आचार्य चाणक्य कहते हैं
🔸चतुर्थोऽध्याय🔸
राजपत्नी गुरोः पत्नी मित्रपत्नी तथैव च ।
पत्नी माता स्वमाता च पञ्चैता मातरः स्मृताः॥२०॥
*🔸शब्दार्थ* :— *राजपत्नी*= राजा की भार्या *गुरोः*= गुरु की *पत्नी*= स्त्री *च*= और *एव*= उसी प्रकार *मित्रपत्नी*= मित्र की पत्नी *पत्नीमाता*= पत्नी की माता-सास *च*= तथा *स्वमाता*= अपनी जननी— *एता*= ये *पञ्च*= पाँच *मातरः*= माताएँ *स्मृताः*= मानी गई हैं।
*🔸भावार्थ* :— माता के संदर्भ में आचार्य चाणक्य ने राजा की पत्नी, गुरु की पत्नी, मित्र की पत्नी, पत्नी की माता तथा स्वयं की माता को मनुष्य की पाँच माताएँ कहा है। वे कहते हैं कि प्रत्येक व्यक्ति को इनका यथोचित आदर- सम्मान करना चाहिए। इनके प्रति कुदृष्टि का भाव रखकर वह घोर नरक का भागी बनता है। अतः इनका न तो निरादर करना चाहिए और नही इन पर बुरी दृष्टि डालनी चाहिए।