इन्द्रकृष्ण भारद्वाज (बीकानेर) : वर्ष 365 दिन होते है।उन्हीं में से 15 दिन श्राद्ध पक्ष के मृतात्माओं के लिए सवेरा होता है, उनके लिए दिन होता है। 350 दिन उनके लिए रात्रि का अँधेरा रहता है। ये 15 दिन पितृपक्ष के दिन कहलाते हैं।
इन महत्वपूर्ण दिनों में मृतात्माओं के नाम पर श्रद्धा पूर्वक दिया गया अन्न जल,वस्त्र ब्राह्मणों को दिया जाता है, वह सूक्ष्म रूप से उन्हें प्राप्त हो जाता है और पितृ लोग संतुष्ट होकर पुरे वर्ष आशीष की वर्षा करते रहते हैं।
‘देश काल च पात्रे च श्रद्धया विधिना च यत्।
पितृनुद्दिश्य विप्रेभ्यो दत्तं श्राद्धमुदाहृतम्।।
देश काल और पात्र में श्रद्धा द्वारा जो भोजन पितरों के उद्देश्य से ””ब्राह्मण”” को दिया जाता है, श्राद्ध कहलाता है।
भारतीय दर्शन में श्राद्ध का बहुत महत्व है। चाहे वह वैज्ञानिक दृष्टि से हो या हो आध्यात्मिक दृष्टि से। देखा जाय तो अपने मृत बंधुओं के प्रति श्रद्धापूर्वक किया गया कर्म जो हमें शांति देता है और परलोकगत आत्मा को भी देता है शांति, वह है श्राद्ध।
श्राद्ध कर्म आदि काल से हिन्दू धर्म संस्कृति का मुख्य भाग रहा है। इस पर थोडा विचार करना उचित है।आत्मा की अमरता के सिद्धान्त को स्वयं भगवान् श्रीकृष्ण गीता में वर्णन करते हैं। ‘आत्मा जबतक अपने परमात्मा से संयोग नहीं कर लेती तबतक विभिन्न योनियों भटकती रहती है और इस दौरान उसे ”””श्राद्धकर्म ”””’ से संतुष्टि मिलती है।श्राद्ध की बड़ी महिमा कही गयी है। लेकिन सूक्ष्म रूप से देखें तो श्राद्ध श्रद्धा का दूसरा नाम है जिसमें पितरों केे प्रति भक्ति और कृतज्ञता का समावेश होता है। श्राद्धकर्म के विषय में ऋषि कहते हैं–‘जैसे यज्ञ के माध्यम से देवताओं को उनका भाग और शक्ति प्राप्त होती है, उसी प्रकार श्राद्ध और तर्पण से पितृलोक में बैठे पितरों को उनका अंश प्राप्त होता है। श्रीसारस्वत पंचांग में पितरों के ””’श्राद्धकर्म ””’के लिए विशेष समय निर्धारित किया गया है जिसे ‘पितृपक्ष’ कहते हैं। यह पक्ष भाद्रपद मास के पूर्णिमा से आश्विन कृष्णपक्ष की प्रतिपदा तिथि से अमावस्या तक रहता है जिसमें व्यक्ति अपने दादा,परदादा, मृत पिता या माता का श्राद्ध करता है।
शास्त्र में पितरों की भी कई श्रेणियाँ बतलायीं गयीं हैं। जिस तिथि में व्यक्ति की मृत्यु होती है,उस तिथि के दिन मृत व्यक्ति का सूक्ष्म शरीर पितृलोक से उस दिन लौट आता है, जहाँ पर उसकी मृत्यु हुई थी। अगर उसका उस तिथि पर श्राद्ध नहीं होता है, तो वह भूखा-प्यासा दुखी होकर लौट जाता है और जीवित पुत्र-पौत्रों को श्राप देता है। इससे उस घर पर पितृदोष लग जाता है। घर की सुख-शान्ति चली जाती है। इनके श्राप से कुल का वंश आगे नहीं बढ़ पाता है अर्थात् वह व्यक्ति पुत्रहीन हो जाता है और मरने पर उसे भी अन्न-जल की प्राप्ति नहीं होती है।
आज ध्रुव योग मे कांसी का दान करना शुभफलदायी है।
इन्द्रकृष्ण भारद्वाज (बीकानेर)