29 मई 2016 : मुख्य संसदीय सचिव डा. कमल गुप्ता ने कहा कि चिकित्सा के क्षेत्र में सफलता के लिए यह जरूरी है कि इस क्षेत्र से जुड़े लोग इस क्षेत्र में निरन्तर हो रहे शोधों व नई तकनीकों से अवगत रहें। साथ ही यह भी जरूरी है कि बड़े तथा नए शोधों के साथ-साथ पुरानी तथा रोजमर्रा की आम बातों पर भी गहनता से ध्यान दिया जाना चाहिए। कभी-कभी छोटी सी भूल रोगी के जीवन के लिए खतरा साबित हो जाती है। डा. कमल गुप्ता रविवार को गुरू जम्भेश्वर विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय, हिसार के फैकल्टी ऑफ मेडिकल साईंसिज द्वारा इंडियन मेडिकल ऐसोसिएशन (हिसार चैप्टर) के सहयोग से ‘न्यूरोसाईंस -अपडेट : 2016’ विषय पर एक दिवसीय नेशनल मेडिकल कान्फ्रैंस को बतौर मुख्यातिथि सम्बोधित कर रहे थे। उद्घाटन समारोह की अध्यक्षता विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. टंकेश्वर कुमार ने की। आयोजन समिति के अध्यक्ष डा. जी.पी. बर्मन थे। जबकि फैकल्टी ऑफ मेडिकल साईंसिज के डीन प्रो. मिलिन्द पारले कान्फ्रैंस के संयोजक सचिव थे।
डा. कमल गुप्ता ने अपने सम्बोधन में कहा कि आज हमने चौथी पीढ़ी की एंटीबायोटिक दवाएं तो खोज ली हैं। लेकिन कभी-कभी वार्ड ब्वाय, नर्स या सफाई कर्मचारी की गलती से रोगी को इतना भयंकर इन्फैक्शन हो जाता है कि उसे काबू करना मुश्किल हो जाता है। ऑपरेशन थिएटर में तथा ऑपरेशन के दौरान डाक्टर पूरी सावधानियां बरतते हैं लेकिन रोगी के वार्ड में आने के बाद कभी-कभी चूक हो जाती है। इस ओर ध्यान देना अत्यंत आवश्यक है। उन्होंने कहा कि शोध और विकास का तभी फायदा होगा जब वो देश के गरीब से गरीब व्यक्ति तक पहुंचे। सुपर स्पेशलिस्ट डाक्टर से ईलाज करवाना जरूरी है लेकिन फैमिली डाक्टर की राय को अनदेखा नहीं किया जाना चाहिए।
प्रो. टंकेश्वर कुमार ने अपने सम्बोधन में कहा कि डाक्टर भगवान का दूसरा रूप है जो रात-दिन मरीजों की सेवा करने उन्हें जीवनदान देता है। कभी-कभी डाक्टर यह जानते हुए कि अब उसके रोगी के बचने की संभावना नहीं है। उसका रोगी कुछ समय तक ही जीवित रहेगा। इसके बावजूद डाक्टर रोगी की अंतिम सांस तक उसे बचाने का प्रयास करता है। प्रो. टंकेश्वर कुमार ने कहा कि चिकित्सा का कार्य समाज सेवा का सर्वोत्तम कार्य है।
संयोजक समिति के अध्यक्ष न्यूरोलोजिस्ट डा. जी.पी. बर्मन ने अपने स्वागत सम्बोधन में मिरगी तथा लकवा के रोग के बारे में विस्तृत जानकारी दी। उन्होंने कहा कि लकवा और मिरगी के रोगियों को हमें सम्मान देना चाहिए तथा उन्हें समाज की मुख्य धारा से जोड़े रखना चाहिए। ये बीमारियां लाईलाज नहीं हैं। सही समय पर और सही ईलाज मिल जाए तो रोगी शत प्रतिशत ठीक हो जाते हैं।
प्रो. मिलिन्द पारले ने कहा कि स्वास्थ्य ही जीवन का आधार है। स्वस्थ रहने के लिए हम प्रतिदिन व्यायाम करें। अगर व्यायाम करने के लिए वक्त न मिले तो कम से कम पैदन अवश्य चलें। साकारात्मक सोच रखनी चाहिए। लोग जिस प्रकार से हैं उन्हें उसी प्रकार से अपनाना चाहिए। प्रतिदिन दो लीटर पानी अवश्य पीना चाहिए। हमें नमक, मीठा व मक्खन पर नियंत्रण रखना चाहिए। प्रो. मिलिन्द पारले ने बताया कि इस कान्फ्रैंस में लगभग 100 डाक्टर्स ने भाग लिया। डा. संदीप कालड़ा ने धन्यवाद भाषण प्रस्तुत किया।
कान्फ्रैंस को डा. पी.एन. रंजन ने ‘ब्रेन स्ट्रॉक’, डा. जी.पी. बर्मन ने ‘हिलने डुलने की बीमारियां’ डा. नवीन ने ‘नसों के दर्द’, प्रो. मिलिन्द पारले ने ‘यादाशत की कमी’ विषय पर विशेष व्याख्यान दिया। कान्फ्रैंस को डा. जे.पी.एस. नलवा तथा डा. ऐ.पी. सेतिया ने भी सम्बोधित किया। कान्फ्रैंस में 25 पोस्टर प्रदर्शित किए गए। एमफार्मा अंतिम वर्ष की छात्रा दिशा गुप्ता ने सरस्वती व गणेश वंदना प्रस्तुत की। मंच संचालन एमफार्मा अंतिम वर्ष की छात्रा मोनिका ने किया।