जसविंदर सिंह, पंजाब यूनिवर्सिटी : अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस ; हर वर्ष 8 मार्च को दुनिया भर में अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस मनाया जाता है। विश्व के विभिन्न क्षेत्रों में महिलाओं के प्रति सम्मान, प्रशंसा और प्यार प्रकट करते हुए इस दिन को महिलाओं के आर्थिक, राजनीतिक और सामाजिक उपलब्धियों के उपलक्ष्य में उत्सव के तौर पर मनाया जाता है। इस दिन सम्पूर्ण विश्व की महिलाएं देश, जात-पात, भाषा, राजनीतिक, सांस्कृतिक भेदभाव से परे एकजुट होकर इस दिन को मनाती हैं। सबसे पहले अमेरिका में सोशलिस्ट पार्टी के आवाहन पर 28 फरवरी 1909 में यह दिवस मनाया गया। इसके बाद यह फरवरी के आखरी इतवार के दिन मनाया जाने लगा। 1910 में सोशलिस्ट इंटरनेशनल के कोपेनहेगन के सम्मेलन में इसे अन्तर्राष्ट्रीय दर्जा दिया गया। 1917 में रुस की महिलाओं ने महिला दिवस पर रोटी और कपड़े के लिये हड़ताल पर जाने का फैसला किया। यह हड़ताल भी ऐतिहासिक थी। जार ने सत्ता छोड़ी, अन्तरिम सरकार ने महिलाओं को वोट देने के अधिकार दिये। उस दिन 8 मार्च था, इसीलिये 8 मार्च महिला दिवस के रूप में मनाया जाने लगा। अब लगभग सभी विकसित व विकासशील देशों में महिला दिवस मनाया जाता है। यह दिन महिलाओं को उनकी क्षमता, सामाजिक, राजनीतिक व आर्थिक तरक्की दिलाने व उन महिलाओं को याद करने का दिन है जिन्होंने महिलाओं को उनके अधिकार दिलाने के लिए अथक प्रयास किए। संयुक्त राष्ट्र संघ ने भी महिलाओं के समानाधिकार को बढ़ावा और सुरक्षा देने के लिए विश्वभर में कुछ नीतियां, कार्यक्रम और मापदंड निर्धारित किए हैं। भारत में भी महिला दिवस व्यापक रूप से मनाया जाने लगा है। महिला दिवस पर स्त्री की प्रेम, स्नेह व मातृत्व के साथ ही शक्ति सम्पन्न स्त्री की मूर्ति सामने आती है। इक्कीसवीं सदी की स्त्री ने स्वयं की शक्ति को पहचान लिया है और काफी हद तक अपने अधिकारों के लिए लडऩा सीख लिया है। आज के समय में स्त्रियों ने सिद्ध किया है कि वे एक-दूसरे की दुश्मन नहीं, सहयोगी हैं। महिलाओं के लिए नियम-कायदे और कानून तो खूब बना दिये हैं किन्तु उन पर हिंसा और अत्याचार के आंकड़ों में अभी तक कोई कमी नहीं आई है। संयुक्त राष्ट्र जनसंख्या कोष की रिपोर्ट के अनुसार भारत में 15 से 49 वर्ष की 70 फीसदी महिलाएं किसी न किसी रूप में कभी न कभी हिंसा का शिकार होती हैं।
अंग्रेजी अखबार टाइम्स ऑफ इंडिया के मुताबिक दिल्ली में सिर्फ 7 प्रतिशत महिला पुलिस है जो सिर्फ चौकियों पर बैठती है। जनता की रक्षा करने वाले पुलिस आम आदमी की सुरक्षा के बजाए वीवीआईपी, नेताओं और अधिकारियों की सेवा में जुटी हुई है। दिल्ली में 84000 पुलिस जवानों में से सिर्फ एक तिहाई पुलिस वाले ही आम जनता की सुरक्षा में जुटे हुए है। ऐसे में महिलाएं कैसे सुरक्षित रह सकती है? घरेलु हिंसा के मामले में भारत की स्थिति सबसे ज्यादा दयनीय है। भारतीय में अधिकांश लोग घरेलु हिंसा को अपराध नहीं मानते। यूनिसेफ की रिपोर्ट के 15 से 19 साल के 53 फीसदी लड़के और 57 फीसदी लड़कियां मानती है कि अपनी पत्नी को पीटना सही है। जब बच्चा हर में यही सब देख कर बड़ा होता है तो उसके लिए ये सब आम बात होती है और वो भी आगे जाकर यहीं सब करता है। उसकी नजर में महिलाओं की कोई ईज्जत नहीं होती है।
महिला और बाल कल्याण विभाग की रिपोर्ट के मुताबिक समाज में महिलाओं के लिए सुरक्षा इंतजामों की कमी है। बस, रेलवे स्टेशन, पब, गलियां कुछ भी सुरक्षित नहीं है। सामाजिक जगहों पर भी महिलाएं असुरक्षित है।
देशभर में महिलाओं पर होने वाले अत्याचार के लगभग 1.5 लाख मामले सालाना दर्ज किए जाते हैं जबकि इसके कई गुण दबकर ही रह जाते हैं। विवाहित महिलाओं के विरूद्ध की जाने वाली हिंसा के मामले में बिहार सबसे आगे है जहां 59 प्रतिशत महिलाएं घरेलू हिंसा की शिकार हुई। उनमें 63 प्रतिशत शहरी क्षेत्रों की थी। दूसरे नम्बर पर राजस्थान 46.3 प्रतिशत एवं तीसरे स्थान पर मध्यप्रदेश 45.8 प्रतिशत है। राष्ट्रीय अपराध रिकार्ड ब्यूरो 2014 के आंकड़े के अनुसार पति और सम्बंधियों द्वारा महिलाओं के प्रति की जाने वाली क्रूरता में 7. 5 प्रतिशत वृद्धि हुई है। घरेलू हिंसा अधिनियम देश का पहला ऐसा कानून है जो महिलाओं को उनके घर में सम्मानपूर्वक रहने का अधिकार सुनिश्चित करता है। इस कानून में महिलाओं को सिर्फ शारीरिक हिंसा से नहीं बल्कि मानसिक, आर्थिक एवं यौन हिंसा से बचाव का अधिकार भी शामिल है। राष्ट्रीय अपराध रिकार्ड ब्यूरो द्वारा जारी ताजा आंकड़ों के अनुसार महिलाओं के खिलाफ अपराध के मामले दोगुने से भी अधिक हुए हैं। पिछले दशक के आंकड़ों पर आधारित विश्लेषण के मुताबिक पिछले दशक में महिलाओं के खिलाफ अपराध के कम से कम 22 लाख 40 हजार मामले दर्ज किये गये हैं। इस हिसाब से भारत में हर घंटे महिलाओं के खिलाफ अपराध के 26 मामले या हर दो मिनट में एक शिकायत दर्ज होती है। भारत में एक लाख पच्चीस हजार महिलाएं गर्भधारण के पश्चात् मौत का शिकार हो जाती हैं। प्रत्येक वर्ष एक करोड़ बीस लाख लड़कियां जन्म लेती हैं लेकिन तीस प्रतिशत लड़कियां 15 वर्ष से पूर्व ही मृत्यु का शिकार हो जाती हैं। गर्भवती महिलाओं पर दृष्टि डालें तो पता चलता है कि ग्रामीण क्षेत्रों में 72 प्रतिशत गर्भवती महिलाएं निरक्षर हैं। ऐसी स्थिति में वे गर्भधारण करने की उम्र, पौष्टिकता, भारी काम, काम के घण्टों, स्वास्थ्य जांच आदि से वंचित रहती हैं और सब कुछ भगवान पर छोड़ देती हैं। अब महिलाओं को समझना होगा कि आज समाज में उनकी दयनीय स्थिति भगवान की देन न होकर समाज में चली आ रही परम्पराओं का परिणाम है। इस स्थिति को बदलने का बीड़ा महिलाओं को स्वयं उठाना होगा। जब तक वह स्वयं अपने सामाजिक स्तर पर आर्थिक स्थिति में सुधार नहीं करेगी, तब तक समाज में उनका स्थान गौण ही रहेगा। स्वतंत्रता प्राप्ति के इतने वर्षों बाद भी हमारी कामकाजी जनसंख्या में से 70 प्रतिशत महिलाएं अकुशल कार्यों में लगी हैं तथा उसी हिसाब से मजदूरी प्राप्त कर रही हैं। दूसरी ओर देखते हैं तो पता चलता है कि महिलाओं के कुछ ऐसे कार्य हैं जिनकी गणना ही नहीं होती जैसे – चूल्हा -चौका, बर्तन, खाना, सफाई, बच्चों का पालन पोषण आदि। महिलाएं एक दिन में पुरुषों की तुलना में छ: घण्टे अधिक कार्य करती हैं। आज विश्व में काम के घण्टों में 60 प्रतिशत से भी अधिक का योगदान महिलाएं करती हैं जबकि वे केवल एक प्रतिशत सम्पत्ति की मालिक हैं। भारत में लिंगानुपात की स्थिति अच्छी नहीं कही जा सकती क्योंकि उक्त विभिन्न देशों के लिंगानुपात पर दृष्टि डाले और विचार करें तो कुछ प्रश्न उठना स्वाभाविक है कि ऐसे क्या कारण हैं कि रूस में 1000 पुरुषों पर 1140 स्त्रियां है, वहीं नेपाल, जापान एवं फ्रांस में लिंगानुपात 1041 क्यों है? अमेरिका में 1029, ब्राजील में 1025, वियतनाम में 1020, नाइजीरिया में 1016, इजराइल में 1000 लिंगानुपात है। चीन में 944 और भारत में 940 है जबकि वैश्विक औसत लिंगानुपात 990 है। हमें उन सभी कारणों, घटकों एवं नियोजन पर गहन चिन्तन करना होगा जिनसे उक्त प्रश्नों का उत्तर खोजा जा सके और भारत में लिंगानुपात की दयनीय स्थिति को बेहतर बनाया जा सके। हमारे देश के विभिन्न राज्यों में लिंगानुपात की स्थिति में भी बहुत अधिक अन्तर है जैसे केरल में सर्वाधिक जबकि हरियाणा में न्यूनतम लिंगानुपात है। दुर्भाग्य की बात है कि नारी सशक्तिकरण की बातें और योजनाएं केवल शहरों तक ही सिमटकर रह गई हैं। एक ओर बड़े शहरों और मेट्रो सिटी में रहने वाली महिलाएं शिक्षित, आर्थिक रुप से स्वतंत्र, नई सोच वाली, ऊंचे पदों पर काम करने वाली महिलाएं हैं जो पुरुषों के अत्याचारों को किसी भी रूप में सहन नहीं करना चाहतीं। वहीं दूसरी तरफ गांवों में रहने वाली महिलाएं हैं जो न तो अपने अधिकारों को जानती हैं और न ही उन्हें अपनाती हैं। वे अत्याचारों और सामाजिक बंधनों की इतनी आदी हो चुकी हैं कि अब उन्हें वहां से निकलने में डर लगता है। वे उसी को अपनी नियति समझकर बैठ गई हैं। हमारे देश में महिलाओं की स्थिति अपेक्षाकृत अच्छी नहीं है परन्तु दिशा सकारात्मक दिखाई दे रही है। जब तक महिलाओं का सामाजिक, वैचारिक एवं पारिवारिक तौर पर उत्थान नहीं होगा, तब तक सशक्तिकरण का ढोल पीटना एक खेल मात्र ही बना रहेगा।आज बेशक अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस है जैसे कि एक बार हमारे भारत के पूर्व राष्ट्रपति एपीजे अब्दुल कलाम ने कहा था कि वर्ल्ड सिटीजन यह सिर्फ बातें उन्हीं जैसे व्यक्तियों के आदमी को ही शोभा देती है हम जैसे आम आदमी जो कि महिलाओं को घर से बाहर निकलने भी नहीं देते उनको यह बातें शोभा नहीं देती हमारे प्राचीन ग्रंथों में एक श्लोक बहुत प्रचलित है जो यह बोलता है यत्र नार्यस्तु पूज्यंते रमंते तत्र देवता जहां पर औरतों की पूजा होती है वहां देवता वास करते हैं जब पूजा का शब्द बीच में आता है तो मेरा व्यक्तिगत मानना यह है जिस प्रकार मंदिरों में पूजा के बाद ताले लग जाते हैं सुबह 4:00 से 9:00 बजे तक शाम के 5:00 से 8:00 बजे तक फिर मुझे यही समझ में आता है कि औरतों को मूर्ति बनाकर घर में बैठा दिया जाए और सिर्फ इन्हीं समय में वह बाहर निकल पाए इन्हीं समय में उनसे बात की जाए और उसका सिर्फ और सिर्फ घर में सीमित है यह श्लोक सिर्फ और सिर्फ यही दर्शाता है या फिर हम दूसरी तरफ में यह भी कह सकता हूं जब यह बोलते हैं कि जहां औरतों का पूजा होती है वहां देवता वास करते हैं कौन से देवता की बात कर रहे हैं इंद्र देवता की जहां अंधेरे में आकर पति की गैर हाजरी में अहल्या का शोषण किया गया यह उस समय के लोगों में थी जिन्होंने महिलाओं की पूजा की बात और यह सिर्फ और सिर्फ मैं यह मानता हूं कि वह एक पुरुष प्रधान मानसिकतासे पीड़ित होने के कारण ऐसी बातें करते थे महिलाओं को दुर्गा का स्थान पर दे दिया गया परंतु ने कभी दुर्गा नहीं बनने दिया ना कभी उन्हें हथियार उठाने दिए गए सिर्फ और सिर्फ उन्हें घर के चूल्हे तक ही सीमित रखा गया अगर सामाजिक व्यवस्थाओं से लड़ कर भी वह कभी आगे बढ़ पाई तो कभी वह झांसी की रानी बन गई झलकारी बाई बन गई साथियों यह संतों का देश रहा है यहां संत पैदा हुए और संत वही पैदा होते हैं जहां पर बुराइयों और बुराइयों का खंडन करते हैं और पंजाब की भूमि से होने के कारण मुझे मुझे यह गर्व होता है कि यहां पर गुरुओं ने जन्म लिया और पूरे विश्व को ज्ञान का मार्ग दिखाया गुरु नानक देव जी बोलते थे || Bhand jamiye, bhand nimiye, bhand mangan viah. Bhando hove dosti bhando challe rah. Bhando muaa bhand bhaliye bhand hove bandhan. So kio manda akhiya jit jame rajan. Bhando hi bhand oopje bhande baaj na koe. Nanak bhande bahara eko sacha soe || From woman, man is born; within woman, man is conceived; to woman he is engaged and married. Woman becomes his friend; through woman, the future generations come. When his woman dies, he seeks another woman; to woman he is bound. So why call her bad? From her, kings are born
नारी की इस दयनीय और असहाय दशा से क्षुब्द होकर राष्ट्रकवि मथ्लिशरण गुप्त ने
इस अवस्था का चित्रण अपनी अग्रलिखित पंक्तियों में किया है –
अबला जीवन हाय तुम्हारी यही कहानी |
आंचल में है दूध और आंखों में पानी ||
साहित्य समाज का दर्पण है यही साबित करती हैं यह कविताएं।आज कभी मुख्यमंत्री किसी राज्य के बोलते हैं कि महिलाओं को ढंग के कपड़े पहने इसलिए बलात्कार होते हैं कपड़ों से बलात्कार होते हैं तो कुछ ही महीनों
पहले 8 महीने की एक बेटी का बलात्कार कर दिया गया तो कभी ये भी बोलै जाता
है जब कोई लड़का महिला से दुष्कर्म करके आता है तो सत्ताधारी दल के नेता
बोलते हैं जवान था गलतियां हो जाती हैं। उसको देखकर आप क्या बोलेंगे जब तक
ऐसे लोग हमारे देश को चलाते रहेंगे हमारे देश की महिलाओं की स्थिति बद से
बदतर होती जाएगी