भोपाल, 23 अप्रैल। माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता एवं संचार विश्वविद्यालय तथा पुनरुत्थान विद्यापीठ, अहमदाबाद द्वारा दो दिवसीय “भारतीय शोध दृष्टि” विषय पर आयोजित राष्ट्रीय संविमर्श का आज समापन हो गया। संविमर्श में देश भर से आये प्रतिभागियों ने संकल्प लिया कि वे व्यक्तिगत, सामूहिक और संस्थागत स्तर पर भारतीय दृष्टि पर आधारित शोध को बढ़ावा देगें। उन्होंने इसके लिये व्यापक प्रयास किये जाने की जरूरत भी बताई। सम्मेलन में यह तय किया गया कि इसकी शुरूआत अभी से की जाना है। अभी नहीं तो कभी नहीं।
सम्मेलन के समापन सत्र में पुनरुत्थान विद्यापीठ, अहमदाबाद की कुलपति सुश्री इन्दुमती काटदरे ताई और माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता एवं संचार विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. बृज किशोर कुठियाला विशेष रूप से उपस्थित थे। इसके पूर्व तीन सत्र आयोजित किये गये। प्रथम सत्र में एकात्म मानव दर्शन पर आधारित भारतीय शिक्षा की प्रतिष्ठापना, विषय पर बोलते हुये श्री दिलीप केलकर ने एकात्म मानव दर्शन, जीवन दृष्टि, जीवन शैली और भारतीय व्यवस्था समूह पर प्रकाश डाला। उन्होंने कहा कि भारतीय शिक्षा एकात्म मानव दर्शन पर आधारित होना चाहिए और राष्ट्रीय शिक्षा की पुनः प्रतिष्ठापना के लिए पांच चरणों की योजना बनाई जानी चाहिए जिसमें अध्ययन अनुसंधान, लोकमत बनाना, परिवार सुदृढ़ीकरण उपयुक्त मानव निर्माण, व्यवस्था परिवर्तन शामिल है। उन्होंने इसके लिए शिक्षा, शासन, उद्यम, न्याय और धर्म सहित सभी क्षेत्रों में श्रेष्ठ और उपयुक्त मानव निर्माण के लिए विराट जनजागरण का आव्हान भी किया।
‘‘भारतीय संवाद व्यवस्था दृष्टि पर आधारित जनसंचार व्यवस्था की प्रतिष्ठापना, विषय पर आयोजित दूसरे सत्र को संबोधित करते हुये प्रो. बृज किशोर कुठियाला ने कहा कि प्राचीन भारतीय संस्कृति में जो ज्ञान विज्ञान का विकास हुआ था वह आज भी प्राचीन ग्रंथों में उपलब्ध है। इस पर आगे शोध किया जाना चाहिए। माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता एवं संचार विश्वविद्यालय में हुये शोध कार्य का उल्लेख करते हुये उन्होंने कहा कि मानव संचार की अवधारणा पश्चिम के लिए एक पहेली रही है। अनेक प्रयासों के बावजूद पश्चिम के विद्वान मानव संचार की प्रक्रिया और उसका त्रुटिरहित मॉडल नहीं बना सके हैं। इसी धारणा का निदान करने के लिए विश्वविद्यालय ने 2012 में “संचार की भारतीय परम्पराएं” पर परियोजना शुरू की। जिसमें अभी तक 7 शोध पूर्ण हो चुके हैं।
तृतीय सत्र में “शासन व्यवस्था का भारतीय स्वरूप और उसकी प्रतिस्थापना” विषय पर श्री बृजेन्द्र पाण्डेय मुख्य वक्ता थे। उन्होंने कहा कि भारतीय राज्य व्यवस्था की पुनर्प्रतिष्ठा करने की दिशा में सबसे प्रमुख आवश्यकता यह है कि हमें अपने वैचारिक अधिष्ठानों को शुद्ध करने का प्रयास करना चाहिए। आधुनिक युग के विचारों और विचारकों के बारे में बहुत सावधानी और सतर्कता बरतने की आवश्यकता है। हमारे राजनैतिक विमर्श में ऐसी कई अभारतीय और अपरम्परागत अवधारणाएं प्रविष्ट करा दी गई है जो भारतीय संदर्भों से रहित है किन्तु उन्हें भारतीय शब्द प्रदान कर दिया गया है।