भोपाल, 22 फरवरी, 2018। दुनिया में सबसे बड़ा प्रवासी वर्ग भारतीयों का है, जो भारतीय भाषाओं और साहित्य के प्रसार को समझने में हमारी मदद कर सकता है। वर्तमान समय में विश्व पटल पर भारत का कद बढ़ रहा है, इसलिए ही आज दुनिया में भारतीय भाषा का प्रभाव बढ़ रहा है। विशेषकर हिंदी को विश्वभर में पढ़ाया-सिखाया जा रहा है। यह विचार जर्मनी के हम्बुर्ग विश्वविद्यालय में हिंदी के सह प्राध्यापक डॉ. रामप्रसाद भट्ट ने व्यक्त किए। उन्होंने माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता एवं संचार विश्वविद्यालय की ओर से ‘दुनिया में भाषायी संदर्भ’ विषय पर आयोजित विशेष व्याख्यान में विद्यार्थियों को संबोधित किया। कार्यक्रम की अध्यक्षता कुलपति प्रो. बृज किशोर कुठियाला ने की।
हिंदी भाषा के विद्वान डॉ. रामप्रसाद भट्ट ने पत्रकारिता एवं संचार के विद्यार्थियों को संबोधित करते हुए कहा कि हमारी कमी है कि हम अपनी भाषा को गंभीरता से नहीं लेते हैं। जबकि आज समूचे विश्व में हिंदी का प्रभाव बढ़ रहा है। हिंदी के शब्द अंग्रेजी में ही नहीं, अपितु फारसी, अरबी, तुर्की, पोर्तुगीज सहित अन्य भाषाओं के शब्दकोश में पहुँच गए हैं। आज दुनिया के कई देशों में साइन बोर्ड पर हिंदी लिखी जाने लगी है। अमेरिका में मतदाता पर्ची पर हिंदी में लिखा गया। टैटू और टी-शर्ट पर हिंदी के शब्द एवं वाक्य लिखे जा रहे हैं। उन्होंने बताया कि जर्मनी में संग्रहालयों, पर्यटन स्थलों और एयरपोर्ट पर हिंदी में लिखा गया है। डॉ. भट्ट ने बताया कि यूरोप में जो विद्वान हैं, वह चाहते हैं कि हिंदी का विकास और विस्तार हो। हिंदी का प्रयोग बढ़े। उन्होंने बताया कि संस्कृत महान भाषा है। संस्कृत का व्याकरण यदि किसी ने सीख लिया तो वह दुनिया की तमाम भाषाएं सीख सकता है। उन्होंने बताया कि पश्चिमी साहित्य में ‘पंचतंत्र’ सबसे पहले भारत से पहुँचा। यूरोप के देशों में संस्कृत में लिखी पंचतंत्र की कहानियों का अनुवाद फारसी, अरबी, ग्रीक, हिब्रू और लैटिन इत्यादि भाषाओं में हुआ। 16वीं सदी में यूरोप के विद्वानों ने भारतीय संस्कृति में रुचि दिखाई। उन्होंने कहा कि भारतीय साहित्य को दुनिया तक ले जाने में जर्मन विद्वानों का महत्वपूर्ण योगदान है।
दुनिया में हिंदी के साथ जाए हिंदीपन :
कार्यक्रम की अध्यक्षता कर रहे कुलपति प्रो. बृज किशोर कुठियाला ने कहा कि हमें अपनी हिंदी के साथ-साथ हिंदीपन को भी दुनिया में ले जाना है। हिंदी के साथ जुड़ी हमारी संस्कृति ही हिंदी के प्रभाव को बढ़ाती है। उन्होंने कहा कि आज दुनिया के विद्वान मान रहे हैं कि संस्कृत से सभी भाषाओं का उद्गम हुआ है। प्रो. कुठियाला ने कहा कि यह प्रसन्नता की बात है कि दुनिया में भारत के संदर्भ में अध्ययन किया जा रहा है। किंतु, विचार करने की आवश्यकता है कि वहाँ भारत को किस चश्मे से देखा जा रहा है। कई लोग भारत के संबंध में भ्रामक धारणाएं निर्मित कर रहे हैं। पहले भी कुछ विद्वानों ने ऐसा किया है। इस प्रकार की प्रवृत्ति को रोकने की आवश्यकता है। इस अवसर पर कुलाधिसचिव लाजपत आहूजा ने विषय की प्रस्तावना में कहा कि आने वाले समय में सिर्फ अंग्रेजी से काम नहीं चलेगा। दुनिया की आबादी का एक बड़ा हिस्सा हिंदी में बात कर रहा है। कार्यक्रम का संचालन डीन अकादमिक और विज्ञापन एवं जनसंपर्क विभाग के अध्यक्ष प्रो. पवित्र श्रीवास्तव ने किया। इस अवसर पर कुलसचिव प्रो. संजय द्विवेदी, नवीन मीडिया विभाग की अध्यक्ष डॉ. पी. शशिकला, गर्भनाल पत्रिका के संपादक आत्माराम सहित अन्य शिक्षक एवं विद्यार्थी उपस्थिति रहे।