भोपाल, 30 जनवरी। महापुरुषों को समझने के दो तरीके हैं- वाद और दर्शन। यदि हमें किसी महापुरुष को समझना है तो ‘वाद’ को छोडऩा पड़ेगा। उनके ‘दर्शन’ के आधार पर ही हम उन्हें समझ सकते हैं। राजनेता महापुरुषों के वाद को पकड़ते हैं, जबकि साहित्यकार उनके दर्शन को लेकर चलते हैं। यह विचार साहित्य अकादमी के निदेशक डॉ. उमेश सिंह ने व्यक्त किए। महात्मा गांधी एवं माखनलाल चतुर्वेदी की पुण्यतिथि के अवसर पर माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता एवं संचार विश्वविद्यालय की ओर से यह कार्यक्रम आयोजित किया गया।
कार्यक्रम के मुख्य वक्ता डॉ. उमेश सिंह ने कहा कि माखनलाल चतुर्वेदी लेखक एवं साहित्यकार होने के साथ ही पत्रकार भी थे। आज की मीडिया को उनकी पत्रकारिता के मूल्यों की ओर देखना चाहिए। माखनलालजी ने अपने जीवन का ध्येय राष्ट्र के लिए समर्पित कर दिया था। इसकी प्रेरणा उन्हें महात्मा गांधी से मिली। महात्मा गांधी के जीवन के दो स्वरूप हैं- राजनीतिक एवं दार्शनिक। माखनलाल चतुर्वेदी ने उनके दार्शनिक स्वरूप से प्रेरणा ली। डॉ. सिंह ने कहा कि महात्मा गांधी को तीन तत्वों से समझा जा सकता है, जिन्हें वह अपने जीवन में लेकर चले- सत्य, अहिंसा एवं अपरिग्रह।
महापुरुषों के संदेशों को वर्तमान संदर्भ में देखें :
कार्यक्रम की अध्यक्षता कर रहे कुलपति प्रो. बृज किशोर कुठियाला ने कहा कि अपने महापुरुषों के जीवन और उनके संदेशों को हमें वर्तमान परिस्थितियों के संदर्भ में देखना चाहिए। वर्तमान परिस्थितियों के अनुसार उनकी व्याख्या करनी चाहिए। महात्मा गांधी ने चरखे को अपनाया और प्रतीक के रूप में उससे महत्वपूर्ण संदेश दिया। चरखा सामान्य व्यक्ति के उपयोग और लाभ की तकनीक थी। उसी तरह आज इंटरनेट चरखे की तरह सामान्य व्यक्ति के उपयोग एवं लाभ की तकनीक है। अपने उद्बोधन में प्रो. कुठियाला ने कहा कि 15 अगस्त, 1947 को जब लाल किले की प्राचीर पर तिरंगा फहराया जा रहा था, देश में स्वतंत्रता के उत्सव मनाए जा रहे थे, तब महात्मा गांधी कहाँ थे? इस प्रश्न का उत्तर खोजने पर हम महात्मा गांधी को ठीक से समझ पाएंगे। इसी प्रकार माखनलाल चतुर्वेदी के जीवन से हम पत्रकारिता के मूल्यों को सीख सकते हैं। प्रो. कुठियाला ने बताया कि महात्मा गांधी के जीवन से प्रेरित होने के बाद भी माखनलालजी ने घोषणा की थी कि वह कभी भी क्रांतिकारियों के विरुद्ध कोई वक्तव्य अपने समाचार पत्र में प्रकाशित नहीं करेंगे। उन्होंने बताया कि माखनलालजी ने अपनी पत्रकारिता के माध्यम से गो-हत्या के विरुद्ध देश में जनांदोलन खड़ा किया। अंग्रेजों ने अपनी विभाजनकारी नीति के तहत मध्यप्रदेश के रतौना में वृहद् कत्लखाना खोलने का निर्णय लिया था। हितवाद को दिए विज्ञापन में अंग्रेजों ने स्पष्ट किया था कि उस कत्लखाने में सिर्फ गोवंश ही काटा जाना था। माखनलालजी अपनी यात्रा को बीच में छोड़कर आए और अंग्रेजों के इस निर्णय के विरुद्ध पूरे देश में अपनी पत्रकारिता से जनांदोलन खड़ा कर दिया। अंतत: अंग्रेजों को अपना निर्णय वापस लेना पड़ा। इस अवसर पर कुलाधिसचिव लाजपत आहूजा, कुलसचिव प्रो. संजय द्विवेदी एवं संबद्ध अध्ययन संस्थाओं के निदेशक दीपक शर्मा सहित सभी विभागों के अध्यक्ष, प्राध्यापक, अधिकारी, कर्मचारी एवं विद्यार्थी उपस्थित रहे। कार्यक्रम का संचालन इलेक्ट्रॉनिक मीडिया विभाग के सहायक प्राध्यापक लोकेन्द्र सिंह ने किया।