सोनीपत : दीनबंधु छोटू राम विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय, मुरथल के कुलपति प्रो. राजेंद्रकुमार अनायत ने कहा कि मातृभाषा मात्र संवाद ही नहीं अपितु संस्कृति और संस्कारों की संवाहिका है। मातृभाषा के माध्यम से ही मनुष्य ज्ञान को आत्मसात करता है। किसी भी राष्ट्र की पहचान उसकी भाषा और संस्कृति से होती है।
कुलपति प्रो. अनायत विश्वविद्यालय में मातृभाषा दिवस के अवसर पर जनसंपर्क विभाग द्वारा आयोजित संगोष्ठी को बतौर मुख्यातिथि के तौर पर संबोधित कर रहे थे। उदाहरण के तौर पर हिंदी में एक वाक्य बोला गया, जिसे बाद में मलयालम,पंजाबी व हरियाणवी में अनुवादित किया गया। उन्होंने कहा कि जन्म लेने के बाद मानव जो प्रथम भाषा सीखता है उसे उसकी मातृभाषा कहते हैं। मातृभाषा हमें राष्ट्रीयता से जोड़ती है। कुलपति प्रो. अनायत ने कहा कि सामाजिक, आर्थिक, तकनीकी, वैज्ञानिक एवं अन्य समसामयिक ज्ञान का विस्तार मातृभाषा में ही किया। चीन और जापान तो ऐसे अनुकरणीय उदाहरण हैं, जिन्होंने मातृभाषा के माध्यम से विकास कर वैश्विक शक्ति के रूप में स्थापित हुए हैं।
कुलपति प्रो. अनायत ने कहा कि मातृभाषा व्यक्तित्व निर्माण का सशक्त साधन है। बच्चे का मानसिक विकास एवं व्यक्तित्व निर्माण उन विचारों पर निर्भर करता है जो उसे परिवार एवं शिक्षा संस्थान से प्राप्त हुए है। जीवन के प्रारंभिक वर्षों में संसार की सभी वस्तुओं, क्रियाओं व घटनाओं को समझने का आधार मातृभाषा ही है यानी वह भाषा जो उसके परिवार में बोली जाती है जिसे मां बोली भी कहते है।
कुलसचिव प्रो.एस.के.गर्ग ने अपने संबोधन में कहा कि मातृभाषा के बिना, किसी भी देश की संस्कृति की कल्पना बेमानी है। मातृभाषा हमें राष्ट्रीयता से जोड़ती है और देश प्रेम की भावना उत्पन्न करती है। अंतरराष्ट्रीय मातृभाषा दिवस प्रत्येक भाषा की गरिमा को स्वीकार करने के लिए मनाया जाता है। यह दिवस हमको इस बात का ध्यान दिलाता है कि भाषा अभिव्यक्ति का साधन मात्र नहीं है यह संस्कृतिक सेतु भी बनाती है।
मानव रचना विश्वविद्यालय के कुलसचिव श्री आर.के.अरोड़ा ने अपने संबोधन में कहा कि अधिकांश बच्चे स्कूल जाने से इसलिए कतराते हैं, क्योंकि उनकी शिक्षा का माध्यम वह नहीं है, जो भाषा घर में बोली जाती है। बच्चे को उस भाषा में शिक्षा दी जाए जिस भाषा में उसके माता-पिता, दादा-दादी, भाई-बहन व परिवार के सदस्य बातें करते है। भाषा भावनाओं और संवेदनाओं को मूर्त रूप दिए जाने का माध्यम है, न कि प्रतिष्ठा का प्रतीक। उन्होंने कहा कि मातृभाषा आदमी के संस्कारों की संवाहक है। मातृभाषा के प्रति समर्पण और अनुराग-भाव की दृष्टि से विचार करें तो यह स्पष्ट होता है कि आज विश्व के अधिकांश देशों का इतिहास यह दर्शाता कि ये देश अलग-अलग कालखंडों में औपनिवेशिक शक्तियों के गुलाम रहे है, लेकिन स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद अपनी-अपनी मातृभाषाओं को स्थापित किया। इस अवसर पर प्रो.ज्योतिराज ने हरिवंश राय बच्चन , राज्यकवि उदयभानू हंस की कविता पढकर मातृभाषा का महत्व बताया। इस अवसर पर एआईसीटीई के एडवाइजर, प्रो.राजीव कंसल, प्रो.मनोज दूहन, प्रो.अशोक शर्मा, प्रो.अमित गर्ग, प्रो. अनिल खुराना, प्रो.आर.के.सोनी, प्रो.एस.के.गुप्मा, प्रो.परमिंद्र सिंह, प्रो.ज्योतिराज, प्रो.अनिल गुप्ता,डा.पवन दहिया आदि उपस्थित थे।