🔸चतुर्थोऽध्याय🔸
अपुत्रस्य गृहं शून्यं दिशः शून्यास्त्वबान्धवाः।
मूर्खस्य हृदयं शून्यं सर्वशून्या दरिद्रता ॥१४॥
*🔸शब्दार्थ* :— *अपुत्रस्य*= पुत्ररहित मनुष्य का *गृहम्*= घर *शून्यम्*= सूना है *अबान्धवाः*= बन्धु-बान्धवों रहित मनुष्य के लिए *दिशः*= दिशाएँ *शून्याः*= शून्य हैं *मूर्खस्य*= मूर्ख मनुष्य का *हृदयम्*= हृदय *शून्यम्*= सूना होता है और *दरिद्रता*= दरिद्र के लिए तो *सर्वशून्या*= घर दिशाएँ आदि सब कुछ सूना है।
*🔸भावार्थ* :— जिस प्रकार संतान के बिना घर सूना-सुना लगता है, उसी प्रकार मित्रों एवं सगे-संबंधियों के बिना भी मनुष्य को एकाकीपन का अनुभव होता है। उसके लिए दसों दिशाएँ सूनी हैं। लेकिन मूर्ख मनुष्य का हृदय सूना है क्यों उसमें भला-बुरा समझने की क्षमता ही नहीं है। वहीं दरिद्र के लिए तो घर-बाहर एवं सब-कुछ सूना-ही-सूना है।