला मुख्य कारण है तथा इससे सौर मंडल में जल की कहानी पर और अधिक प्रकाश पड़ेगा। जैसे-जैसे हमने अंतरिक्ष तथा सौर मंडल के व्यापक खोज की शुरुआत की है, ईंधन तथा आक्सीजन और अन्य क्रांतिक कच्चे माल के लिए चंद्रमा आधार बनेगा। जल सहित संसाधनों के लिए यदि चंद्रमा को अल्प-विराम (पिट-स्टाप) के रूप में सोचा जाए तो अंतरिक्ष परिवहन और अधिक वहन योग्य हो सकेगा, जैसा कि कुछ अध्ययनों से दर्शाया गया है। चंद्रयान-2, एक कक्षित्र, जो कि एक व्यापक रेंज स्पैक्ट्रोमीटर का वहन करता है, जो कि जल सिग्नेचर स्पष्ट रूप से प्रदान करने के लिए 5 माइक्रोन तक जाता है, के साथ्, अपने चंद्रीय अध्ययन की शुरुआत वर्ष 2019 के आरंभ में करेगा। इस परीक्षण से प्राप्त वैश्विक मानचित्र से चंद्रमा के सतह पर जल के वितरण पर दृढ़ निष्कर्षों का पता लगाने की अपेक्षा है। चंद्रयान-2 पर द्वि-आवृत्ति एस.ए.आर. परीक्षण उप-सतह जल की संवेदनशीलता को और अधिक शुद्ध करेगा। द्रव्यमान स्पैक्ट्रोमीटर के साथ, जो कि अधिक अवधि के लिए बहिर्मंडल का अध्ययन कर सकता है, चंद्रयान-2 वास्तव में चंद्रमा पर जल होने के महत्वपूर्ण विषय पर प्रमुख खोजों का पता लागाने का विशिष्ट अवसर प्रदान करता है।
Source : ISRO
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