डॉ अनीता छाबरा : हाल ही में सरकारी सहायता प्राप्त स्कूलों के अध्यापकों एवं कर्मचारियों को सरकारी स्कूलों में समायोजित किया गया है। इसी आधार पर सरकारी सहायता प्राप्त कॉलेजों के शिक्षकों व कर्मचारियों की ओर से यह मांग उठने लगी है कि उन्हें भी प्रदेश के सरकारी कॉलेजों में समायोजित कर दिया जाए। हरियाणा के सरकारी सहायता प्राप्त महाविद्यालयों के लगभग तीन चौथाई शिक्षक व कर्मचारी जोर शोर से मांग कर रहे हैं कि उनका सरकारी कॉलेजों में समायोजन सही एवं औचित्यपूर्ण है तथा सरकार व इन कर्मचारियों दोनों को ही इससे लाभ होगा। देखा गया है कि काफी महाविद्यालयों का प्रबन्धन इतना प्रभावशाली नहीं रहा तथा अध्यापकों एवं कर्मचारियों की समस्याओं का यथोचित समाधान नहीं हो पाता जिससे वे अपने काम के प्रति गम्भीर नहीं रहते तथा एक ही महाविद्यालय में अपनी पूरी सेवाकाल के दौरान कार्य करते हुए उनमें गुटबाजी तथा आपसी मतभेद उत्पन्न हो जाते हैं। स्वाभाविक है कि अध्यापन जैसे बौद्धिक कार्य पर इसका प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है। हरियाणा के कुल 97 सहायता प्राप्त महाविद्यालयों में से लगभग आधे महाविद्यालीयों में प्रबन्धन समितियाँ निष्क्रिय हैं तथा वहाँ प्रबन्धन का कार्य प्रशासनिक अधिकारी देख रहे हैं। अन्य प्रशासनिक कार्यों की अधिकता के कारण इस प्रकार के अधिकारी महाविद्यालय प्रबन्धन पर पूरा ध्यान नहीं दे पाते, दूसरी ओर कुछ महाविद्यालयों की प्रबन्ध समितियाँ निरकंुश रूप से महाविद्यालय प्रशासन पर हावी रहती हैं तथा नित्यप्रति प्रशासनिक एवं अध्यापन कार्यों मंे इनका अवांछित हस्तक्षेप रहता है। जिससे प्राध्यापकों व कर्मचारियों को अवांछित मानसिक दबाव सहन करना पड़ता है तथा प्रबन्धन के निर्देशानुसार अवांछित कार्य भी करने पड़ते हैं। तनाव एवं घुटन की स्थिति में स्टाफ सदस्य इन प्रतिकूल परिस्थितियों से निकलकर केवल अध्यापन कार्यों को करने के लिए इच्छुक हैं। जो प्राध्यापक एवं कर्मचारी सरकारी समायोजन की माँग कर रहे हैं, उन्होंने सरकार, प्रशासनिक अधिकारियों एवं जनप्रतिनिधियों के समक्ष अपना मांगपत्र रखा है। जिसमें उनकी अधिकांश मांगे औचित्यपूर्ण लगती हैं। इन पर गंभीरता से विचार करके देखा जाए तो इस प्रकार की कोई बाधा दिखाई नहीं देती जिससे इन मांगों को पूरा करना कठिन हो। वैसे भी सरकार नियमानुसार इन पर विचार करके यथासंभव आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए स्वतंत्र है। सरकारी सहायता प्राप्त महाविद्यालयों के नियमित स्टाफ का सरकारी महाविद्यालयों में समायोजन पूर्णतः न्यायसंगत एवं औचित्यपूर्ण लगता है।
दूसरी ओर सरकार लगातार राजकीय महाविद्यालय खोल रही है, किन्तु राजकीय महाविद्यालयों मंे नियुक्त नियमित स्टाफ की काफी कमी है। कभी अतिथि तो कभी एक्सटैंशन लैक्चर के आधार पर अस्थायी प्राध्यापकों की भर्ती की जाती है तथा उसके बाद विभिन्न मांगों को लेकर इन प्राध्यापकों के द्वारा अदालतों का सहारा लिया जाता है जिससे सरकार का काफी काम तथा समय कुप्रभावित होता है। यद्यपि हरियाणा लोक सेवा आयोग द्वारा कॉलेज प्राध्यापकों की नियमित भर्ती करने का प्रयास किया जा रहा है, किन्तु यह एक दीर्घकालिक प्रक्रिया है तथा अदालती मुकद्दमें होने के कारण यह भर्ती भी अधूरी रह जाती है। वैसे भी यह भर्ती विगत में प्राध्यापकों के कार्यभार को आधार बनाकर की जाती है, जबकि सेवानिवृत हो चुके प्राध्यापकों एवं नये खुलनेे वाले राजकीय महाविद्यालयों में सृजित हुए पद काफी समय पर रिक्त रहते हैं जिससे गुणाात्मक शिक्षा पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है। सहायता प्राप्त महाविद्यालयाों के प्राध्यापकों एवं कर्मचारियों के समायोजन से काफी हद तक प्राध्यापकों व कर्मचारियों की कमी पूरी हो सकती है।
यदि इसके आर्थिक पहलु पर विचार किया जाए तो सरकारी सहायता प्राप्त महाविद्यालयों के नियमित स्टाफ को 95 प्रतिशत अनुदान सरकार द्वारा ही दिया जाता है तथा केवल 5 प्रतिशत के अतिरिक्त खर्च पर सरकार को काफी संख्या में नियमित तथा अनुभवी प्राध्यापक व कर्मचारी उपलब्ध हो जायेंगे। जिससे राजकीय महाविद्यालयों का शैक्षणिक व गैर शैक्षणिक कार्य सुचारू रूप से चल पड़ेगा। जहाँ भी आवश्यकता हो, इन प्राध्यापकों व कर्मचारियों को राजकीय महाविद्यालयों में नियुक्त किया जा सकता है। निश्चित रूप ये इस स्टाफ के समायोजन से सरकारी महाविद्यालयों के विद्यार्थी इनकी सेवाओं से लाभान्वित होंगे। सहायता प्राप्त महाविद्यालय पूर्व प्रचलित पद्धति पर तदर्थ/अनुबन्ध आधार पर शिक्षकों की नियुक्ति करके अपना काम चला सकते हैं।
वैसे भी भारतीय जनता पार्टी के चुनावी घोषणा पत्र में इस स्टाफ को सरकारी महाविद्यालयों में समायोजित करने का वायदा किया गया था। अब उस वायदे को पूरा करने का उचित समय आ गया है।