सोनीपत, 9 अक्तूबर। दीनबंधु छोटू राम विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय, मुरथल के शाधार्थियों के लिए अच्छी खबर है। यहां के शोधार्थी जर्मनी के प्रतिष्ठित विश्वविद्यालय कैम्निच में विभिन्न विषयों पर शोध कर सकेगें। कुलपति प्रो.राजेंद्रकुमार अनायत के प्रयासों से ऐसा संभव हो पाया है। विद्यार्थियों के साथ साथ शिक्षकों को भी इसका लाभ होगा।
जर्मनी के प्रतिष्ठित कैम्निच तकनीकी, विश्वविद्यालय के प्रो.ए.सी.हुबलर ने कहा कि डीसीआरयूएसटी, मुरथल विश्वविद्यालय के शोधार्थियों और शिक्षकों के लिए अनुसंधान की अपार संभावनाएं हैं। उनके विश्वविद्यालय के द्वार डीसीआरयूएटी के विद्यार्थियों और शौधार्थियों के लिए सदैव खुले हुए हैं। उन्होंने कहा कि दोनों देश अगर मिलकर अनुसंधान के क्षेत्र में कार्य करेगें, इससे दोनों देशों को लाभ होगा।
प्रो.हुबलर डीसीआरयूएसटी के प्रशासनिक भवन के सभागार में विभिन्न संकायों के अधिष्ठाता, विभागाध्यक्ष व प्रोफैसरों को संबोधित कर रहे थे। उन्होंने कहा कि प्रिटिंग टैक्नोलॉजी आज के समय में पारंपरिक प्रिटिंग को छोड़कर नए नए क्षेत्रों में अपने पांव पसार रही है। अब यह टू डी से थ्री डी हो गई है तथा अब बोलने वाली प्रिटिंग मार्केट में आ गई है। जिसमें मल्टीमीडिया टैक्नोलॉजी का अत्याधुनिक रूप से प्रयोग प्रारंभ हो गया है। उन्होंने कहा कि इलैक्ट्रानिक्स के क्षेत्र में भी प्रिटिंग टैक्नोलॉजी नए आयाम स्थापित कर रही है। अब इलैक्ट्रानिक्स सर्किट त्वचा की तरह फैबरीकेट किए जा रहे हैं, जिसे प्रतिदिन नए नए एप्लीकेशन में प्रयोग किया जा रहा है।
कुलपति प्रो.अनायत ने कहा कि जर्मनी के प्रतिष्ठित विश्वविद्यालय में शोध करने का लाभ हमारे शाधार्थियों को मिलेगा। हमारे शोधार्थी अंतर्राष्ट्रीय स्तर की प्रयोगशालाओं में कार्य करने का अवसर मिलेगा। इससे उनके अनुसंधान में गुणवत्ता आएगी तथा विश्वविद्यालय की शैक्षणिक गुणवत्ता में वृद्धि होगी। उन्होंने कहा कि जर्मनी के प्रतिष्ठित विश्वविद्यालय के साथ हमारे विश्वविद्यालय का शोधार्थी व शिक्षकों के आदाना प्रदान प्रोग्राम प्रारंभ किया जाएगा। इससे दोनों देशों को एक दूसरे के ज्ञान के साथ साथ ही संस्कृति को भी जानने का अवसर मिलेगा।
कुलपति प्रो. अनायत ने कहा कि भारत और जर्मनी के लोगों के आपसी संपर्क कई सदियों से रहे हैं। शुरुआत सदियों पहले जर्मन और भारतीय लोगों के निजी संपर्क के रूप में हुई थी। एक जर्मन मिशनरी ने संस्कृत व्याकरण का संकलन किया। 1791 में महाकवि कालिदास के “अभिज्ञानशाकुंतलम्” नाटक का जर्मन संस्करण प्रकाशित हुआ, जिसके व्यापक परिणाम देखने को मिले। यह प्राचीन भारत के साथ जर्मन विद्वानों के विद्वत्तापूर्ण आदान-प्रदान की शुरुआत थी। उन्होंने कहा कि संस्कृत का अध्ययन और शिक्षण, भाषा और धर्म का तुलनात्मक अध्ययनजर्मन भारत विद्या यानी इंडोलोजी की पहचान बन गया, जो मैक्स म्यूलर के नाम के साथ अभिन्न रूप से जुड़ा है। इस अवसर पर रजिस्ट्रार प्रो.अनिल खुराना, परीक्षा नियंत्रक डा.एम.एस.धनखड़, शैक्षणिक अधिष्ठाता प्रो.राजकुमार सिंह, प्रो.मनोज दूहन, प्रो.रमेश कुमार, प्रो.किरण नेहरा, प्रो.सतीश खासा, प्रो.ए.के.बेरवाल, डा.वी.एस.अहलावत, प्रो.अजय मोंगा, प्रो.परविंद्र सिंह, डा.पवन दहिया, डा.संतोष सिंधु, डा.गीता दहिया आदि उपस्थित थे।