सोनीपत, 11 जनवरी। दीनबंधु छोटू राम विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय, मुरथल के कुलपति प्रो.राजेंद्रकुमार अनायत ने कहा कि स्वामी विवेकानंदजी ने युवा वर्ग को चरित्र निर्माण के 5 सूत्र दिए थे। जिनमें आत्मविश्वास, आत्मनिर्भरता, आत्मज्ञान, आत्मसंयम और आत्मत्याग शामिल हैं। युवा इन सूत्रों का पालन कर व्यक्तित्व तथा देश और समाज का पुनर्निर्माण कर सकता है। कुलपति प्रो.अनायत विश्वविद्यालय में राष्ट्रीय युवा दिवस के अवसर पर आयोजित कार्यक्रम में बतौर मुख्यातिथि के तौर पर संबोधित कर रहे थे। कुलपति प्रो.अनायत ने कहा कि स्वामी विवेकानंद महान चितंक, दार्शनिक, देशभक्त थे। वे युवाओं के के प्ररेणा स्रोत थे। स्वामी विवेकानंद भारतीय नवजागरण के अग्रदूत थे। उन्होंने कहा कि स्वामी विवेकानंद ने अध्यात्म, वैश्विक मूल्यों, धर्म, चरित्र निर्माण शिक्षा एवं समाज को बहुत विस्तृत एवं गहरे आयामों से विश्लेषित किया है। स्वामी विवेकानंद के विचार भारत के ही नहीं, बल्कि विश्व के युवाओं के लिए उनके विचार प्रासंगिक एवं अनुकरणीय हैं। कुलपति प्रो.अनायत ने कहा कि सुभाषचंद्र बोस ने स्वामी विवेकानंद के बारे में कहा था कि वे आधुनिक भारत के निर्माता हैं। गुरू रविंद्रनाथ ने कहा कथा कि यदि आप भारत को जानना चाहते हैं तो विवेकानंद को पढिए। उसमें आपको सब कुछ सकारात्मक ही पाएगें, नकारत्मक कुछ भी नहीं मिलेगा। युवाओं के प्ररेणा स्रोत स्वामी विवेकानंद ने युवाओं से आह्वान करते हुए कठोपनिषद का एक मंत्र कहा था -उत्तिष्ठत जाग्रत प्राप्य वरान्निबोधत। उठो,जागों और तब तक मत रूको, जब तक कि अपने लक्ष्य तक नहीं पहुंच जाओ। कुलपति प्रो.अनायत ने कहा कि स्वामी विवेकानंद ने धर्म की व्याख्या करते हुए कहा है कि धर्म हमेशा मानव को अच्छे विचार एवं आत्मा से जोड़ता है। धर्म, विचार एवं आचरण है, जो मनुष्य के अंदर की पशुता को इंसानियत में और इंसानियत को देवत्व में बदलने की सामर्थ्य रखता है। उन्होंने सभी धर्मों का सार सत्य को बताया है एवं उसके आचरण की प्रेरणा दी है। विश्वविद्यालय के पूर्व रजिस्ट्रार प्रो.एस.के.गर्ग ने कहा कि स्वामी विवेकानंद युवाओं को देश की सबसे बहुमूल्य संपत्ति मानते थे। उन्होंने युवाओं को अनंत ऊर्जा का स्रोत बताया है।युवाओं की उन्नत ऊर्जा को सही दिशा प्रदान कर दी जाए तो राष्ट्र के विकास को नए आयाम मिल सकते हैं। स्वामीजी कहा करते थे कि जिसके जीवन में ध्येय नहीं है, जिसके जीवन का कोई लक्ष्य नहीं है, उसका जीवन व्यर्थ है। लेकिन हमें एक बात का ध्यान रखना चाहिए कि हमारे लक्ष्य एवं कार्यों के पीछे शुभ उद्देश्य होना चाहिए। कार्यक्रम के आयोजक डा.दिनेश सिंह थे। इस अवसर पर रजिस्ट्रार प्रो.अनिल खुराना, प्रो.आर.के.सोनी, प्रो.सुरेंद्र सिंह दहिया,प्रो.पवन राणा,डा.बिरेंद्र सिंह हुड्डा,डा.सुखदीप सिंह, डा.सुमन सांगवान,डा.पवन दहिया, डा.सुमन गुलिया,नेहा यादव,मेहर सिंह, कमल आदि उपस्थित थे।